श्री गोरख महापुराण

By: Nov 16th, 2019 12:16 am

गोरखनाथ का कठिन तप देखकर शिवजी का आसन हिल गया। शिवजी ने गोरखनाथ को साक्षात दर्शन देकर कहा, भक्त! मैं तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हूं। अपनी इच्छानुसार वरदान मांगो। गोरखनाथ दोनों  हाथ जोड़कर और अपना मस्तक शिवजी के चरणों में नवाकर बोले, प्रभु! आप मुझे यह वरदान दें कि मेरी सभी विद्याएं ज्ञान से परिपूर्ण हो जाएं और मैं आपके चरणों का दास बना रहूं। शिवजी बोले, भक्त! ऐसा ही होगा…

गतांक से आगे…

यह बालक बड़ा होकर विश्व विख्यात योगी बनेगा और इस बालक के गुरु निर्वृतीनाथ होंगे। जाओ, इसे ले जाओ और प्रेम पूर्वक पालो। इतना कह कर मछेंद्रनाथ ने गंगा देवी के ऊपर अभिमंत्रित भस्म छिड़की जिसके कारण गंगादेवी के हृदय में ममत्व जाग उठा। उसके दोनों स्तनों में दूध उत्पन्न हो गया। उसने तुरंत की गहनीनाथ को दूध पिलाया और मछेंद्रनाथ से बोली, योगीराज आप निश्चिंत रहे। इस बालक का पालन मैं इतने सुचारू रूप से करूंगी कि ऐसा किसी ने अपने पेट के बालक का भी नहीं किया होगा। मछेंद्रनाथ बोले, चिंता तो हमें रत्तीभर भी नहीं है। अब तुम इस बालक को ले जाओ। यदि संभव हुआ तो हम बारह वर्ष के बाद फिर लौटेंगे और तुम्हारे बालक को उपदेश भी देंगे। इतना कहकर दोनों गुरु चेले वहां से चल दिए। ग्राम निवासियों ने उन दोनों को बड़े सम्मान के साथ विदा किया और फिर ग्राम निवासियों के चेहरे पर उदासी छा गई।

गोरखनाथ का बद्रीधाम में तपस्या करना

चलते-चलते गोरखनाथ बोले, गुरुदेव मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि मिट्टी के गाड़ीवान में प्राण किस प्रकार पड़ गए। मछेंद्रनाथ गोरखनाथ को अनुभवहीन समझकर बोले, अब तुम बद्रीनाथ आश्रम में जाकर शिवजी भगवान का ध्यान कर तपस्या करो तथा उन्हें प्रसन्न कर वरदान  प्राप्त करो।  अभी तुम्हें शिव कृपा की आवश्यकता है। शिव की कृपा के बिना सभी विद्याएं अधूरी हैं। अगर तुमने शिव कृपा प्राप्त कर ली होती, तो मिट्टी का गाड़ीवान बनाते समय संजीवनी विद्या पाठ याद करने की भूल कभी नहीं करते। कभी-कभी ऐसी भूलों के कारण अर्थ की जगह अनर्थ हो जाता है। अपने गुरु की बात सुनकर गोरखनाथ बोले, गुरुदेव मुझे भगवान शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कौन सी विद्या अपनानी होगी। योगी मछेंद्रनाथ बोले, बेटा बद्रीनाथ आश्रम के निकट ही तपोवन है।  वहां घोर तपस्या कर शिवजी भगवान से वरदान प्राप्त करने के अलावा बद्रीनाथ महाराज का भी आशीर्वाद प्राप्त करना है। तभी तुम्हारी विद्याएं परिपक्व हो सकेंगी। गोरखनाथ अपने गुरु की आज्ञा मान बद्रीनाथ धाम को चल पड़े। गोरखनाथ दिन में सफर करते और रात को किसी मठ मंदिर में विश्राम करते थे।  प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से फारिग होकर यात्रा करते हुए बद्रीनाथ धाम के तपोवन तक जा पहुंचे। वहां पहुंचकर तपस्या के लिए स्थान ढूंढा। एक वटवृक्ष के नीचे कांटों पर खड़े होकर बारह वर्षों तक शिव, शिव का जाप करते रहे। अंत में अन्न-जल का त्याग करते हुए भोजन की जगह वायु का सेवन करने लगे।  गोरखनाथ का कठिन तप देखकर शिवजी का आसन हिल गया। शिवजी ने गोरखनाथ को साक्षात दर्शन देकर कहा, भक्त! मैं तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हूं। अपनी इच्छानुसार वरदान मांगो। गोरखनाथ दोनों  हाथ जोड़कर और अपना मस्तक शिवजी के चरणों में नवाकर बोले, प्रभु! आप मुझे यह वरदान दें कि मेरी सभी विद्याएं ज्ञान से परिपूर्ण हो जाएं और मैं आपके चरणों का दास बना रहूं। शिवजी बोले, भक्त! ऐसा ही होगा।  जो विद्याएं तुमने अपने गुरु मछेंद्रनाथ से सीखी हैं तथा जो विद्याएं तुम्हें आगे प्राप्त होंगी उन सभी विद्याओं को सिद्धि प्राप्त होगी। भगवान शिवजी से वरदान प्राप्त करने पर गोरखनाथ ने अपनी तपस्या को सफल समझा और वह बद्रीनाथ धाम से अगली तीर्थ यात्रा पर चल दिए। उनकी इच्छा थी कि किसी प्रकार से अपने गुरु के दर्शन करके उन्हें अपनी तपस्या का ब्यौरा सुनाऊं।                – क्रमशः

 


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