विकास बनाम विस्थापन

By: Nov 20th, 2019 12:06 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

हिमाचल में इन्वेस्टर मीट के संदर्भ में भी देखा जाना जरूरी हो जाता है क्योंकि हिमाचल हिमालय का अग्रणी राज्य माना जाता है और इसके गलत रास्ते पर चल निकलने से अन्य राज्य भी इसकी नकल कर सकते हैं। हिमाचल की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र, यानी कृषि, बागबानी, पशुपालन का योगदान 19.72 प्रतिशत, उद्योग क्षेत्र का 38.35 प्रतिशत और टरशरी क्षेत्र सेवा का योगदान 41.93 प्रतिशत है…

विकास योजना के मोटे तौर पर दो लक्ष्य होते हैं। एक राज्य और देश की जीडीपी को बढ़ाना और दूसरा उसके बूते देश की सर्वांगीण आवश्यकताओं की पूर्ति करने की व्यवस्था करना। जिसमें सुरक्षा और ईज ऑफ लिविंग शामिल है। एक महत्त्वपूर्ण आयाम इसके साथ टिकाऊपन का जुड़ जाता है। यानी हमारी योजनाएं ऐसी नहीं होनी चाहिए जो आज तो समृद्धि लाने वाली हों परंतु भविष्य की पीढि़यों के लिए कंगाली और जीने की मूल व्यवस्थाओं हवा, पानी, भोजन का ही संकट पैदा कर दें। इस तरह की समझदारी विश्व पटल पर तो आनी ही चाहिए परंतु दूसरे की गलत छूट लेने की प्रवृत्ति को हम अपने लिए गलती करने के बहाने के रूप में प्रयोग नहीं कर सकते। इस मामले में चीन और अमरीका के उदाहरण गैर जिम्मेदारी भरे हैं। हालांकि यूरोप वैकल्पिक तकनीकों के बल पर कुछ बेहतर करके जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों के प्रति जिम्मेदारी का व्यवहार कर रहा है। उससे तकनीकी तौर पर काफी बातें सीखी जा सकती हैं। इन सभी पक्षों को हिमाचल में इन्वेस्टर मीट के संदर्भ में भी देखा जाना जरूरी हो जाता है क्योंकि हिमाचल हिमालय का अग्रणी राज्य माना जाता है और इसके गलत रास्ते पर चल निकलने से अन्य राज्य भी इसकी नकल कर सकते हैं। हिमाचल की अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र, यानी कृषि, बागबानी, पशुपालन का योगदान 19.72 प्रतिशत, उद्योग क्षेत्र का 38.35 प्रतिशत और टरशरी क्षेत्र सेवा का योगदान 41.93 प्रतिशत है। निजी क्षेत्र के उद्यमों में कुल 1,52,526 लोगों को रोजगार मिला है जिनमें से केवल 60,794 लोगों को ही बड़े और मंझोले उद्योगों में काम मिला है। हालांकि 70 प्रतिशत से ज्यादा पूंजी इन बड़े उद्योगों में ही लगी है। शेष 91 लाख 732 लोगों को सूक्ष्म और लघु उद्योगों में काम मिला है।

इसके अलावा 37,205 लोगों को खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्र में काम मिला है। इसलिए हिमाचल जैसे राज्य में जहां नौ लाख से अधिक बेरोजगार पंजीकृत हैं, वहां सूक्ष्म, लघु और खादी ग्रामोद्योग को उसकी सही जगह मिलनी चाहिए। उद्योगों को प्राथमिकता वाले और गैर प्राथमिकता वाले वर्गों में बांटने के बजाय हरे, लाल, और पीले उद्योगों में बांटना चाहिए। यदि हम सच में ही पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए विकास कार्य की योजना बनाना चाहते हैं तो हिमालय क्षेत्र में सीमेंट, ताप बिजली, प्रचलित जलविद्युत तकनीक से जल विद्युत हन, जल प्रदूषण, कारक रसायन उद्योग और प्लास्टिक उद्योग को लाल सूची में डाल बिलकुल प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए बल्कि प्रतिबंधित करना चाहिए। बृहदाकार पर्यटन, फार्मास्युटिकल, सिविल एविएशन, आदि को पीली सूची में डालना चाहिए, जिन्हें पूर्ण सावधानी से और वैकल्पिक तकनीकों के आधार पर लागू करना चाहिए। तीसरा क्षेत्र हरित उद्योगों का होगा जो हिमालय क्षेत्र के लिए बिलकुल उपयुक्त होंगे। जैसे कि कृषि विपणन और प्रसंस्करण, फसल तुड़ाई के बाद की तकनीकें जिम्मेदार पर्यटन, पर्यटकों की आवभगत, वेलनेस-स्वास्थ्य सेवाएं, आयुष, नवीकरणीय ऊर्जा जिसमें सौर, वायु और असली माइक्रो जलविद्युत जिसमें वोरटेक्स तकनीक, हाइड्रो काई नैटिक तकनीक और पनचक्की स्तर पर बिजली उत्पादन का विशेष स्थान हो, सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रोनिक्स शिक्षा और कौशल विकास, शहरी विकास और गृह निर्माण आदि। इन्हें विशेष प्रोत्साहन देकर बेरोजगारी समाधान के साथ राज्य के सकल घरेलू उत्पाद को भी बढ़ाया जा सकेगा। आधारभूत विनिर्माण जैसे सड़कें और परिवहन के क्षेत्र में भी अलग सोच की जरूरत है। विशेषकर सड़क निर्माण ने पर्वतीय क्षेत्रों में परिवहन सुविधा तो दी परंतु पर्वतीय क्षेत्रों में स्थायी भयंकर भूस्खलनों ने अस्थिर क्षेत्रों को और अस्थिर कर दिया है और कटाई से उत्पन्न मलबे को ढलानों पर या नदी तलों पर फैंक देने से नदी तल ऊपर उठ जाते हैं जिससे बाढ़ की विभीषिकाएं बढ़ी हैं और वनों का विनाश हुआ है। बांधों और बड़ी चौड़ी सड़कों के बारे में हमें उत्तराखंड के अनुभवों से सीखना चाहिए। केदारनाथ त्रासदी और उसके बाद की घटनाओं के संदेश अनदेखे नहीं किए जा सकते। जलवायु परिवर्तन की दिशा में बढ़ते कदम खतरे की घंटी बजा रहे हैं। इस वर्ष की अप्रत्याशित देशव्यापी बाढ़ का संकट हो, उसी के साथ सूखे का दृश्य हैरान करने वाला है। हिमालय क्षेत्र में की जाने वाली अवैज्ञानिक समझ से छेड़छाड़ इस संकट को और बढ़ाएगी। यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए खास कर जब हम हिमालय क्षेत्र में औद्योगिक विकास की रूप रेखा बना रहे हों। दिल्ली का स्वास्थ्य आपातकाल भी हमारे लिए क्या चेतावनी दे रहा है उसे सुना जाना चाहिए। कहीं हिमालय को भी हम उस दिशा में न धकेल दें। यदि ऐसा हुआ तो चार दिन शीतल शुद्ध वातावरण में देश के पर्यटकों के लिए उपलब्ध अपने मन व शरीर को पुनः उर्जित करने की सुविधा और स्वास्थ्य सुधार अवसर को भी हम छीन लेंगे। इसका आर्थिक नुकसान हिमालय के पर्यटन और स्वास्थ्य सुधार उद्योग को झेलना पड़ेगा।

विकास की वैज्ञानिक समझ को दरकिनार करके शुरू हुई दौड़ का बड़ा अमानवीय चेहरा विस्थापन भी है, सारे देश ने इस दंश को झेला है। टीहरी हो या नर्मदा, बड़े बांधों ने हर कहीं स्थानीय लोगों से अन्याय किया है, जिसे विकास के सपने की चकाचौंध में ढक दिया जाता है। हिमाचल ने तो सबसे पहले भाखड़ा बांध के रूप में 32 हजार परिवारों के विस्थापन को झेला, जिन्हें केवल 24 सौ रुपए बीघा के हिसाब से मुआवजा देकर विस्थापित किया गया और आज तक वे पुनर्वासित नहीं हो सके हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App