एसपीजी या जेड प्लस

By: Nov 21st, 2019 12:05 am

कांग्रेस सांसदों ने मंगलवार को लोकसभा से बहिर्गमन किया। मुद्दा सार्वजनिक, सामाजिक और राष्ट्रीय नहीं, बल्कि गांधी परिवार से जुड़ा था। गांधी परिवार की सुरक्षा का मामला था। केंद्र सरकार की सुरक्षा आकलन समिति की अनुशंसा थी कि सोनिया गांधी, उनके सांसद-पुत्र राहुल गांधी और बेटी प्रियंका गांधी वाड्रा को विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) के बजाय जेड प्लस सुरक्षा दी जाए। गृह मंत्रालय ने उस आकलन को स्वीकार कर लागू किया था। एसपीजी की श्रेष्ठतम सुरक्षा सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए है और एक निश्चित अवधि तक पूर्व प्रधानमंत्री को भी दी जाती रही है। बीते कुछ अंतराल पहले तक पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह भी एसपीजी के सुरक्षा घेरे में थे। अब उनके लिए सीआरपीएफ  की जेड प्लस सुरक्षा व्यवस्था है। चूंकि गांधी परिवार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का ही परिवार है और लिट्टे के आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी थी, लिहाजा 1991 से लेकर 2019 में अभी तक सभी गांधीजन एसपीजी की सुरक्षा में रहे हैं। यह प्रधानमंत्री का तो विशेषाधिकार है कि पूरी दुनिया में वह जहां भी जाएं, वहां वह एसपीजी के सुरक्षा-घेरे में ही रहेंगे। इस सुरक्षा-व्यवस्था के कायदे-कानूनों को तोड़ना भी एक गंभीर उल्लंघन है। रिकार्ड के मुताबिक, राहुल गांधी ने 2015 से 1892 बार एसपीजी घेरे का उल्लंघन किया या बिना सुरक्षा ही विदेश चले गए। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एसपीजी के बिना ही 24 विदेश यात्राएं की हैं और प्रियंका 78 बार एसपीजी के बिना ही विदेश गईं। सहज सवाल है कि यदि उन यात्राओं के दौरान इन गांधीजनों के साथ कोई अनहोनी घट जाती, तो देश में कोहराम मच जाता। एसपीजी सुरक्षा पर ही सवाल उठाए जाते। राहुल गांधी ने 30 से ज्यादा विदेशी प्रवासों की जानकारी या सूचना तक एसपीजी को नहीं दी। इस गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार को क्या कहेंगे? यदि एसपीजी हटाने का फैसला किसी आधार पर लिया गया है, तो कांग्रेस चिल्ल-पौं कर रही है। सांसद संसद से ही वॉकआउट कर रहे हैं। आपका अपना कुछ छीना नहीं गया है। सुरक्षा गांधी परिवार का विशेषाधिकार भी नहीं है, जो संविधान ने उसे मुहैया कराया हो। एसपीजी का बुलेट प्रूफ वाहन अब भी सीआरपीएफ  की जेड प्लस सुरक्षा के साथ रहेगा, क्योंकि इस सुरक्षा बल के पास पर्याप्त बुलेट प्रूफ  वाहन नहीं हैं। सीआरपीएफ  ने गांधीजनों की सुरक्षा पर नए प्रोटोकॉल के बारे में राज्यों और संघशासित क्षेत्रों को पत्र भी लिख दिए हैं। खुफिया सूचना, यात्रा मैप, पुलिस सहयोग और प्रशासनिक प्रोटोकॉल आदि वैसे ही रहेंगे, जैसे एसपीजी के दौरान थे। चूंकि गांधीजन एसपीजी सुरक्षा के प्रति लापरवाह रहे हैं और उन्हें खतरों की संभावनाएं भी कम हैं, लिहाजा एसपीजी को हटाया गया है। जेड प्लस सुरक्षा भी कम नहीं होती। रक्षा मंत्री और गृह मंत्री आदि भी जेड प्लस सुरक्षा घेरे में हैं, हालांकि उन्हें खतरों की आशंकाएं बराबर होती हैं। कांग्रेस को इसे ‘बदले की राजनीति’ से जोड़ कर नहीं आंकना चाहिए। हम एक लोकतंत्र में रहते हैं। बेशक सरकार एक सर्वाधिक शक्तिशाली ईकाई है, लेकिन वह तानाशाह नहीं हो सकती। एसपीजी  का गठन 1985 में तब किया गया, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने कर दी थी। अक्तूबर, 1984 में उनकी हत्या की गई, तो कमोबेश प्रधानमंत्री की विशेष सुरक्षा पर मंथन किया गया। विदेशों के प्रयोग समझे गए और अंततः एक बेहद हुनरमंद, काबिल, प्रशिक्षित सुरक्षा व्यवस्था सामने आई-एसपीजी। एसपीजी सुरक्षा वाला व्यक्ति इसके घेरों और सुरक्षा-व्यवस्था से इनकार नहीं कर सकता। उसके विदेश प्रवास से पहले ही पूरी टीम  पहुंच कर सभी मुआयने करती है, बंदोबस्त करती है तथा पुलिस के सहयोग से सुरक्षा-घेरे तय किए जाते हैं। शायद यही वजह है कि हमारे प्रधानमंत्री 1991 के बाद बेहद सुरक्षित रहे हैं। किसी पर आक्रमण का प्रयास तक नहीं किया जा सका। गांधीजन और कांग्रेस इसे अपनी निजी अहं और प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बना सकती, क्योंकि ये मौलिक अधिकार नहीं हैं। यह परिस्थितिजन्य जरूरत है, जो सरकार उपलब्ध कराती रही है। आपत्ति तब होनी चाहिए थी, जब एसपीजी भी हटा ली जाती और एक नाममात्र की सुरक्षा-व्यवस्था की जाती।


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