जीवन का अंतिम उपहार

By: Nov 2nd, 2019 12:15 am

ओशो

मृत्यु के संबंध में सबसे पहली बात समझने जैसी है कि मृत्यु एक झूठ है। मृत्यु होती ही नहीं, यह सर्वाधिक भ्रामक बातों में से एक है। मृत्यु एक और झूठ की छाया है। उस दूसरे झूठ का नाम है अहंकार। मृत्यु अहंकार की छाया है। क्योंकि अहंकार है, इसलिए मृत्यु भी प्रतीत होती है। मृत्यु को जानने, मृत्यु को समझने का रहस्य स्वयं मृत्यु में नहीं है। तुम्हें अहंकार के अस्तित्त्व की गहराई में जाना होगा। तुम्हें देखना और निरीक्षण करना और ध्यान देना होगा कि यह अहंकार क्या है और जिस दिन तुम यह पा लोगे कि अहंकार है ही नहीं कि यह कभी था ही नहीं। यह केवल प्रतीत होता था क्योंकि तुम सजग नहीं थे, यह प्रतीत होता था क्योंकि तुमने अपने अस्तित्त्व को अंधकार में रखा हुआ था। जिस दिन यह समझ में आ जाता है कि अहंकार अचेतन मन की रचना है, अहंकार विलीन हो जाता है और उसके साथ ही मृत्यु तिरोहित हो जाती है। तुम्हारा वास्तविक स्वरूप शाश्वत है। जीवन न पैदा होता है न मरता है। लहरें आती हैं और जाती हैं, सागर बना रहता है, लेकिन लहरें हैं क्या? केवल आकृतियां, सागर के साथ हवा का खेल। लहरों का कोई ठोस अस्तित्त्व नहीं है। ऐसे ही हम हैं लहरें, खिलौने। लेकिन अगर हम लहरों की गहराई में झांके तो वहां एक सागर है और इसकी शाश्वत गहराई है और इसका अथाह रहस्य है। अपनी सत्ता की गहराई में झांको और तुम सागर को पाओगे और उस सागर का अस्तित्त्व है, सागर सदा है। तुम यह नहीं कह सकते यह था और तुम यह भी नहीं कह सकते यह होगा, तुम इसके लिए केवल एक काल का उपयोग कर सकते हो, वर्तमान काल यह है। धर्म की पूरी खोज यही है। खोज केवल यही है, जो वास्तव में है उसको पा लेना। हमने उन चीजों को स्वीकार कर लिया है जो वास्तव में हैं ही नहीं और उनमें सबसे बड़ी और सबसे केंद्रीय चीज है अहंकार और निःसंदेह इसकी सबसे बड़ी छाया बनती है और वह छाया मृत्यु है। जो लोग मृत्यु को सीधे समझने जाएंगे, वे कभी भी इसके रहस्य में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। वे अंधकार के साथ लड़ रहे होंगे। अंधकार का अस्तित्त्व नहीं है, तुम उसके साथ नहीं लड़ सकते। प्रकाश लाओ और फिर अंधकार है ही नहीं। हम अहंकार को कैसे जान सकते हैं? अपने जीवन में थोड़ी और सजगता लाओ। प्रत्येक कृत्य को पहले से कम यांत्रिक ढंग से करो और तुम्हें कुंजी हाथ लग गई। अगर तुम चल रहे हो, तो रोबोट की भांति मत चलो। इस भांति मत चलते रहो जैसे तुम सदा चलते रहे हो, इसे यांत्रिक ढंग से मत करो। इसमें थोड़ी सजगता लाओ, धीमे हो जाओ, प्रत्येक कदम पूरी सजगता के साथ उठाओ। छोटे-छोटे कार्यों में इस तरह का प्रयास करो। तुम्हें कोई बहुत बड़ी चीजें नहीं करनी हैं। खाना खाते हुए, स्नान करते हुए, तैरते हुए, चलते हुए, बात करते, अपना भोजन पकाते, अपने कपड़े धोते हुए प्रक्रिया को अयांत्रिक कर दो। अयांत्रिक इस शब्द को याद रखो, जागरूक होने का इसमें पूर्ण रहस्य है। मन एक रोबोट है। रोबोट की अपनी एक उपयोगिता है, इसी ढंग से मन कार्य करता है। जब तुम इसे सीखते हो, प्रारंभ में इसके प्रति सजग रहो। उदाहरण के लिए अगर तुम तैरना सीखते हो, तो तुम बहुत सजग होते हो,क्योंकि तब जीवन खतरे में है। तुम्हें सजग होना पड़ता है, तुम्हें बहुत चीजों के प्रति सजग होना पड़ता है। यही है हम जिसे सीखना कहते हैं।


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