कब खत्म होंगे रूढि़वादी अंधविश्वास

By: Nov 12th, 2019 12:06 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

हिमाचल के मंडी जिला के सरकाघाट क्षेत्र में देव आस्था व अंधविश्वास के नाम पर जो शर्मनाक व दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई है वह यकीनन हमारी देव परंपराओं, आस्था व विश्वास को सोशल मीडिया में वायरल हो रहे वीडियो के माध्यम से पूरे विश्व में कलंकित कर रही है, जो हमारी समृद्ध संस्कृति के लिए किसी काले दिवस से कम नहीं…

मेरी पुस्तक ‘हिमाचल प्रदेश एक सांस्कृतिक परिदृश्य’ का विमोचन इस वर्ष जब मैंने हिमाचल के तत्कालीन राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी से करवाया तो पुस्तक में समाहित लगभग सभी विषयों जैसे बलि प्रथा, नाग परंपरा, ऋषि परंपरा यक्ष, भूत-प्रेत पर विश्वास , देव परंपरा, देवता के कार कारिंदे आदि पर उन्होंने चर्चा करते हुए कहा कि अब लेखकों को इन मान्यताओं व विश्वासों से ऊपर उठकर, इन मान्यताओं में जो रूढि़वादी परंपराएं हैं, जो जाति प्रथा को लेकर भेदभाव हैं उनके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। देव परंपरा के नाम पर जो गांव के भोले-भाले लोगों को डराया जाता है उनका अपनी कलम से पुरजोर विरोध करना चाहिए। आज के संदर्भ में उनके इस कथन में कोई दोराय नहीं। यदा-कदा देव परंपरा के नाम पर जो शर्मनाक रूढि़वादी परंपराएं घटित होती हैं वहीं हमारी संस्कृति को प्रश्न चिन्ह के दायरे में लाती हैं। हिमाचल के मंडी जिला के सरकाघाट क्षेत्र में देव आस्था व अंधविश्वास के नाम पर जो शर्मनाक व दिल दहला देने वाली घटना घटित हुई है वह यकीनन हमारी देव परंपराओं, आस्था व विश्वास को सोशल मीडिया में वायरल हो रहे वीडियो के माध्यम से पूरे विश्व में कलंकित कर रही हैं, जो हमारी समृद्ध संस्कृति के लिए किसी काले दिवस से कम नहीं। दुख इस बात  का है कि आमजन, व्यवस्था व समाज के प्रबुद्ध वर्ग वयोवृद्ध महिला को भीड़ में कलंकित होते हुए बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाए। एक फौजी की वीर पत्नी जो 25 वर्ष की उम्र से वैधव्य जीवन जीते हुए मुश्किल से अपने बच्चों का लालन-पालन कर सिर उठाकर जीवन जी रही है, उसका आदर, उसकी मदद करने के बजाय उसे डायन ठहराकर उसका मुंह काला कर जूते की माला पहनाकर उसे उम्र के इस पड़ाव पर सार्वजनिक रूप से घोर अपमानित कर, लचर पुलिस व्यवस्था के चलते न केवल देश आस्था अपितु मानवता, दया व प्रशासनिक व्यवस्था पर कुठाराघात किया गया है। इस कुकृत्य में न केवल कार कारिंदे वरना आमजन व पुलिस भी शामिल है जो देव संस्कृति को कलंकित कर रहे हैं, रूढि़वादी प्रथा को पुष्ट कर रहे हैं व अपनी ड्यूटी छोड़कर इस अमानवीय कृत्य के आगे नतमस्तक हुए हैं। राजदेई नामक इस वृद्ध महिला के घर में न केवल तोड़-फोड़ की गई अपितु पंच परमेश्वर की पंचायत में उसकी शिकायत को दरकिनार किया गया व अंत में दर्दनाक शर्मनाक घटना को अंजाम दिया गया, जिसके लिए पूरी सामाजिक व देव व्यवस्था दोषी है। ये पहली बार नहीं हुआ है, ऐसी घटनाएं न केवल हिमाचल में अपितु देश के दूसरे प्रांतों में भी देखने सुनने को मिलती हैं। पर अफसोस इन घटनाओं का घटित होना लगातार जारी है।  आखिर ऐसा कौन सा व्यक्ति है जिसके जीवन काल में कोई अनिष्ट नहीं होता, ऐसा कौन सा स्थान है जहां मानवीय छेड़छाड़ से सूखा, दुर्घटनाएं, अकाल मृत्यु, अतिवृष्टि या बीमारी नहीं होती! इसके लिए भला एक व्यक्ति या लाचार वृद्ध औरत या कोई भी एक इनसान  कैसे जिम्मेदार हो सकता है! यह सब कहीं उसे असहाय जानकर, उसे निर्वासित कर उसकी अचल संपत्ति हड़पने की साजिश तो नहीं। 

जहां तक मेरी सोच है कुविचार, कुसंस्कार, अत्याचार, अतिरूढि़वाद, अमानवीय व्यवहार, दुराचार ये किसी भी प्राणी के डायन या राक्षस या पर प्रेत होने के कुलक्षण हैं और मैं व्यक्तिगत तौर पर उन व्यक्तियों व उन अंधविश्वासियों और अपनी ड्यूटी से विमुख उस व्यवस्था को प्रेत मानती हूं जिन्होंने आदर योग्य शहीद फौजी की पत्नी के साथ यह कुकृत्य किया है। पीड़ा इस बात की  कि एक भी व्यक्ति, औरत, सामाजिक कार्यकर्ता उस वृद्ध महिला की मदद को आगे नहीं आया। हमारी संस्कृति बहुत समृद्ध रही है, पर इनमें से अब बहुत सारी कुत्सित रूढि़वादी परंपराओं को खत्म करने का समय आ गया है। बहुत दुख होता है यह जानकर कि एक विशेष जाति के लोग जो देवताओं की मूर्ति, मुखौटे बनाते हैं, उन्हें फिर न केवल उसी देवता के प्रतिष्ठान से वंचित रखा जाता है अपितु उनसे जीवन पर्यंत छुआछूत की भावना रखी जाती है। गांवों में किसी को देवता लगवाना, टोने-टोटके  का भय रहना, किसी भी अप्रत्याशित घटना के लिए किसी भी व्यक्ति को संदेह के दायरे में लाना, पशु बलि प्रथा, देवता का दंड, स्त्रियों से देवता स्थल पर धार्मिक भेदभाव, देवरथ को उठाने के लिए स्त्रियों से भेदभाव और भी बहुत सारी विसंगतियां जो देवताओं व धर्म के ठेकेदारों ने अपने मन से अपनी सुविधानुसार पैदा करके सदैव गांव के भोले-भाले लोगों  व स्त्रियों को हमेशा डराया धमकाया है। जबकि हमारे किसी भी ग्रंथ में, वेद में कहीं भी ईश्वर को धरती के किसी भी प्राणी को दंडित करने की व्याख्या नहीं है। हमारी थ्यूरी कर्म प्रधान है। हमारे सुख-दुख, लाभ-हानि केवल हमारे कर्मों का फल हैं। सभी धर्मों में ‘ईश्वर’ मात्र प्रेम का दूसरा नाम है। तो फिर ये जो धर्म के ठेकेदार हैं उन्हें प्रशासन, विभाग व सरकार कठोर से कठोर दंड दे जो मानवता को यूं सरेराह शर्मसार कर रहे हैं। 


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