मिलावट और जमाखोरी पर लगाम जरूरी

By: Nov 27th, 2019 12:06 am

अनुज कुमार आचार्य

 लेखक, बैजनाथ से हैं

बेशक टमाटर-प्याज की कीमतें पाकिस्तान के मुकाबले कम हैं, लेकिन फिर भी मध्यम एवं निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट गड़बड़ाया हुआ है तो खाने का जायका भी बिगड़ा हुआ है। लहसुन, अदरक और दालों की लगातार बढ़ती हुई कीमतों से गरीब और आम भारतीय तबका परेशानी के आलम में है। महाराष्ट्र के लासल गांव में देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी है । बेमौसमी बरसात के चलते प्याज की फसल खराब होने और समय पर मार्केट में न पहुंचने के कारण जमाखोरों की पौ बारह हो रखी है…

पिछले दो महीनों से हिमाचल प्रदेश सहित पूरे भारत के नागरिक प्याज की बढ़ी हुई कीमतों से त्रस्त हैं, दूसरी सब्जियों की बढ़ती कीमतें भी गृहिणियों को परेशान किए हुए हैं। बेशक टमाटर-प्याज की कीमतें पाकिस्तान के मुकाबले कम हैं, लेकिन फिर भी मध्यम एवं निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट गड़बड़ाया हुआ है तो खाने का जायका भी बिगड़ा हुआ है। लहसुन, अदरक और दालों की लगातार बढ़ती हुई कीमतों से गरीब और आम भारतीय तबका परेशानी के आलम में है। महाराष्ट्र के लासल गांव में देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी है । बेमौसमी बरसात के चलते प्याज की फसल खराब होने और समय पर मार्केट में न पहुंचने के कारण जमाखोरों की पौ बारह हो रखी है। प्याज, लहसुन और टमाटर के थोक विक्रेता करोड़ों के वारे न्यारे कर चुके हैं। सरकार द्वारा अफगानिस्तान, इजिप्ट, तुर्की और ईरान से स्टेट ट्रेडिंग एजेंसी एमएमटीसी द्वारा 1.2 लाख टन प्याज आयात करने के टेंडर जारी किए गए हैं , लेकिन समुद्र के रास्ते भारत की बंदरगाहों तक पहुंचने और फिर आगे सप्लाई होने में समय लगने के चलते फिलवक्त उपभोक्ताओं को राहत मिलने के आसार नहीं दिख रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने सितंबर के आखिर में प्याज की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर प्याज व्यापारियों के स्टॉक भंडारण की सीमा तय कर दी है और अब रिटेल कारोबारी 100 क्विंटल और थोक कारोबारी 500 क्विंटल तक ही प्याज का भंडारण कर सकेंगे। इसके अलावा सरकार ने भारत से अन्य देशों को प्याज के निर्यात पर भी रोक लगा दी है। फिलहाल अभी भी बाजार में प्याज 70 से 80 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहा है।

अभी 19 नवंबर को ही दिल्ली पुलिस ने एक फैक्टरी में छापा मारकर जंगली घास, गुड़ के शीरे और स्टोन पाउडर से बनाए जा रहे 19,400 किलोग्राम नकली जीरे की खेप को पकड़ा है। मिलावट खोर नकली जीरे को असली जीरे में अस्सी-बीस के अनुपात में मिलाकर और लाखों रुपए में बेचकर आम भारतीय की जेबों को न केवल चूना लगा रहे थे बल्कि उनकी सेहत और स्वास्थ्य से भी खिलवाड़ कर रहे थे। मिलावटखोरों द्वारा मोटा मुनाफा कमाने के चलते मिलावटी मसाले, दालें, घी तथा अन्य खाद्य सामग्रियों को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। कभी कभार कोई एकाध मामला पकड़ में आ जाता है वरना बहुतायत में मिलावटखोर आराम से अपने कार्यों को अंजाम देने में जुटे हुए हैं। भारत में दुग्ध मिलावट का एक उदाहरण देखिए। मार्च, 2018 में भारत में रोजाना दुग्ध उत्पादन 14.68 करोड़ लीटर था जबकि खपत 64 करोड़ लीटर थी। जाहिर है कि दूध उत्पादन और बिक्री में इतने भारी अंतर को मिलावटी दूध की आपूर्ति से पाटा जा रहा है। एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह आहलूवालिया के अनुसार देश में बिकने वाला 68.7 फीसदी दूध मिलावटी है और सेहत के लिए हानिकारक है। भारत सरकार ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 में पारित किया था और 15 जून 1955 से यह देश में लागू है। इस कानून के अधीन अपद्रव्यीकरण और झूठे नाम से खाद्य पदार्थों को बेचना दंडनीय है। इस कानून के तहत 06 माह से लेकर उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है और 10 लाख तक का जुर्माना किया जा सकता है। इसके अलावा खाद्य पदार्थों में मिलावट खोरी को रोकने और उनकी गुणवत्ता को स्तरीय बनाए रखने के लिए देश में खाद्य संरक्षा और मानक कानून 2006 को लागू किया गया है। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ‘एफएसएसएआई’ की स्थापना 5 अगस्त 2011 को की गई थी। यह प्राधिकरण अंतरराष्ट्रीय तकनीकी मानकों और घरेलू खाद्य मानकों के मध्य सामंजस्य को बढ़ावा देने के साथ घरेलू सुरक्षा स्तर में कोई कमी न होना सुनिश्चित करता है। भारत में दिक्कत यह है कि 79 प्रतिशत भारतीयों को खाद्य संरक्षा एवं मानक कानून 2006 के बारे में कोई जानकारी नहीं है जबकि 85 फीसदी लोगों का मानना है कि सरकार खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता से संबंधित कानूनों का ठीक से प्रचार-प्रसार नहीं कर पाई है। लोगों का मानना है कि जब सारे नियम और कानून आम नागरिकों की बेहतरी के लिए ही बनाए जाते हैं तो उनकी उचित जानकारी और प्रचार-प्रसार भी लोगों के मध्य होना चाहिए। भारत में ग्राहक जमाखोरी, कालाबाजारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम वसूले जाने, गारंटी के बावजूद तय सीमा में सेवाएं नहीं मिलना, ठगी, नापतोल में हेराफेरी आदि जैसे खाद्य धोखाधड़ी के मामलों से जूझने के लिए अभिशप्त है। कानून हैं, अदालतें हैं, लेकिन लोगों में एक तो जागरूकता का अभाव है, दूसरा सामान्य ज्ञान की कमी के चलते और लंबी कागजी कार्रवाई तथा लगातार पेशियों के कारण ग्राहक अपना माथा पीटकर रहा जाता है। देश की जरूरतों के मद्देनजर प्याज के भंडारण तथा इसको सुरक्षित रखने के उपायों पर तत्काल कार्य करने की जरूरत है। राज्यों को भी अपने स्तर पर खाने-पीने की वस्तुओं की मिलावट रहित आपूर्ति को सुनिश्चित बनाने के लिए ठोस उपायों-कानूनों को लागू करने की जरूरत है। इसके अलावा खाद्य निरीक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी करके जमाखोरों और मिलावटखोरों पर लगातार छापेमारी करने की भी आवश्यकता है। आखिर यह नागरिकों के स्वास्थ्य और सेहत से जुड़ा हुआ मामला है।


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