किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

By: Nov 2nd, 2019 12:15 am

अपने पुत्र विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद माता सत्यवती अपने सबसे पहले जन्मे पुत्र व्यास के पास गईं। अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए व्यास मुनि विचित्रवीर्य की दोनों पत्नियों के पास गए और अपनी यौगिक शक्तियों से उन्हें पुत्र उत्पन्न करने का वरदान दिया। उन्होंने अपनी माता से कहा कि वे दोनों रानियों को एक-एक कर उनके पास भेजें और उन्हें देखकर जो जिस भाव में रहेगा उसका पुत्र वैसा ही होगा। तब पहले बड़ी रानी अंबिका कक्ष में गईं लेकिन व्यासजी के भयानक रूप को देखकर डर गई और भय के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं। इसलिए उन्हें जो पुत्र उत्पन्न हुआ, वह जन्मांध था। वह जन्मांध पुत्र था धृतराष्ट्र। उनकी नेत्रहीनता के कारण हस्तिनापुर का महाराज उनके अनुज पांडु को नियुक्त किया गया। पांडु की मृत्यु के बाद वे हस्तिनापुर के महाराज बने…

-गतांक से आगे…

शल्य

शल्य माद्रा (मद्रदेश) के राजा थे, जो पाण्डु के सगे साले और नकुल व सहदेव के मामा थे। महाभारत में दुर्योधन ने उन्हें छल द्वारा अपनी ओर से युद्ध करने के लिए राजी कर लिया। उन्होंने कर्ण का सारथी बनना स्वीकार किया और कर्ण की मृत्यु के पश्चात युद्ध के अंतिम दिन कौरव सेना का नेतृत्व किया और उसी दिन युधिष्ठिर के हाथों मारे गए। इनकी बहन माद्री, कुंती की सौत थी और पाण्डु के शव के साथ चिता पर जीवित भस्म हो गई थी। कर्ण का सारथी बनते समय शल्य ने यह शर्त दुर्योधन के सम्मुख रखी थी कि उसे स्वेच्छा से बोलने की छूट रहेगी, चाहे वह कर्ण को भला लगे या बुरा। वे कर्ण के सारथी तो बन गए, किंतु उन्होंने युधिष्ठिर को यह भी वचन दे दिया कि वे कर्ण को सदा हतोत्साहित करते रहेंगे। दूसरी तरफ  कर्ण भी बड़ा दंभी था। जब भी कर्ण आत्मप्रशंसा करना आरंभ करता, शल्य उसका उपहास करते और उसे हतोत्साहित करने का प्रयत्न करते। शल्य ने एक बार कर्ण को यह कथा सुनाई : एक बार वैश्य परिवार की जूठन पर पलने वाला एक गर्वीला कौआ राजहंसों को अपने सम्मुख कुछ समझता ही नहीं था। एक बार एक हंस से उसने उड़ने की होड़ लगाई और बोला कि वह सौ प्रकार से उड़ना जानता है। होड़ में लंबी उड़ान लेते हुए वह थक कर महासागर में गिर गया। राजहंस ने प्राणों की भीख मांगते हुए कौए को सागर से बाहर निकाल अपनी पीठ पर लादकर उसके देश तक पहुंचा दिया। शल्य बोला, ‘इसी प्रकार कर्ण, तुम भी कौरवों की भीख पर पलकर घमंडी होते जा रहे हो।’ इस पर कर्ण बहुत रुष्ट हुआ, पर युद्ध पूर्ववत चलता रहा।

धृतराष्ट्र

महाभारत में धृतराष्ट्र हस्तिनापुर के महाराज विचित्रवीर्य की पहली पत्नी अंबिका के पुत्र थे। उनका जन्म महर्षि वेद व्यास के वरदान स्वरूप हुआ था। हस्तिनापुर के ये नेत्रहीन महाराज सौ पुत्रों और एक पुत्री के पिता थे। उनकी पत्नी का नाम गांधारी था। बाद में ये सौ पुत्र कौरव कहलाए। दुर्योधन और दुःशासन क्रमशः पहले दो पुत्र थे।

जन्म

अपने पुत्र विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद माता सत्यवती अपने सबसे पहले जन्मे पुत्र व्यास के पास गईं। अपनी माता की आज्ञा का पालन करते हुए व्यास मुनि विचित्रवीर्य की दोनों पत्नियों के पास गए और अपनी यौगिक शक्तियों से उन्हें पुत्र उत्पन्न करने का वरदान दिया। उन्होंने अपनी माता से कहा कि वे दोनों रानियों को एक-एक कर उनके पास भेजें और उन्हें देखकर जो जिस भाव में रहेगा उसका पुत्र वैसा ही होगा। तब पहले बड़ी रानी अंबिका कक्ष में गईं लेकिन व्यासजी के भयानक रूप को देखकर डर गई और भय के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं। इसलिए उन्हें जो पुत्र उत्पन्न हुआ, वह जन्मांध था। वह जन्मांध पुत्र था धृतराष्ट्र। उनकी नेत्रहीनता के कारण हस्तिनापुर का महाराज उनके अनुज पांडु को नियुक्त किया गया। पांडु की मृत्यु के बाद वे हस्तिनापुर के महाराज बने। 


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