कार्य में सफलता के लिए प्लानिंग जरूरी

By: Dec 25th, 2019 12:22 am

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-18

करियर काउंसिलिंग कर्नल (रि.) मनीष धीमान

सेना में सेवाकाल के दौरान ज्यादातर ऐसे मौके भी होते हैं, जहां आपको मौसम और हालात को ध्यान में रखते हुए बॉर्डर की रक्षा के लिए ऐसे स्थान पर रहना पड़ता है, जहां आपके साथ सिर्फ  कुछ सैनिक होते हैं। दूर-दूर तक गांव, मकान, बाजार, बिजली, पानी कुछ भी नहीं होता। काम तथा साथी सैनिकों संग हंसी-मजाक के अलावा अधिकारी के लगे टैंट में समय पर हर तरह की किताबें पढ़ देश, धर्म, संस्कृति के साथ इतिहास की प्रसिद्ध हस्तियों एवं व्यक्तित्व के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। ऐसी ही एक पोस्टिंग के दौरान एक शाम सभी बंकरों का मुआइना करने के बाद हैड क्वार्टर में सही रिपोर्ट देकर, मैं बैठा ही था कि मुझे खबर मिली कि नजदीक वाली पहाड़ी पर बसे गांव में एक आतंकवादी, जुम्मे के दिन आकर वहां के लोगों से बात करता है। उस दिन गुरुवार था। पता चलते ही मैंने सूबेदार को बुलाया और टीम को तैयार होने का हुक्म दिया।  हम उसी रात गांव की तरफ  निकल कर सुबह पूरे गांव को घेर लिया। आजान (जब मस्जिद से आवाज लगाई जाती है, अल्ला हू अकबर) पर लोग मस्जिद की तरफ  आने लगे, नमाज अदा करने के बाद, मैंने देखा कि दो-तीन आदमी बाहर चिनार के पेड़ के नीचे इकट्ठा होने की बात कर रहे थे, शायद जहां पर आतंकवादी सरगना लोगों के साथ बात करने वाला था। जैसे ही लोग इकट्ठा हुए, हम उस जगह पर पहुंच गए और आतंकवादी को सरेंडर करने की बात कही। इस पर गांव का मुखिया बाहर आया और बोला कि आप घरों की तलाशी ले सकते हैं, यहां कोई भी नहीं है। गांव को चेक करने के बाद हमें कुछ न मिलने पर खाली लौटना पड़ा। वापस आकर हम अखबार में छपी खबर और ऑपरेशन की असफलता के बारे में चर्चा कर रहे थे, तो एक सूबेदार ने कहा, साहब कोई भी काम बिना सही प्लानिंग और उसके तह तक जाए बिना सफलता नहीं मिल सकती। जैसे ही आपको खबर मिली, आप उसी वक्त बिना सोचे-समझे ऑपरेशन के लिए निकल गए। हम खुश किस्मत हैं कि हमें कोई नुकसान नहीं हुआ। इसमें कोई दो राय नहीं कि वहां पर वह सरगना आता हो और आज सुबह हमारा कोर्डन देख निकल गया हो।

 अगर हम इस खबर के बाद सही प्लानिंग व धैर्य से काम करते तो परिणाम कुछ और होता। टैंट में पहुंच, सूबेदार और किताबी बातों को ध्यान से सोचा तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि जिंदगी में बिना सोचे-समझे किसी भी लक्ष्य की तरफ  बढ़ने से सफलता या फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है। इसके बाद हमने सही प्लानिंग की और उस गांव पर हफ्तों तक खुफिया तरीके से निगरानी रखी, वहां के लोगों के व्यवहार को समझा और उनसे दोस्ती की तथा मौके का इंतजार कर अपना लक्ष्य पाया। इस तजुर्बे को अगर छात्र जीवन के संघर्ष से जोड़ें तो मेरा मानना है कि हमें जिंदगी में कुछ करना है तो सबसे पहले दिमाग में यह बिठाना होगा कि मैं यह कर सकता हूं। दूसरा अभिभावक एवं अध्यापकों को बच्चों के बड़े सपने सुनकर उनका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए । बच्चों को डिमोरालाइज करने के बजाय उस लक्ष्य को हासिल करने के बारे में बताना और उसके हिसाब से शिक्षा दिलाना, उसी तरह की किताबें, लोगों के बारे में बताना बहुत जरूरी है। तीसरा सही दिशा में लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मेहनत करें। अगर किसी को मछली चाहिए तो उसे झील के किनारे जाना पड़ेगा, न कि किसी पहाड़ की चोटी पर। खिलाड़ी बनने के लिए मैदान में मेहनत करें और डाक्टर बनने के लिए किताबों में समय दें। एक बात याद रखें कि लक्ष्य चुनते समय उलझन में न रहें।  हिमाचल में कहावत है कि ज्यादा घरों का अतिथि भूखा रहता है तथा दो नावों पर सवार होकर दरिया पार नहीं होते। चौथा कभी भी ऐसा सपना न देखें, जो उस वक्त के हिसाब से पूरा होने लायक न हो। अगर (प्वाइंट 5) लगता है कि आप यह सपना हासिल कर सकते हैं तो आप उसके लिए वहीं से ही तैयारी शुरू करें। हर लक्ष्य को हासिल करने के लिए सही प्लानिंग एवं एटमोस्फेयर बहुत जरूरी है, प्लानिंग, पेशेंस एवं मेहनत से सफलता मिलती है।


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