फिर सत्र के सामने

By: Nov 21st, 2019 12:05 am

हिमाचली बहस पुनः विधानसभा सत्र की दहलीज तक पहुंचकर, सत्ता बनाम विपक्ष के सरोकारों और जवाबदेही का मुआयना करेगी। नौ से चौदह दिसंबर तक तपोवन विधानसभा परिसर के शीतकालीन सत्र का आयोजन, विपक्ष की भूमिका का इंतजार करेगा। हिमाचल में जयराम सरकार के लिए विपक्ष के सामने उपचुनाव नतीजे तथा इन्वेस्टर मीट की रोशनी का जिक्र ऊंचे राजनीतिक दाम में होगा, तो विपक्ष फिर इस तैयारी में है कि सत्ता के हर निर्णय की समीक्षा हो। जाहिर है मुद्दों के आस्तीन में छुपे सियासी विरोध को सत्र की जमीन चाहिए और इस अवधि में साबित होने का विपक्षी हक भी चाहिए। शिमला से बाहर हिमाचल विधानसभा का तपोवन तक का सफर जब शीतकालीन सत्र का आगाज करता है, तो कई क्षेत्रीय विषय सदन के भीतर और बाहर आकर मुखातिब होते हैं। अब यह महज एक रिवायत से कहीं आगे अपनी क्षेत्रीय ताकत का एहसास बन रही है, तो शीतकालीन सत्र के सवाल उन वजहों से मुखातिब होते हैं जो राजनीतिक परिकल्पना को साकार करते विधानसभा परिसर का इजहार हैं। यानी सत्र के ताने बाने में हिमाचल को देखने का अंदाज बदलता और फिर घूम कर धर्मशाला में विधानसभा परिसर की प्रासंगिकता पर आकर टिक जाता है। औचित्यहीन खर्चों की समीक्षा में सवाल सरकार की फिजूलखर्ची पर उठेंगे और ऋण उठाने की क्षमता में दरियादिली पर भी संदेह करेंगे। सरकार के कलश में कई फैसले धुलकर साफ नजर आएंगे, तो धूल पर चलते विपक्ष को वास्तविकता उंडेलने का अवसर मिलेगा। इस बहाने प्रदेश के प्रति चिंतन मनन की सियासी अवधारणा नया क्या चुनती है, इस पर जनता का ध्यान जरूर जाएगा। पिछले कुछ सालों से सत्ता बनाम विपक्ष की बहस जिन खुरदरे अध्यायों पर अंकित है, वहां सदन की बात लगातार बहिर्गमन के कदमों पर चलते हुए सड़क पर होने लगी है। यह दोनों पक्षों की जिम्मेदारी रहेगी कि कठिन विषयों और आलोचना के संदर्भों के बावजूद हिमाचली बहस को अंजाम तक ले जाएं। जीवन और जीने के विषय अपने जन प्रतिनिधियों से नए एहसास की प्रतीक्षा कर रहे हैं। रोजगार की तलाश में कमोबेश हर युवा अपनी सरकार से कुछ वादे-कुछ इरादे चाहता है, तो विपक्ष हकीकत की जुबान से सभी का पक्ष रख सकता है। अगर पुलिस भर्ती या पटवारी परीक्षा के फलक पर विसंगतियां रही हैं, तो विपक्ष के पास कोसने का बहाना बड़ा हो जाएगा। सरकार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के हवाले से पूर्व सरकार के फैसलों की कमजोरियां बता सकती है, लेकिन दो साल की राज्य सरकार को अब अपनी सफलता के झंडे गाड़ने होंगे। कुछ मसले वाकई अतीत की निरंतरता में दुखड़ा रोएंगे और तब सवाल विस्थापितों के हित, वर्षों से अपूर्ण परियोजनाओं और जनापेक्षाओं का जिक्र करेंगे। सरकार के समक्ष विकास के हुलिए का वृत्तांत निश्चित तौर पर विपक्ष को पूछने का साहस देगा, तो सड़क, स्वास्थ्य से शिक्षा के हाल पर चर्चा होगी। कुछ परंपरागत मुद्दे हमेशा से सत्ता से पूछने का प्रदर्शन करते हैं, तो आलोचना की कुंडली में विपक्ष का अभिप्राय सरकार के तौर तरीकों पर भ्रम करेगा और उस असंतुलन पर बहस होगी जो हमेशा विपक्षी विधायक के विधानसभा क्षेत्र की तौहीन करता है। शीतकालीन सत्र में जयराम सरकार के मंत्रियों का लहजा तथा उनके सामर्थ्य की परीक्षा में विपक्ष का हावी होना, उसकी तैयारी का परीक्षण भी है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में मुकेश अग्निहोत्री के लिए मोर्चा संभालने तथा सत्र की लय तय करने में कांग्रेस का आत्मबल देखा जाएगा। दो उप चुनावों के सियासी मजमून क्या विधानसभा सत्र की पेशकश में अपनी खुन्नस मिटाएंगे या बहस की आंख में सुरमा डालने में विपक्ष कामयाब हो जाएगा, यह भी देखना होगा।


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