तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Nov 30th, 2019 12:25 am

मूर्ति को नमन कर मैं डोलमा का अनुसरण करता जा रहा था। अनेक भव्य कक्ष पार कर एक विशाल कक्ष में आया। संपूर्ण कक्ष बड़े-बड़े काले पत्थरों का बना था और उसमें इस प्रकार की व्यवस्था थी कि भरपूर प्रकाश आ रहा था। पत्थरों का काला चमकीला रंग प्रकाश के कारण कमरे को एक विचित्र-सा रोमांचक रूप दे रहा था। सामने ही पत्थर के एक आसन पर श्रोष्ठि नोमग्याल बैठे थे। ठीक पीछे आशीर्वाद देती भगवान बुद्ध की आदमकद प्रतिमा खड़ी थी…

-गतांक से आगे…

मूर्ति बड़ी ही विकराल थी। बरबस आंखें उस पर टिक जाती थीं। गोम्फा का विशाल द्वार पार कर भीतर आने पर काफी बड़ा आंगन-सा था। बहुत ही धीमी पर आनंददायक और चित्त को प्रसन्न करने वाली मादक सुगंध से मन प्रसन्न हो गया। आंगन के दक्षिण भाग में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा थी। पद्मासन में वह ध्यानस्थ थे। नेत्र बंद, पर होंठों पर मोहक मुस्कान थी। मूर्ति को नमन कर मैं डोलमा का अनुसरण करता जा रहा था। अनेक भव्य कक्ष पार कर एक विशाल कक्ष में आया। संपूर्ण कक्ष बड़े-बड़े काले पत्थरों का बना था और उसमें इस प्रकार की व्यवस्था थी कि भरपूर प्रकाश आ रहा था। पत्थरों का काला चमकीला रंग प्रकाश के कारण कमरे को एक विचित्र-सा रोमांचक रूप दे रहा था। सामने ही पत्थर के एक आसन पर श्रोष्ठि नोमग्याल बैठे थे। ठीक पीछे आशीर्वाद देती भगवान बुद्ध की आदमकद प्रतिमा खड़ी थी। आसन पर आसीन व्यक्ति और सामने खड़े प्रत्येक व्यक्ति को आशीर्वाद देती मुद्रा में बनी वह मूर्ति अत्यंत भव्य थी। इस पर दृष्टि पड़ते ही नतमस्तक हो जाना बिल्कुल स्वाभाविक था। मैं बुद्ध की प्रतिमा के सामने नतमस्तक हो गया। नोमग्याल के होठों पर मुस्कान थिरक रही थी – ‘सब कुशल तो है।’ ‘आपका आशीर्वाद है।’ ‘यात्रा में कष्ट तो हुआ होगा?’ ‘भला बिना कष्ट के कुछ प्राप्त होता है क्या?’ नोमग्याल हंस पड़े। बड़ी मीठी मोहक हंसी थी। सारा वातावरण सुगंध से भर गया। फिर कुछ देर सोचकर बोले – ‘तो कुछ प्राप्त करने आए हो? कुछ मिला?’ ‘आंखें खुली और कान सतर्क रखने पर बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है।’ नोमग्याल का तेजस्वी आनन इस कथन पर खिल गया। वे बोले – ‘हां। जिज्ञासु ऐसा ही होता है।’ उन्होंने डोलमा को संकेत किया। डोलमा उनका संकेत समझ गया। वह एक आसन उठा लाया। वह आसन ऊंचाई में नोमग्याल के आसन से कुछ छोटा था। बैठने का संकेत पाकर नमन कर मैं बैठ गया। तभी मुस्कराती हुई जिसी आ गई। उसका गुलाबी सपाट चेहरा ओस से भीगे फूल की तरह खिल रहा था। उसने श्रद्धा और अत्यंत परंपरागत तरीके से श्रोष्ठि नोमग्याल का अभिवादन किया। तिब्बती भाषा में जाने क्या बोलकर वह चली गई कि नोमग्याल ने कुछ पल आश्चर्य से देखा। फिर मुस्करा पड़े। ‘अभी तो रहोगे न?’ ‘जैसी आपकी आज्ञा…।’ ‘कान सतर्क और आंखें खुली रखना। एक दो रोज में शायद कुछ मिल जाए।’ ‘आपकी कृपा बनी रहे, यही पर्याप्त है।’ नोमग्याल ने डोलमा को फिर संकेत दिया। डोलमा पद्मचक्र ले आया। ‘इसको देखो।’ चकित डोलमा ने वह खूबसूरत रंग-बिरंगा पद्मचक्र दे दिया।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App