बुशहर रियासत के इतिहास से पुराना इसका शैल है

By: Nov 6th, 2019 12:16 am

बुशहर रियासत का इतिहास जितना पुराना है इस  रियासत का शैल उससे भी कहीं प्राचीन है। उनका दावा है कि रियासत का शैल अस्सी करोड़ वर्ष पुराना है। माना जाता है कि यह पहाड़ कभी पृथ्वी की सतह के बीस किलोमीटर नीचे था। इस शैल का क्षेत्र किन्नर देश तक फैला था…

गतांक से आगे …

लवी मेला (रामपुर)

महिषासुर, चंडमुंड, रक्तबीज और शुभ-निशुंभ दैत्यों की संहारक मां भीमाकाली के शब्दों में दुर्गा सप्तशती में है कि जब मैं (मां) भीम रूप धारण करके मुनियों की रक्षा के लिए हिमाचल पर रहने बाले राक्षसों का भक्षण करूंगी, उस समय सब मुनि भक्तिभाव से नतमस्तक होकर मेरी स्तुति करेंगे। तब मेरा नाम भीमा देवी के रूप में विख्यात होगा। भू-गर्भ वेताओं  का मत है कि बुशहर रियासत का इतिहास जितना पुराना है इस  रियासत का शैल उससे भी कहीं प्राचीन है। उनका दावा है कि रियासत का शैल अस्सी करोड़ वर्ष पुराना है। माना जाता है कि यह पहाड़ कभी पृथ्वी की सतह के बीस किलोमीटर नीचे था। इस शैल का क्षेत्र किन्नर देश तक फैला था। शोणितपुर इस राज्य की राजधानी थी जो  अब सराहन के नाम से जानी जाती है। इस राज्य का शासक भगवान शंकर का अनन्य भक्त और उदार स्वभाव वाला वााणासुर था। वह भक्त प्रहलाद का पौत्र और राजा बलि के 100 पुत्रों में सबसे बड़ा बेटा था। अब भी किन्नौर जिला के प्रमुख 18 देवी- देवता बाणासुर और हिडिंबा की संतान माने जाते हैं अनिरूद्ध और ऊषा प्रेम प्रसंग में भगवान शंकर का मुकाबला बाणासुर की ओर से युद्ध में श्रीकृष्ण से हो गया था। इस युद्ध के बाद श्रीकृष्ण के पिता प्रद्युम्न तथा अनिरूद्ध के वंशजों  के हाथ ही बागडोर आ गई। तब से लेकर आजादी तक बुशहर रियासत का राज प्रद्युम्न  तथा अनिरूद्ध के वंशजों के हाथ ही रहा है। कहा जाता है कि करोड़ों साल पहले इस क्षेत्र में  महिषासुर, चंडमुंड, रक्तबीज और शुभ-निशुंभ आदि दैत्यों ने उपद्रव मचाना शुरू कर दिया था। देवताओं की ओर से भगवान इंद्र ने पूरे सौ सालों तक इन राक्षसों से लोहा लिया। मगर उन्हें खदेड़ नहीं पाए। तभी सभी देवता ऋषि-मुनियों को लेकर भगवान शंकर की शरण में गए, लेकिन दैत्य के अराध्य होने की वजह से भगवान शंकर ने देवों की सहायता करने से इनकार किया, लेकिन साथ नहीं दे सके। अंत में देवता भगवान विष्णु की शरण में गए। विष्णु उस समय शइया पर विराजमान थे। उन्होंने देवताओं की व्यथा सुनी तो दैत्यों की करनी पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने एक नजर पृथ्वी पर डालने में ही अपनी भलाई समझी। भगवान विष्णु ने जब पृथ्वी पर दैत्यों का अत्यचार अपनी आंखों से देखा तो वे क्रोधित हो उठे, उनकी आंखों से आग की लपटें निकलने लगीं।                        -क्रमशः

 


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