खर्चीले त्योहार की तैयारी में जुटा गिरिपार
संगड़ाह – सिरमौर जिला की सदियों पुरानी लोक संस्कृति व परंपराओं को संजोए रखने के लिए मशहूर करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार क्षेत्र के बाशिंदे इन दिनों साल के सबसे खर्चीले व शाही कहलाने वाले माघी त्योहार की तैयारियों में जुट गए हैं। बर्फ अथवा कड़ाके की ठंड से प्रभावित रहने वाली गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर की विभिन्न पंचायतों में हालांकि दिसंबर माह की शुरुआत से ही मांसाहारी लोग अन्य दिनों से ज्यादा मीट खाना शुरू कर देते हैं, मगर दस जनवरी से शुरू होने वाले चार दिवसीय माघी त्योहार के दौरान क्षेत्र की लगभग सभी 130 पंचायतों के मांसाहारी परिवारों द्वारा बकरे काटे जाने की परंपरा भी अब तक कायम है। क्षेत्र में सर्दियों के तीन महीनों के लिए क्षेत्रवासी खेचियारे, भुआरे, घोसारे अथवा हेला कही जाने वाली परंपरा के मुताबिक पशुचारा व खाद्य सामग्री का भंडारण कर लेते हैं। सामूहिक भागीदारी अथवा श्रमदान की यह परंपरा ग्रेटर सिरमौर में आज भी कायम है तथा इसी की बदौलत सर्दियों में यहां मेहमाननवाजी का दौर अथवा फेस्टिवल सीजन जैसा माहौल रहता है। गिरिपार के अंतर्गत आने वाले सिरमौर जिला के विकास खंड संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ में हालांकि 95 फीसदी के करीब किसान परिवार पशु पालते हैं। गिरिपार अथवा ग्रेटर सिरमौर में इन दिनों लोकल बकरों की कमी के चलते क्षेत्रवासी देश की बड़ी मंडियों से बकरे खरीदते हैं। ग्रेटर सिरमौर की 130 के करीब पंचायतों में साल के सबसे शाही व खर्चीले कहे जाने वाले इस त्योहार के दौरान हर पंचायत में औसतन सवा तीन सौ के करीब बकरे कटते हैं। माघी त्योहार पर हर वर्ष करीब 40 हजार बकरे कटते हैं तथा एक बकरे की औसत कीमत 15 हजार रखे जाने पर इस त्योहार के दौरान यहां करीब 60 करोड़ रुपए के बकरे कटेंगे। इसके अलावा माघ में मेहमानों को दिए जाने वाले विशेष पारंपरिक व्यंजन मूड़ा के लिए भी गेहूं, चावल, चौलाई, अखरोट, भांग बीज, सूखे मेवों व तिल आदि को तैयार करने में भी महिलाएं व्यस्त हो गई हैं।
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