ऊना में सात साल से धूल फांक रहीं फाइलें

By: Nov 8th, 2019 12:20 am

नगर परिषद को वर्षों बाद भी नहीं मिली मंजूरी, डोर-टू-डोर गारबेज कलेक्शन बनी शोपीस

ऊना – नगर परिषद ऊना में डोर-टू-डोर गारबेज योजना महज औपचारिकता ही बन चुकी है। इसके पीछे कारण नगर परिषद की ओर से सरकार से नई गाडि़यां खरीदने को लेकर परमिशन नहीं मिलना माना जा रहा है। यदि सरकार की ओर से यह अनुमति दे दी जाती है तो नगर परिषद द्वारा गाडि़यों की खरीद के बाद शहर में सफाई और बेहतर की जा सकती है, लेकिन पिछले करीब सात माह में नगर परिषद की फाइल शहरी विकास विभाग में ही दफन हो चुकी है। ऐसे में इसका खामियाजा यहां के स्थानीय लोगों को भुगतना पड़ रहा है। नगर परिषद द्वारा सफाई कार्य के लिए एक योजना तैयार की थी। इसके तहत शहर में नए डस्टबिन रखने की योजना थी, लेकिन यह योजना एनजीटी के आदेशों के चलते सिरे नहीं चढ़ पाई। वहीं, इसके बाद नगर परिषद द्वारा शहर में सफाई व्यवस्था बनाए रखने के लिए टेंडर प्रक्रिया अपनाई। कई कंपनियों ने इस कार्य को लेकर अपनी रुचि दिखाई। लेकिन नगर परिषद को सबसे कम टैंडर हर माह करीब 10 लाख रुपये का मिला। जोकि एक साल का करीब एक करोड़ रुपए बनता है। इसके बाद नगर परिषद की ओर से प्रस्ताव पारित कर स्वयं ही अपने पैसे से चार गाडि़यां खरीदने का प्रस्ताव पारित किया। बाकायदा इस प्रस्ताव को संबधित उच्च अधिकारियों को भेजा जाएगा, ताकि इसकी अनुमति भी नगर परिषद को मिल पाए, लेकिन पिछले करीब सात माह से नगर परिषद को इसकी अनुमति नहीं मिल पा रही है। नगर परिषद के अनुसार यह एक गाड़ी सात लाख 21 हजार रुपए की है। इसके लिए नगर परिषद को केवल मात्र करीब 31 लाख रुपए की राशि खर्च करनी है। जोकि नगर परिषद के पास पड़ी हुई है, लेकिन शहर विकास विभाग की ओर से नगर परिषद को यह अनुमति नहीं दी गई है। इसका खामियाजा ऊना के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। डोर-टू-डोर गारबेज योजना नाम मात्र के लिए चल रही है। इसके चलते अधिकतर लोगों को अब समस्या झेलनी पड़ रही है। बहरहाल, नगर परिषद को अब शहरी विकास विभाग की अनुमति का इंतजार है। तब तक जैसे तैसे करके ही नगर परिषद द्वारा काम चलाया जाएगा। उधर, इस बारे में नगर परिषद अध्यक्ष अमरजोत सिंह वेदी ने कहा कि सरकार से गाडि़यां खरीदने के लिए अनुमति मांगी गई है। स्वीकृति मिलने के बाद ही आगामी प्रक्रिया शुरू की जाएगी। उन्होंने माना कि शहर के डोर-टू-डोर गारबेज योजना औपचारिकता ही बन गई है। उन्होंने कहा कि फिर भी जैसे तैसे कर काम चलाया जा रहा है।


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