श्री गोरख महापुराण

By: Nov 30th, 2019 12:25 am

गोरखनाथ का चमत्कार देखकर  कणीफानाथ को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें बिलकुल भी विश्वास नहीं था कि टूटे  हुए फल वापस वृक्षों पर लग सकते हैं। कणीफानाथ को अपने व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई। वह अच्छी तरह समझ गए कि मैं गोरखनाथ से विद्या बुद्धि में काफी पिछड़ा  हुआ हूं। मेरे गुरु ने सच ही कहा है कि गोरखनाथ बहुत विद्वान है। कणीफानाथ ने गोरखनाथ से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा प्रार्थना की और कहा आपकी विज्ञान विद्या देखकर मैं समझ गया कि मुझे तो अभी बहुत कुछ सीखना है…

गतांक से आगे…

तभी तुम मेरे गुरु को परिपूर्ण मानोगे। कणीफानाथ बोले, कुछ करके भी तो दिखाओ। तभी तो तुम्हें जानेंगे।  कोरे गाल बजाने से कोई लाभ नहीं। गोरखनाथ को कणीफानाथ की बात बहुत बुरी लगी फिर भी शांति धारण कर उन्होंने प्रेषशास्त्र और संजीवनी विद्या के मंत्रों से अभिमंत्रित भस्म आमों पर डाली, तो आम पक्षियों की भांति उड़कर वृक्षों की डालियों पर अपनी-अपनी जगह जा लटके। गोरखनाथ का चमत्कार देखकर  कणीफानाथ को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्हें बिलकुल भी विश्वास नहीं था कि टूटे  हुए फल वापस वृक्षों पर लग सकते हैं। कणीफानाथ को अपने व्यवहार पर बहुत ग्लानि हुई। वह अच्छी तरह समझ गए कि मैं गोरखनाथ से विद्या बुद्धि में काफी पिछड़ा   हुआ हूं। मेरे गुरु ने सच ही कहा है कि गोरखनाथ बहुत विद्वान है। कणीफानाथ ने गोरखनाथ से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा प्रार्थना की और कहा आपकी विज्ञान विद्या देखकर मैं समझ गया कि मुझे तो अभी बहुत कुछ सीखना है। गोरखनाथ बोले कि भाई कोई बात नहीं। मेरे लिए तो यह अच्छा ही हुआ क्योंकि आपके द्वारा मुझे पता चल गया कि मेरे गुरुदेव कहां पर हैं। अब उन्हें ढूंढने में मुझे बहुत आसानी होगी और आपके बागीचे के मीठे आम कभी भी भुलाए नहीं जा सकते। गोरखनाथ की बात सुनकर दोनों संत सम्मानपूर्वक गले मिले। कणीफानाथ राजा गोपीचंद की नगरी में अपने गुरु का उद्धार करने चल पड़े और गोरखनाथ त्रिया राज्य की ओर। सज्जनों! गोरखनाथ सोच-विचार करते हुए मंजिल दर मंजिल तय करते हुए त्रिया राज्य की सीमा पर जा पहुंचे। जहां पुरुष प्रवेश वर्जित था। गोरखनाथ वहां एक पत्थर शिला पर हरि गुणगान करते हुए विचार मग्न हो गए। जब काफी समय बीतने पर भी कोई उपाय नहीं सूझा और वह इस आशा-निराशा से मुक्ति  पाने की सोच रहे थे, तब क्या देखते हैं कि जिधर से मैं आया हूं,उधर से ही एक रथ आ रहा है, जिसमें एक नारी यौवन संपन्न अप्सरा के समान अति सुंदर वस्त्र धारण किए अपनी सखियों के संग तबले सारंगी लिए रथ से उतर कर विश्राम करने को गोरखनाथ के निकट ही ठहर गई। तभी गोरखनाथ ने उस अप्सरा समान सुंदरी से पूछा, आप कहां से आ रहीं है और कहां जाएंगी। उसने उत्तर दिया हम पास में ही जो महेंद्रगढ़ है वहां की रहने वाली हैं और त्रिया राज्य में जाने के विचार से यहां आई हैं। गोरखनाथ ने प्रश्न किया किस कार्य वश? तो उत्तर मिला कि संगीत कला का प्रदर्शन करने के लिए। गोरखनाथ बोले, तो यहां कोई संगीत कला विशारद नहीं है। वह सुंदरी बोली, है क्यों नहीं, काफी हैं, परंतु सब की कला जुदा-जुदा होती है और यहां की महारानी मैनाकिनी नवीनता प्रिय हैं। गोरखनाथ बोले, आप कौन सा पाठ करेंगी और आपका नाम क्या है? सुंदरी ने उत्तर दिया आप ध्यान से सुने। मैं एक विधवा नारी हूं और नाच गाना मेरा व्यवसाय है। कलिंगा रानी मेरा नाम है और जो पूछना चाहते हो पूछिए। गोरखनाथ बोले, माता जी! हम साधू-संत हैं। हमें व्यर्थ की बातों से क्या मतलब? मेरा अभिप्राय तो केवल इतना ही है कि आप मुझे भी अपने साथ ले चलें। गोरखनाथ की बात सुनकर कलिंगा सुंदरी खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली संत होकर त्रिया राज्य में चलने की आपकी मंशा ब्यान करो। ये तो मैं भी जानती हूं कि काम देव का प्रभाव बड़े-बड़े ऋषि-मुनि नहीं संभाल सके। कलिंगा की बात सुनकर गोरखनाथ बोले, माता जी यह बात नहीं है। 


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