एहसास जन्म-मरण का

By: Dec 14th, 2019 12:02 am

कविता सिसोदिया, बिलासपुर

फैली हुई धुंध चारों ओर

तीखी सर्द हवाएं

बींधती सी त्वचा को

व्योम भी लगे मानों

बर्फ का हो रेगिस्तान

दुबके पखेरू धोंसलों में

हर प्राणी समाए नीड़ में

मूक दर्शक से हिमाच्छादित पर्वत शिखर

अपना हिमाचल फैलाए

सुनसान घाटियां, गलियां, बाजार

सन्न-सन्न करता सन्नाटा

कोई न दिख पाए निपट विराने में

मौन से स्तब्ध सिकुड़े से

कड़ाके की ठंड में जकड़े से

मूर्तिवत तरु साथ खड़े से

बर्फीली तीव्र हवाओं के झोंके।

          


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