पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाना चाहती थीं शहनाज

By: Nov 9th, 2019 12:20 am

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन : एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है बत्तीसवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

जैसे ही वे कैमल बैक रोड पर एक अंधे मोड़ पर मुड़े, सईदा बेगम हैरानी से वहीं जम गईं। पास आने पर लगा, मानो कोई सपना देख रही हों, भूरी जैकेट पहने नासिर अपनी बड़ी बहन नसीम के साथ उधर ही चला आ रहा था। ‘या खुदा।’ सईदा के मुंह से आह निकली। ‘वल्ली, लड़कियों को लेकर इसी वक्त वापस जाओ।’ जिस समय वल्ली अपनी बहनों को पीछे से ही होटल ले जा रहा था, सईदा बेगम ने आगे बढ़कर हुसैन बच्चों से दुआ सलाम की। ‘क्या इत्तेफाक है।’ ‘पूरी तरह तो नहीं’, नसीम ने कबूल किया। ‘नासिर को इशरत की बहन से पता चला कि शहनाज यहां हैं तो उनकी एक झलक की उम्मीद में वह मुझे भी अपने साथ खींच लाया।’ नासिर झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगे, वह दुआ कर रहे थे कि उनकी बहन कुछ और न उगल दें। उनके शरमाने पर सईदा बेगम मुस्कुराईं। अपनी बेटी के प्रति उनकी दीवानगी देखकर उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि यह लड़का उनकी बेटी के लिए बिल्कुल माकूल रहेगा। कैमल बैक रोड पर हुई वह ‘अचानक’ मुलाकात शहनाज और नासिर के रिश्ते में अहम मोड़ साबित हुई। ‘मम्मी, जो लड़का मुझसे निकाह करना चाहता है, वह यहां कैसे आ सकता है?’ शहनाज ने अपनी मां के वापस होटल आने पर पूछा। ‘उसकी बहन बता रही थी कि वह तुम्हें देखने यहां आया है।’ ‘सच में? वह मुझसे मिलने यहां आया है?’ शहनाज की आवाज में खुशी और दुविधा थी। सईदा उनके हावभाव पर मुस्कुरा रही थीं। ‘खैर मुझे खुशी है कि तुम्हारे पापा वापस इलाहाबाद चले गए हैं, नहीं तो वह तुम्हें भी अपने साथ इंग्लैंड की पहली फ्लाइट में बिठा देते।’ ‘लेकिन मैं इंग्लैंड जाना चाहती हूं। पापा ने मुझसे वादा किया है’, अपने बेसब्र चाहने वाले को भूलकर उनकी बेटी ने जवाब दिया। ‘शहनाज तुम लड़की हो, लड़का नहीं। तुम्हारे पापा को इसमें कोई फर्क नजर नहीं आता। लड़कियां निकाह करके बच्चे पैदा करती हैं, घर बसाती हैं, न कि विदेशी जमीन पर लड़कों के साथ पढ़ाई करती हैं। अगर वह वलीउल्लाह को भेजना चाहते, तो मुझे जरा ऐतराज न होता, लेकिन यह मेरी बदकिस्मती है कि तुम इतनी जहीन हो, जितना कि बेटे को होना चाहिए।’ अगली सुबह, जब मिसेज बेग वल्ली के साथ सवॉय होटल की लॉबी में आईं तो उन्होंने नासिर और नसीम को आते देखा। ‘अब हम एक ही रास्ते के राहगीर हैं’, नसीम ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा। ‘कम से कम एक-दूसरे को जान तो लें। एक अच्छी इंग्लिश फिल्म लगी है-‘लब इज मेनी-स्प्लेंडर थिंग’ और शायद हम सब साथ में वह देखने जा सकते हैं?’ उन्होंने होशियारी से प्रस्ताव रखा।


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