ऐतिहासिक प्रेम प्रसंग की अभिव्यक्ति है ‘मोरां मेरी जान’

By: Nov 24th, 2019 12:05 am

पुस्तक समीक्षा

एक ही समय में संवेदनशील कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक, शोधार्थी तथा अनुवादक होने के अलावा शब्दकोश, बाल साहित्य एवं साक्षात्कार जैसे तमाम क्षेत्रों में समान अधिकार रखने वाले बहुमुखी प्रतिभा के धनी डा. धर्मपाल साहिल ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में कुशलतापूर्वक सृजन किया है। हाल ही में उन्होंने नाटक विधा में प्रवेश करते हुए महाराजा रणजीत सिंह के जीवन के उस पक्ष को उघाड़ने का सफल प्रयास किया है, जिस पर अधिकतर इतिहासकारों ने मौन रहना ही बेहतर समझा है। पांच दरियाओं की भूमि पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का नाम आदर से लिया जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह एक पराक्रमी योद्धा एवं कुशल राज्य प्रबंधक थे, लेकिन सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ उनका अपना निजी जीवन भी था। फौलाद की तरह नज़र आने वाले महाराजा के सीने में धड़कता नाज़ुक दिल भी था, जो लाहौर विजय के बाद मोरां को देखते ही अपना आपा खो बैठता है। नाटककार ने बड़ी ही कुशलता के साथ महाराजा की उज्ज्वल छवि को बेदा़ग रखते हुए उनकी मानवीय ज़रूरतों और कमज़ोरियों को पाठकों के सामने ब़खूबी उभारा है। नाटक में महाराजा रणजीत सिंह के अनिद्य सुंदरी तथा नर्तकी मोरां के प्रति एकतरफा प्रेम प्रसंग को रूमानियत से लबरेज़ संवादों द्वारा महाराजा की मनोवस्था को उभारा गया है। लेखक की रचनात्मक विशेषता इस बात में भी है कि उन्होंने उस नाज़ुक व़क्त की दशा तथा दिशा को ध्यान में रखते हुए महाराजा का अपने विश्वासपात्र और व़फादार सहायक लहना सिंह के साथ जो वार्तालाप प्रस्तुत किया है, वह पाठकों को सहज ही अपने ओर खींचता है। एक महानायक की मनोदशा तथा मनोविज्ञान को पूरी शालीनता तथा व्यग्रता के साथ इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि वह कहीं भी नाटकीय नहीं लगता। नाटककार ने अपनी कल्पनाशीलता को ऊंचाई प्रदान करते हुए महाराजा-मोरां-जुबैदा-लहना सिंह आदि पात्रों के संबंधों को डोर में इस प्रकार बांधा है कि वह मौजूदा यथार्थ से टकराती प्रतीत होती है। नाटक में लेखक द्वारा उपयुक्त स्थानों पर उर्दू के शे’अरों का इस्तेमाल जहां नाटक को काव्यात्मकता प्रदान करता है; वहीं उसमें रोमांस पैदा कर गतिशीलता को बढ़ाता है। लेखक द्वारा उर्दू, हिंदी, फारसी, पंजाबी तथा आंचलिक शब्दों का सटीक प्रयोग भी नाटक को प्रभावशाली बनाता है। ये शब्द नाटक के माध्यम से धरोहर स्वरूप संभाले गए हैं। ये सभी प्रयोग नाटक को नया आयाम स्थापित करने में सहायक सिद्ध होते हैं। सशक्त पटकथा, चुस्त संवाद, उपयुक्त वातावरण, पात्र चयन, काव्यात्मक मुहावरा तथा नाटकीयता अंश ‘मोरां मेरी जान’ नाटक को सफल नाटकों की कतार में ला खड़ा करते हैं। मंचन की दृष्टि से नाटक में वे सभी तत्त्व मौजूद हैं जो सफल मंचन हेतु अपेक्षित होते हैं। पाठकों की भांति यह नाटक अपने दर्शकों को भी बांधने में सफल रहेगा। ‘मोरां मेरी जान’ पंजाबी संस्कृति की कई सशक्त परंपराओं पर पहरा देकर नई पीढ़ी को उसकी महत्ता से अवगत कराता है। इतिहास के अनछुए प्रसंग को अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से नाटक विधा द्वारा जीवंतता प्रदान करना डा. धर्मपाल साहिल की उपलब्धि कही जा सकती है। कुल 72 पृष्ठों वाली इस पुस्तक का मूल्य 150 रुपए है; जिसे प्रीत साहित्य सदन, समराला चौक, लुधियाना द्वारा प्रकाशित किया गया है।  रोचक ऐतिहासिक घटना पर आधारित यह नाट्य रचना संग्रह के काबिल है।

-अजय पाराशर


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App