पटवारी परीक्षा, बेरोजगारी की पराकाष्ठा

By: Nov 21st, 2019 12:06 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

समाचारों की सुनें तो पटवारी के मात्र 1194 पदों के लिए 3,02,125 आवेदन पत्र प्रदेश सरकार को मिले जिससे हिमाचल में रोजगार की दशा स्पष्ट हो जाती है। इस परीक्षा को लेकर, इसके प्रश्न पत्र को लेकर व परीक्षा के समय परीक्षार्थियों के साथ हुई परेशानियों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी हो-हल्ला किया गया, यहां तक कि परीक्षा रद्द तक होने की बात भी उठी…

हाल ही में 17 नवंबर को हुई प्रदेश सरकार की पटवारी की परीक्षा ने न केवल हिमाचल में  बेरोजगारी पर प्रश्न चिन्ह लगाया है अपितु पूरे प्रदेश को स्तब्ध व चिंतित भी किया है।  समाचारों की सुनें तो पटवारी के मात्र 1194 पदों के लिए 3,02,125 आवेदन पत्र प्रदेश सरकार को मिले जिससे हिमाचल में रोजगार की दशा स्पष्ट हो जाती है। इस परीक्षा को लेकर, इसके प्रश्न पत्र को लेकर व परीक्षा के समय परीक्षार्थियों के साथ हुई परेशानियों को लेकर सोशल मीडिया पर काफी हो-हल्ला किया गया, यहां तक कि परीक्षा रद्द तक होने की भी बात उठी। यह बात भी उठी है कि कुछ परीक्षार्थियों के परीक्षा केंद्र गलत मार्क हुए थे जिससे उन्हें खासी परेशानी का सामना करना पड़ा और कुछ परीक्षार्थियों को प्रश्न पत्र देरी से मिलने पर भारी रोष रहा। यही नहीं प्रश्न पत्र में कुछ प्रश्नों के वैकल्पिक उत्तर गलत थे। हालांकि यह आलेख लिखने तक इस परीक्षा के प्रश्न पत्र के उत्तर ऑनलाइन घोषित कर दिए गए हैं। जाहिर सी बात है कि इससे परीक्षार्थियों को राहत मिली है लेकिन देखने वाली बात यह है कि इस तरह की गलतियों से परीक्षार्थी बहुत परेशान होते हैं और प्रश्न हल करने पर वैकल्पिक उत्तरों में सही उत्तर न पाकर  बार – बार हल करने में अपना समय तो बर्बाद करते ही हैं, साथ में वे अन्य प्रश्न हल करने के लिए उपयुक्त समय नहीं निकाल पाते और उनकी प्रश्नपत्र गलत  हल करने की संभावना और बढ़ जाती है जो किसी भी परीक्षार्थी के लिए सही नहीं है। यहां महत्त्वपूर्ण बात और भी है कि जो उत्तरावली ऑनलाइन आई है उसके कुछ उत्तर भी संदिग्ध हैं। जिस पर परीक्षा केंद्र को पुनर्निर्धारण करने की आवश्यकता है। किसी भी परीक्षा में प्रश्न गलत  छपना या वैकल्पिक उत्तर में सही विकल्प न होना या फिर उत्तर का ही गलत आकलन होना बड़ी दुखद स्थिति होती है क्योंकि इसमें परीक्षार्थी बड़े असमंजस की स्थिति में फंसे रहते हैं। जबकि कोई भी प्रश्न पत्र इतना बड़ा नहीं होता कि उसकी प्रूफ रीडिंग में गलतियों पर ध्यान न जाए।

किसी भी परीक्षा के प्रश्नपत्र व उनके उत्तर पहले से ही एक एक्सपर्ट टीम द्वारा एक टेबल पर हल होने चाहिए और प्रश्न पत्र क्रॉस चैक होने चाहिए या फिर होते ही होंगे, फिर भी भिन्न-भिन्न परीक्षाओं में इस तरह के मसले उठते रहते हैं और बहुत बार परीक्षा दोबारा होने की नौबत भी आती है जो परीक्षार्थियों के लिए बहुत बार नुकसान देह साबित होता है। यही नहीं पटवारी के पद का संबंध ज्यमिती व माप से जुड़ा है जिससे संबंधित प्रश्न इस परीक्षा में नदारद रहे। कृषि, बागबानी, प्रदेश की भौगोलिक स्थिति, प्रशासनिक व राजस्व से संबंधित प्रश्न नगण्य रहे जो पटवारी के पद के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। कुल मिलाकर प्रश्न पत्र ही पटवारी की परीक्षा हेतु अनेक विषमताएं लिए हुए है। ठीक है परीक्षार्थियों का सामान्य ज्ञान का परीक्षण होना जरूरी है मगर संबंधित परीक्षा से जुड़े प्रश्नों की प्रतिशतता पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। पटवारी की परीक्षा का दूसरा संवेदनशील मुद्दा यह भी है कि इस परीक्षा के लिए परीक्षार्थी की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता प्लस टू है जबकि इस परीक्षा में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी तक ने आवेदन भरा। यही नहीं मेडिकल, नॉन-मेडिकल के विद्यार्थी यहां तक ग्रेजुएट इंजीनियरों ने भी पटवारी की परीक्षा में किस्मत आजमाई जो कि रोजगार की दृष्टि से चिंताजनक स्थिति है। हमारे समाज में यह भी एक दुखद स्थिति है कि जब कोई भी विद्यार्थी मैट्रिक के बाद प्लस वन में जाता है तो उसकी योग्यता उसके द्वारा लिए गए विषयों से आंकी जाती है। आर्ट्स, ह्यूमैनिटी के स्ट्रीम के बच्चों को अकारण ही पढ़ाई में कमजोर मान लिया जाता है चाहे वे विद्यार्थी अपने निर्धारित लक्ष्य को लेकर ही विषय चुनें। 

जाहिर सी बात  है कि आर्ट्स स्ट्रीम के बच्चे इंजीनियर, चिकित्सक या नेवी जैसे पदों के आवेदन  के लिए  पहले ही बाहर हो जाते हैं, पर साइंस के किसी भी स्ट्रीम के विद्यार्थी जब पटवारी जैसी परीक्षाओं में भी सेंध मारते हैं तो आर्ट्स के बच्चों के लिए प्रतियोगिता और भी मुश्किल हो जाती है। यही नहीं इससे साइंस स्ट्रीम के बच्चों की अपने स्ट्रीम में योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगता है और इस बात पर भी चिंता होती है कि  क्या हर स्ट्रीम में इतनी बेरोजगारी हो चुकी है कि कोई भी परीक्षार्थी बिना अपनी शैक्षणिक योग्यता व निर्धारित लक्ष्य की परवाह किए बगैर किसी भी स्तर की परीक्षा में बैठने को विवश हो जाता है। मेरे ख्याल से किसी भी पद की शैक्षणिक योग्यता के लिए भी मानक निर्धारित होने चाहिए जैसे आर्ट्स वाले इंजीनियर या चिकित्सक पदों के लिए अयोग्य हैं, वैसे ही प्रशासनिक सेवाओं के लिए भी न्यूनतम व अधिकतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित हो वरना ‘थ्री इडियट’ फिल्म का शिक्षा प्रणाली पर किया गया कटाक्ष आता है कि युवा पहले इंजीनियरिंग करते हैं, फिर एमबीए और बाद में बैंक में नौकरी! और  अगर बैंक में ही नौकरी करनी थी तो इंजीनियरिंग करने  की जरूरत  ही क्या थी! यही आज के समय की कड़वी सच्चाई है। यह स्थिति हर क्षेत्र में है, यही वजह है हर विभाग में अच्छे कर्मचारियों व अधिकारियों की कमी खलती है क्योंकि हमारी शिक्षा पद्धति, नौकरी प्रणाली कमजोर तो है ही साथ में अपनी शैक्षणिक योग्यता के विपरीत किसी भी युवा को नौकरी तो दे सकती है मगर संतुष्टि नहीं दे सकती। ऊपर से कुछ नौकरी की परीक्षाओं में गैर प्रदेश वासियों  का प्रवेश भी प्रदेश के युवाओं को हतोत्साहित करता है जिस पर अंकुश लगाना अनिवार्य है। कुल मिलाकर पटवारी की परीक्षा ने बेरोजगारी, कमजोर शिक्षा प्रणाली, प्रश्नपत्रों की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं जिन पर गंभीरता से विचार करना होगा।


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