तिब्बत में छिपा है तंत्र ज्ञान

By: Dec 7th, 2019 12:17 am

 नोमग्याल ने बतलाया – ‘इस मंत्र का उच्चारण अत्यंत धीमे स्वर में होना चाहिए।’ मैं सहमत हो गया। पद्मचक्र हाथ में घूम रहा था। जिसी अत्यंत प्रसन्नता के साथ होंठों पर मुस्कान लिए देख रही थी। उसके पतले होंठों पर शिशु-सी मुस्कान उसे और सुंदर बना रही थी। पद्मचक्र हर समय लामा साधुओं के हाथ में रहता है। वे उसे निरंतर घुमाते रहते हैं और निरंतर उनके होंठ हिलते रहते हैं। यह पद्मचक्र उनके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है…

 -गतांक से आगे…

बौद्ध मतावलंबी इस पवित्र पद्मचक्र को हमेशा साथ रखते हैं। उसको निरंतर घुमाते रहते हैं और उनके होठों से बराबर एक मंत्र फूटता रहता है। ‘ओं मणि पद्में हूं हीं।’ बड़ा ही चमत्कारी मंत्र है। पद्मचक्र बहुत हल्का, बहुत ही सुंदर बना था। जरा-सा कलाई से झटका देने पर वह निरंतर घूमने लगता। उसमें बंधा फुंदना (बिंग स्ट्रिंग) रेशम का था। घूमने पर फुंदना भी वृत्ताकार घूमकर एक नए रंग की सृष्टि करता था। पद्मचक्र पर हाथी दांत भी लगा था और कुछ कारीगरी भी की गई थी। ‘इसका बराबर जाप करो। तुम्हें असीम शांति मिलेगी।’ नोमग्याल ने कहा। अत्यंत श्रद्धा से मैंने वह पवित्र चक्र ले लिया। उसकी मूठ बहुत सुंदर थी। चक्र का घूमना भी एक नयनाभिराम दृश्य था। ‘ओं मणि पद्में हुं हीं।’ मंत्र मैं जानता था। अतएव उच्चारण में कठिनाई न हुई। नोमग्याल ने बतलाया – ‘इस मंत्र का उच्चारण अत्यंत धीमे स्वर में होना चाहिए।’ मैं सहमत हो गया। पद्मचक्र हाथ में घूम रहा था। जिसी अत्यंत प्रसन्नता के साथ होंठों पर मुस्कान लिए देख रही थी। उसके पतले होंठों पर शिशु-सी मुस्कान उसे और सुंदर बना रही थी। पद्मचक्र हर समय लामा साधुओं के हाथ में रहता है। वे उसे निरंतर घुमाते रहते हैं और निरंतर उनके होंठ हिलते रहते हैं। यह पद्मचक्र उनके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ‘आंखें खुली रखना।’ नोमग्याल बोला – ‘बहुत कुछ देख पाओगे।’ ‘आपके दर्शन हो गए। यही बड़ा सौभाग्य है।’ नोमग्याल मुस्कराए। फिर उठकर भीतर कक्ष में चले गए। डोलमा जाने कहां चला गया था। मैं अचकचा गया। किस द्वार से वापस कहां जाऊं, तभी जिसी समीप आ गई और बोली – ‘आओ।’ वह मुझे बाहर ले आई। उसने बड़े मधुर स्वर में कहा – ‘इधर अनेक वर्षों में तुम पहले आदमी हो जिसे शास्ता (गुरुदेव) ने पद्मचक्र दिया है।’ ‘शास्ता मुझ पर विशेष प्रसन्न है क्या?’ ‘हां। मैंने तुम्हारी सिफारिश की है।’ वह शरारत से हंसी। बड़ी सुंदर लग रही थी जिसी। सांचे में ढला उसका गोरा बदन बड़ा ही कमनीय था। वह मुझसे बिल्कुल सटकर चल रही थी। ‘क्या सिफारिश की तुमने?’ ‘देखा नहीं। कान में कुछ कहा था। तभी तो यह मिला। बड़े भाग्यवान को यह मिलता है। बड़ी तकदीर वाले हो…समझे।’ जिसी ने मुझे हल्का-सा धक्का दिया। विद्युत का झटका-सा लगा, सारा शरीर झनझना गया। जिसी बेतरह खिलखिलाकर हंस पड़ी। ‘तुमने कान में क्या कहा था?’ मैंने जिसी से पूछा। ‘कहा था कुछ। क्यों बताऊं?’ रास्ता बतलाकर वह भाग गई।            

                                                        -क्रमशः


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