विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

By: Nov 23rd, 2019 12:20 am

मनुष्य शरीर परमात्मा की अनुपम और अद्वितीय-अद्भुत कलाकृति है। इस कलाकृति की संरचना का अध्ययन किया जाए तो सहज ही यह विदित हो जाएगा कि मनुष्य शरीर कितना जटिल, सुव्यवस्थित और सुनियोजित कार्यप्रणाली पर निर्भर है? इतनी जटिल संरचना और उससे अधिक कार्यप्रणाली बिना किसी बाहरी नियंत्रणकर्ता नियामक के अपने आप सुचारू रूप से संपन्न होती रहती है…

-गतांक से आगे….

ईश्वर का प्यार केवल उसी को मिलेगा, जो दीपक की तरह जलकर प्रकाश उत्पन्न करने को तैयार है, प्रभु की ज्योति का अवतरण उसी पर होगा। ईश्वर का अस्तित्व विवाद का नहीं, अनुभव का विषय है। जो उस अस्तित्व का जितना अधिक अनुभव करेगा, उतना ही प्रकाशपूर्ण उसका जीवन होता जाएगा।      

अंतःचेतना से उद्भूत सुव्यवस्था

मनुष्य शरीर परमात्मा की अनुपम और अद्वितीय-अद्भुत कलाकृति है। इस कलाकृति की संरचना का अध्ययन किया जाए तो सहज ही यह विदित हो जाएगा कि मनुष्य शरीर कितना जटिल, सुव्यवस्थित और सुनियोजित कार्यप्रणाली पर निर्भर है? इतनी जटिल संरचना और उससे अधिक कार्यप्रणाली बिना किसी बाहरी नियंत्रणकर्ता नियामक के अपने आप सुचारू रूप से संपन्न होती रहती है। मनुष्य का स्वस्थ शरीर-आरोग्य, आहार-विहार पर निर्भर करता है। स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने वाला निरोग रहता है और असंयम बरतने वाले, अखाद्य खाने वाले बीमार पड़ते हैं। बीमारियों के कारण रोग-कीटाणुओं के रूप में, ऋतु प्रभाव या धातुओं-तत्त्वों के हेर-फेर में ढूंढे जाते हैं और उसी आधार पर चिकित्सा की जाती है। पर कई बार इन मान्यताओं को झुठलाते हुए ऐसे कारण उपस्थित हो जाते हैं कि अप्रत्याशित रूप से शरीर के किन्हीं अवयवों का या प्रवृत्तियों का यकायक घटना-बढ़ना शुरू हो जाता है। कारण ढूंढते हैं तो समझ में नहीं आता, अंधेरे में ढेला फेंकने की तरह कुछ उपचार किया जाता है, तो उसका कुछ परिणाम नहीं निकलता। ऐसी परिस्थितियां प्रायः हारमोन ग्रंथियों में गड़बड़ी आ जाने के कारण उत्पन्न होती हैं। शरीर के सामान्य अवयवों की संरचना और उसकी कार्यपद्धति का ज्ञान धीरे-धीरे बढ़ता आया है, इसलिए रोगों के कारण और निवारण के संबंध में काफी प्रगति भी हुई है। पर यह अंतःस्रावी गं्थियों की आश्चर्यचकित करने वाली हरकतें जब से सामने आई हैं, तब से चिकित्साविज्ञानी स्तब्ध रह गए हैं, प्रत्यक्षतः शरीरगत क्रियाकलाप में इनका कोई सीधा उपयोग नहीं है। वे किसी महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति नहीं करतीं, चुपचाप एक कोने में पड़ी रहती हैं और वहीं से तनिक-सा स्राव बहा देती हैं।           

(यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)


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