आत्म पुराण

By: Nov 23rd, 2019 12:19 am

ऐसे उमादेवी सहित नीलकंठ महादेव का जो योगी अपने हृदय कमल में ध्यान करता है अथवा सूर्य मंडल अथवा अग्नि या चंद्रमंडल या कैलाश आदि पर्वत में ध्यान करता है, तो उसी सगुण ध्यान द्वारा उस योगी पुरुष का मन स्थिरता को प्राप्त हो जाता है। हे अश्वलायन इस प्रकार चित्त के स्थित हो जाने पर वह योगी सुखपूर्वक निर्गुण ब्रह्म को अपनी आत्मा द्वारा साक्षात्कार कर लेता है। हे अश्वलायन! जो इस प्रकार भी आत्म साक्षात्कार करने में समर्थ न हो, वह अधिकारी पुरुष इस प्रकार ध्यान करें के जिस प्रकार सब लोग काष्ठ की एक अरणि नीचे और एक ऊपर रखकर उसे मंथा से डोरी बांधकर मथते हैं और उससे अग्नि प्रकट हो जाती है,उसी प्रकार मेरा शरीर नीचे की अरणि है उसे मंथन रूप मंथा से ध्यान की डोरी बांधकर अच्छी तरह मथा जा रहा है। इस प्रकार मथने से इस अधिकारी पुरुष की देह में अद्वितीय आत्मा रूप अग्नि प्रकट होगी, जो काम-क्रोध आदि समस्तपाशों बंधनों को नष्ट कर देगी। हे अश्वलायन! ऐसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति जीवों को अनेक जन्मों में पुण्य कर्म करने पर ही होती है। जब तक इस जीवात्मा को इस प्रकार के आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई कि मैं ब्रह्मरूप हूं,तब तक वह अपने पुण्य, पाप कर्मों के अनुसार ऊंच-नीच शरीरों को प्राप्त होता रहता है,पर आत्माज्ञान की प्राप्ति के ऊपरांत यह जन्म-मरण को प्राप्त नहीं होता। हे आश्वलायन! संन्यास ग्रहण कर लेने पर भी इस अधिकारी पुरुष को जब तक आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति नहीं होती, तब तक उसे रुद्राध्यायका जप करते हुए उमादेवी सहित महादेव का ध्यान अवश्य करना चाहिए। इससे समय आने पर आत्मज्ञान और फिर मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी। श्रुति में कहा गया है।

उमा सहायं परमेश्वरं प्रभु त्रिलोचनं नीलकंठम प्रशांतम।

ध्यात्वा मुनिर्गच्छति भूतयोनि समस्त साक्षितम सः परस्तात।।

अर्थात सहित विराजमान त्रिलोचन नीलकंठ तथा अत्यंत शांतरूप भगवान शिव का ध्यान करके अधिकारी साधक समस्त भौतिक जगत के कारण और सबके साक्षी अद्वितीय ब्रह्म भाव को प्राप्त कर लेता है। हे शिष्य! यह अधिकारी पुरुष संन्यास धारण करके ब्रह्मवेत्ता गुरु के मुख से वेदांत शास्त्र का श्रवण करता है। इस प्रकार परमहंस संन्यासी को अन्य सब आचार का ही संपादन करना चाहिए। हे शिष्य! तुमने जो परमहंस संन्यास के विषयों में प्रश्न किया था। सो हमने उसका तथा उसके अधिकारी का स्वरूप और उसे ग्रहण करने की रीति विस्तार पूर्वक कथन कर दी। अब जिस विषय में श्रवण करने की तुमको इच्छा हो उसे पूछ सकते हो। इससे पूर्व एकादश अध्याय में जावाल उपनिषद, गर्भ उपनिषद,अमृतनाद उपनिषद,हंस उपनिषद,क्षुरिका उपनिषद, आरुणेय उपनिषद, ब्रह्म उपनिषद, परमहंस उपनिषद इन एकादश उपनिषदों का अर्थ निरूपण किया गया। अब इस बाहरवें अध्याय में सामवेद के छंदोग्य उपनिषद के अर्थ पर विचार करते हैं। इस संबंध में चर्चा होने पर शिष्य कहने लगा, हे भगवन! पूर्व अध्यायों में आपने एतरेय, कौषीतिक,श्वेताश्वर,कठ, तित्तिर, जावाल आदि ऋषियों द्वारा अपने शिष्यों को बतलाई हुई ब्रह्मविद्या हमको श्रवण कराने की कृपा की। उसमें वैराग्य, योग, उपासना, संन्यास आदि मोक्ष के साधनों की विधि व्यवस्था भी हमने जानी।


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