कमर में काला डोरा गद्दियों की पहचान है

By: Nov 20th, 2019 12:18 am

गद्दी स्त्री, पुरुष, बालक सभी कमर में काले रंग का ऊनी रस्सा (डोरा) बांधे रहते हैं। यह रस्सा लगभग एक सौ हाथ  लंबा होता है। इसे गद्दी गात्री कहते हैं। रात्रि को गात्री उतारी जाती है और सुबह उठते ही फिर से लगा ली जाती है। गद्दी का धन है भेड़-बकरी, पश्चिम एशिया से आर्यों का जो प्रथम काफिला आया था, उसी में से कुछ लोग संभवतः गद्दियों के पूर्वज रहे होंगे…

गतांक से आगे …         

सर्दियों में ये ठंडे इलाके छोड़ कर निम्न क्षेत्रों में अपने पशुओं  समेत आ जाते हैं और  गर्मी पड़ने पर ऊपरी क्षेत्रों में  चले जाते हैं। सर से पैर तक ऊनी वस्त्रों में खुशी के साथ भेड़ बकरियों के बीच बांसुरी बजाता गद्दी कहीं भी दूर से पहचाना जाता है। गद्दी स्त्री, पुरुष बालक सभी कमर में काले रंग का ऊनी रस्सा (डोरा) बांधे रहते हैं। यह रस्सा लगभग एक सौ हाथ  लंबा होता है। इसे गद्दी गात्री कहते हैं। रात्री को गात्री उतारी जाती है और  सुबह उठते ही फिर से लगा ली जाती है। गद्दी का धन है भेड़ बकरी, पश्चिम एशिया से आर्यों का जो प्रथम काफिला आया था, उसी में से कुछ लोग संभवतः गद्दियों के पूर्वज रहे होंगे। गद्दी आदिम जाति की स्वतंत्र भाषा है।  ये लोग सर्दियों में पालमपुर, बिलासपुर और उससे भी नीचे के भागों तक अपनी भेड़ बकरियों के साथ उतर आते हैं। गर्मियों में इनकी भेड़ें ऊंचाई के डांडों पर चली जाती हैं, जहां गद्दी खुले मैदानों में अपनी भेड़ों के साथ डोरा डालते हैं। कुगती, डांडे और लाहौल में गद्दी अधिकतर अपनी गर्मियां बिताते हैं। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि गद्दी मध्यकालीन भारत केराजपुतों के वंशज हैं। जब मुगल व अन्य आक्रमणकारियों ने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया तो कुछ राजपूत अपने परिवारों के साथ इस दुर्गम इलाके में चले आए तथा पुरुष लोग पुनः लड़ने के लिए मैदानों में चले गए व युद्ध में मारे गए। कुछ इंतजार के उपरांत उनकी स्त्रियों ने अपने नौकरी से विवाह कर लिया तथा उनकी ही संताने ये गद्दी है। गद्दी प्रधानतया चंबा जिले की भरमौर सब तहसील में रहते हैं। इसे गदियार भी कहते हैं। भरमौर 9वीं शताब्दी के पूर्व चरण तक चंबा की राजधानी रहा है। यहां 54 सिद्धों ने मनीमहेश कैलाश की यात्राके बाद भरमौर में समाधि ली थी। भरमौर को इसलिए भी चौरासी कहा जाता है। चौरासी के पुनरुद्वार में श्री नागा बाबा जयकृष्ण गिरि जी  ने विशेष्ज्ञ प्रयत्न किया है। श्री नागा बाबा जी की गद्दी, मनीमहेश का अवतार मानते हैं। यहां 12वीं शताब्दी पुराना शिव-मंदिर है तथा अन्य भी अनेक देवस्थान हैं। भरमौर के जीवित देवता तो नागा बाबा ही हैं। 1951 में भरमौर सब तहसील की कुल आबादी 39,945 थी। इस में पुरुष 16338 और स्त्रियां 14, 547 थे। सारी आबादी में साक्षर व्यक्ति बढ़ गए हैं। सरकार प्रदेश में अब अनेक स्कूल खोले हैं।                    -क्रमशः

 


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