चने के झाड़ पर शिवसेना
एनसीपी के एक बड़े नेता का कहना था कि चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस डींगें हांकते थे कि भाजपा ने पवार साहब पर रहम किया कि उनकी पार्टी के कुछ ही नेताओं को पार्टी में शामिल किया। नहीं तो ज्यादातर एमएलए और एमपी भाजपा में आने को आतुर थे। एनसीपी के उस नेता का कथन आज पूरी तरह प्रासंगिक है, क्योंकि पूरा महाराष्ट्र ही नहीं, देश भी जान गया है कि किसने किस पर रहम किया है। आज फडणवीस पूर्व मुख्यमंत्री हैं, भाजपा-शिवसेना गठबंधन टूट चुका है, मुख्यमंत्री बनाने की शिवसेना की महत्त्वाकांक्षा फिलहाल अधूरी है, महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है। जो शख्स इस परिदृश्य का ‘रिंगमास्टर’ साबित हुआ है, वह शरद पवार के अलावा दूसरा कोई नहीं हो सकता। पवार को एक ‘शातिर’ राजनेता माना जाता है। महाराष्ट्र में उन्हें ‘अदृश्य शक्ति’ के तौर पर संबोधित किया जाता रहा है। उन्होंने ही मुख्यमंत्री की कुर्सी का लालच दिखा कर शिवसेना और उद्धव ठाकरे को ‘चने के झाड़’ पर चढ़ाया और फिर सरकार न बनने देकर झाड़ से नीचे उतरने को बाध्य भी किया। अब महाराष्ट्र में सियासत और सौदेबाजी का दौर शुरू होगा, तो उसके सूत्रधार भी पवार ही होंगे। चुनाव से पहले 19 नेता एनसीपी छोड़कर भाजपा में गए थे, लेकिन पवार के भावुक और धुआंधार प्रचार ने ज्यादातर को पराजित किया। यहां तक कि छत्रपति शिवाजी के वंशज भी भाजपा में होने के बावजूद जीत नहीं पाए। यह पवार की राजनीति के प्रति महाराष्ट्र की स्वीकृति है। भाजपा के व्यापक और महंगे प्रचार के बावजूद एनसीपी के 54 विधायक जीतकर आए। फिलहाल शिवसेना की सरकार बनने के कोई आसार नहीं हैं, क्योंकि एनसीपी और कांग्रेस ने अभी तो साझा कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं, नीतियों, साझा सरकार के ब्लू प्रिंट और फार्मूले पर सोचना और विमर्श करना शुरू किया है। सूत्रों का मानना है कि पवार, एनसीपी और शिवसेना का मुख्यमंत्री, अढाई-अढाई साल की मांग रख सकते हैं और पूरे पांच साल के लिए कांग्रेस का उपमुख्यमंत्री चाहते हैं। सरकार की स्थिरता के लिए पवार चाहते हैं कि कांग्रेस सरकार में शामिल हो। बुनियादी सवाल है कि क्या शिवसेना इन शर्तों के लिए तैयार होगी। कभी शिवसेना सरकार के मुख्यमंत्री रहे और मौजूदा भाजपा नेता नारायण राणे का दावा है कि शिवसेना अंततः एनसीपी-कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी, लिहाजा ऐसी स्थिति आने वाली है कि शिवसेना के लिए सत्ता हासिल करने का कोई विकल्प नहीं बचेगा। हालांकि शिवसेना अभी सरकार बनाने और एनसीपी-कांग्रेस के साथ विरोधाभासी समझौता करने के प्रति आशान्वित है, लेकिन उद्धव ठाकरे से जब मीडिया ने सवाल किया कि क्या भाजपा से फिर बात संभव है, तो उन्होंने कहा-कुछ भी संभव है। बहरहाल महाराष्ट्र राजस्व की दृष्टि से देश का सबसे सम्पन्न राज्य है। विधायक बनने के लिए नेतागण औसतन 5-10 करोड़ रुपए सामान्य तौर पर खर्च करते हैं, लिहाजा वे फिलहाल चुनाव के पक्ष में नहीं हैं और यथाशीघ्र सरकार बनाए जाने के पक्षधर हैं। कांग्रेस के ज्यादातर विधायक अपनी शख्सियत और दौलत पर जीत कर आए हैं, लिहाजा देर-सवेर वे उस पक्ष में जा सकते हैं, जिसकी सरकार बनने की संभावनाएं सर्वाधिक होंगी। वहां विधायकों की सौदेबाजी भी महंगे स्तर पर तय होती है। विधायकों में पार्टीगत निष्ठा बहुत कम होती है। चूंकि राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है, लेकिन सरकार बनने की संभावनाएं अब भी बराबर हैं, लिहाजा आने वाले दिनों में विधायकों की मंडी देख सकेंगे। उद्धव ‘रिट्रीट’ होटल जाकर विधायकों से मिले हैं, पवार भी विधायकों से मिल रहे हैं, लेकिन कांग्रेस विधायकों को जयपुर होटल में रखा गया है। आखिर यह कब तक संभव है? कांग्रेस विधायकों में टूट-फूट की ज्यादा संभावनाएं हैं, लिहाजा कोशिशें जारी रहेंगी कि सरकार यथाशीघ्र बने। महाराष्ट्र में जो भी सरकार सामने आएगी, बेशक पवार ही उसके ‘किंगमेकर’ होंगे, क्योंकि चाबी उन्हीं के हाथ में है।
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