ईर्ष्या और घृणा

By: Nov 9th, 2019 12:20 am

ओशो

हमारा श्वास लेना बिलकुल प्रेम करने की तरह होना चाहिए। जो व्यक्ति जितना प्रेममय होगा उसकी श्वसन क्रिया भी उतनी ही मद्धिम होगी। जो ईर्ष्या और घृणा से भरा होगा उसकी श्वसन गति उसी तरह व्यक्त होगी। क्या कभी आपने कभी किसी बच्चे को गहरी नींद में सोते देखा है। आप शांति और आनंद की सुंदर छवि उसके रूप में देख सकते हैं, बिलकुल उसी तरह जैसे बुद्ध समाधि की अवस्था में होते हैं। एक और चीज जो आप बच्चे में देखेंगे वह यह कि श्वास लेते हुए उसका पेट बहुत आराम से ऊपर जाता है और नीचे लौट आता है। इसका तात्पर्य यही है कि वह रीद्म के साथ श्वास ले रहा है। तब उसे निहारना अपने आप में अद्भुत आनंद को पाना है। मगर उसकी यह अवस्था हमेशा नहीं रहती है। जब वह स्कूल जाता है, तो यह गायब हो जाती है। यहीं से उसकी महत्त्वाकांक्षा की दौड़ शुरू हो जाती है। वह अन्य छात्रों को परास्त करके कक्षा में सबसे आगे होना चाहता है। इसका सबसे पहला असर उसकी नींद पर होता है और उसकी नींद और शांति भंग हो जाती है। महत्त्वाकांक्षा के कारण ही उसके भीतर डर और जलन की भावना पैदा होती है और प्रेम की भावना खत्म होने लगती है। ये सभी चीजें उसके श्वास लेने के तरीके पर असर डालती हैं और धीरे-धीरे मासूम बच्चा हिंसक और उग्र होने लगता है। मानवीय से अमानवीय होने की पूरी प्रक्रिया के मूल में आप इसी बात को पाएंगे। हम इस संसार में जितनी भी अमानवीयता देखते हैं वह इसी तरह की यात्रा है। आप पाएंगे कि हम बहुत निर्दोष पैदा होते हैं, लेकिन हमारे भीतर बहुत सारे दुर्गुण जगह बना लेते हैं। वह व्यक्ति जो डर और ईर्ष्या से पीडि़त होता है वह चीजों पर मालिकाना या अपना ही हक चाहता है और यह बात उसके मन में घर कर जाती है। श्वास लेने की रिदम आपके भीतर प्रेम, घृणा, मित्रता, खुशी और गुस्से के भाव से सीधे तौर पर जुड़ी होती है। एक व्यक्ति जिसके मन में प्रेम की भावना है वह अलग ढंग से श्वास लेता है, जबकि गुस्से से भरा व्यक्ति अलग तरह से श्वास लेता है। वह व्यक्ति जो हमेशा डरा हुआ रहता है वह हमेशा हिंसक होगा और वह उथली और तेज गति से श्वास लेगा। प्रेम से भरा व्यक्ति सामान्य ढंग से और गहरी श्वास लेता है। श्वास की गति हमारे भीतर चल रहे मनोभावों को व्यक्त करती है। हमारी श्वास हमारे भीतर चल रहे ऊहापोह को व्यक्त करने का काम करती है। अगर हमारे भीतर प्रेम है तो हमारी श्वास गति भी आहिस्ता-आहिस्ता होगी और हम अधिक गहरी श्वास लेंगे। प्रेम हमेशा नया होता है। वह कभी भी पुराना नहीं होता, क्योंकि उसे आप इकट्ठा करके नहीं रखते हैं या उसका संग्रह नहीं किया जा सकता। उसका कोई अतीत नहीं होता, वह हमेशा ताजा होता है जैसे कि ओस की बूंदें। वह तो हर क्षण में रहता है। उसकी निरंतरता का प्रश्न ही नहीं है और इसलिए उसमें परंपरा जैसा कुछ भी नहीं है।


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