पर्वतीय विडंबनाओं से जूझता निवेश

By: Nov 1st, 2019 12:05 am

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सान्निध्य में हिमाचली निवेश की कहानी का किरदार मूर्तरूप लेगा, ऐसी संभावनाओं का तालमेल केंद्र से जारी है। प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत दिलचस्पी लेते हुए अगर निजी सुझावों की रूपरेखा बताई है तो हिमाचल के पास पाने का यह दूसरा अवसर होगा। इससे पूर्व दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री हिमाचल को अंगुली पकड़कर चलना सिखाया तो औद्योगिक उत्पादन की काबिलीयत में यह राज्य भी अपनी शिनाख्त बनाने में कुछ हद तक कामयाब हुआ। रोहतांग सुरंग ऐसी कहानी का विस्तार है और उन चिरागों की गवाही भी, जो वाजपेयी के संसर्ग में जले। कमोबेश फिर हिमाचल प्रधानमंत्री कार्यालय की कलम से अपने भविष्य के नए हस्ताक्षर देखना चाहता है। निवेश की राष्ट्रीय हैसियत में हिमाचल की अड़चनें काफी हद तक इसी अनुमान से दूर होंगी कि मोदी सरकार ही जयराम सरकार के अरमानों को आसरा देगी। ऐसा माना जाता है कि हिमाचल की ग्लोबल प्रस्तुति में जो नक्शा या नैन नक्श दिखाए जाएंगे, उसके पीछे केंद्र सरकार के प्रश्रय व प्रेरणा का सकारात्मक पहलू भी नत्थी रहेगा। बहस और विमर्श की राष्ट्रीय संवेदना एक तरह से देवभूमि की घंटियों का स्पर्श करेंगी, तो क्षमता का अवलोकन होगा। यह पर्वतीय आर्थिकी का समाधान सरीखा हो सकता है, बशर्ते यहां के लिए अलग से मानदंड तय हों। औद्योगिक पैकेज की सौगात में पहली बार पर्वत के संबोधन बदले थे, लेकिन बड़े राज्यों के विरोध ने पहाड़ को बौना कर दिया। यूपीए सरकार ने अपने समय में अटल सरकार के इस नगीने को हमसे छीन लिया। दूसरी ओर हिमाचल का असली मसला कनेक्टिविटी का रहा है, लिहाजा विकास का हर कदम इसी आधार पर मापा जाएगा। इन्वेस्टर मीट के दौरान प्रधानमंत्री का बड़े औद्योगिक घरानों के साथ संवाद से शायद कुछ बर्फ पिघल जाए, लेकिन हिमाचल की शक्ल बदलने के लिए केंद्र सरकार से सड़क, हवाई तथा रेल कनेक्टिविटी पर एक गंभीर एवं सौहार्दपूर्ण आश्वासन चाहिए। प्रदेश से राष्ट्रीय परियोजनाओं का श्रीगणेश अगर मनाली-लेह रेल मार्ग या पठानकोट-लेह सड़क मार्ग के विस्तार को सुनिश्चित करे, तो एक साथ निवेश के अवसर सुदृढ़ होंगे। चेन्नई, बंगलूर, मुंबई, पुणे या दिल्ली से हिमाचल तक पहुंचना इसलिए टेढ़ी खीर बना है, क्योंकि कोई भी एयरपोर्ट सीधे नहीं जुड़ता। ऐसे में इन्वेस्टर मीट के दौरान भले ही रिश्तों की बाढ़ आ जाए, लेकिन आधारभूत ढांचे के लिए केंद्र का आश्वासन कारगर सिद्ध होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संवाद केवल निवेश के रास्ते सुझाए, इससे कहीं आगे प्रतीक्षारत हिमाचल को केंद्र सरकार की गारंटी चाहिए। यह रेल, सड़क व हवाई सेवाओं में ढांचागत सुधार को लेकर हो सकती है तथा पर्वतीय रियायतों में इजाफा कर सकती है। अगले दस सालों में हिमाचल कहां खड़ा होना चाहता है, इसका फैसला इन्वेस्टर मीट के लक्ष्यों से तय होगा। रोचक यह भी होगा कि हिमाचल का परंपरागत निवेशक अपने आंगन में नई प्रतिस्पर्धा का मूल्यांकन करते हुए भविष्य की गणना कर सकता है। पर्वतीय विडंबनाओं से जूझते निवेश की व्यवहार्यता पर केंद्र सरकार की ओर से विशेष निर्देश तथा मानदंड तय नहीं होते, तो परिणामों के स्थायित्व में आशंकाएं बनी रहेंगी। इस हिसाब से इन्वेस्टर मीट केवल राज्य की बानगी में एक प्रयास से कहीं अधिक, केंद्र के आश्वासनों का तिलक भी लगाएगी।  


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