नई पेंशन से बुढ़ापा असुरक्षित

By: Dec 17th, 2019 12:05 am

सुखदेव सिंह

लेखक, नूरपुर से हैं

सरकारी कर्मचारियों को जो समय जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए मिला हुआ है, ठीक अब वे पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर संघर्ष करने में व्यतीत करते जा रहे हैं। ऐसे में जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां कौन निभाए, यह भी सवाल बना हुआ है। सांसद और विधायक एक दिन के लिए भी चुन लिए जाएं तो उन्हें हजारों रुपए की पेंशन का लाभ प्राप्त है…

बुढ़ापा आराम से कट जाए, इसलिए इनसान सरकारी  नौकरी मिलने की चाहत ज्यादा रखता है। सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाली नई पेंशन अब शेयर मार्केट पर आधारित बन चुकी है। शेयर बाजार अगर तेज होगा तो पेंशन हजारों में नहीं तो चंद रुपए से ही दिल को तसल्ली देनी पड़ सकती है। कई दशकों तक सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों को उनकी अपेक्षाओं मुताबिक पुरानी पेंशन नहीं मिल रही है। सरकारी कर्मचारियों को जो समय जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए मिला हुआ है ठीक अब वे पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर संघर्ष करने में व्यतीत करते जा रहे हैं। ऐसे में जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियां कौन निभाएं, यह भी सवाल बना हुआ है। सांसद और विधायक एक दिन के लिए भी चुन लिए जाएं तो उन्हें हजारों रुपए की पेंशन का लाभ प्राप्त है। मगर वर्षों सेवाएं देने वाले कर्मचारियों को नई पेंशन के नाम पर मिल रहे चंद सिक्के जिसका वे सालों से विरोध करते आ रहे हैं।

कर्मचारी अपने संगठनों के बैनर तले राजधानी दिल्ली तक संघर्ष का बिगुल बजा चुके हैं, लेकिन उनकी मांगों पर  सरकारें गौर नहीं कर रही हैं। धर्मशाला जन आभार रैली के आगमन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कर्मचारियों को पूरी उम्मीद थी कि शायद वह कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करके नए साल का तोहफा देंगे, मगर उन्हें वहां भी सिवाए निराशा के कुछ हाथ न लगा। बढ़ती जनसंख्या अनुसार सरकारी क्षेत्रों में रोजगार के जितने अवसर सृजित किए जाने चाहिएं उतने नहीं हो पा रहे हैं। नतीजतन सरकारें अनुबंध, पीटीए पर कर्मचारी रखकर अपने राजस्व को बचाने में लगी हुई हैं। अगर इस तरह की दोगली नीतियां चलती रहीं तो युवाओं का सरकारी नौकरियों के प्रति विश्वास उठ जाएगा। एक समय ऐसा था कि कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर लाखों रुपए सेवा समाप्ति पर मिलता था और साथ ही अच्छी पेंशन भी हर महीने मिल जाती थी।

युवा पीढ़ी लालचवश अपने बुजुर्गों का सहारा अंत समय तक बने रहती थी। कर्मचारियों को अब न तो सही पेंशन मिल रही, जबकि बैंकों के कर्जे की देनदारियां ही उन्हें विरासत में मिल रही हैं। सरकारों ने  दशक पहले से पुरानी पेंशन बंद करके उसकी जगह नई पेंशन शुरू करके वर्षों तक सेवाएं देने वाले कर्मचारियों के साथ एक किस्म का मजाक किया है। कर्मचारियों को नई पेंशन इतनी भी नहीं मिलती कि एक सेवानिवृत्त कर्मचारी महीना भर उस पैसे से अपना ही पेट भर सकें और परिवार के अन्य सदस्यों का पालन-पोषण कैसे हो? यह भी सवाल बना हुआ है। कर्मचारियों की पेंशन अब शेयर मार्केट पर आधारित है। अगर शेयर मार्केट में तेजी रहेगी तो ही कर्मचारियों को सही पेंशन मिल सकेगी अन्यथा चंद रुपए से ही दिल को तसल्ली देनी पड़ती है। दुर्भाग्य की बात यह कि आजकल की शिक्षा अपने उद्देश्यों पर खरा नहीं उतर पा रही है। शिक्षित युवा न तो रोजगार से सही तरह जुड़ पा रहे और न ही राष्ट्र और समाज के पुननिर्माण में अपनी कोई भागीदारी सही निभा पा रहे हैं।

 शिक्षित युवा पीढ़ी लक्ष्यहीन बनकर नशों की चपेट में दिनोंदिन पड़ती जा रही है। पीटीए और अनुबंध कर्मचारी वर्षों संघर्ष करने के बाद नियमित किए जा रहे हैं। ऐसे हालात में मात्र चंद वर्ष ही एक कर्मचारी को अपनी सेवाएं दिए जाने का मौका मिल पा रहा है। एक कर्मचारी की आधी जिंदगी नियमित होने के लिए संघर्ष करने में गुजर रही है, जबकि बुढ़ापे में पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर भी संघर्षमयी रहना पड़ रहा है। सरकारों की रोजगार नीतियां सही न होने की वजह से आजकल कर्मचारी नियमित होने और पुरानी पेंशन को लेकर लामबंद चल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में अब आउट ऑफ  सोर्सेंज कर्मचारी रखने की प्रक्रिया चल रही है, मगर भविष्य उसमें भी सुरक्षित नहीं है। आंगनबाड़ी, जलवाहक, पंचायत सहायक, तकनीकी सहायक, पीटीए, किसान मित्र, कम्प्यूटर अनुदेशक, अनुबंध कर्मचारी आदि कहने को तो सरकारी कर्मचारी हैं, मगर जो वेतनमान उन्हें नसीब हो रहे वे काफी नहीं हैं। एक मजदूर की दिहाड़ी से भी कम वेतन एक कर्मचारी को मिलना सरकारों की कार्यप्रणाली पर भी कई सवाल खड़े करता है।

कुल  मिलाकर कहा जाए तो कर्मचारियों की कर्मचारी संगठनों के बैनर तले राजनीति करने की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही है जिसका भुगतान जनता को करना पड़ रहा है। कर्मचारियों के वेतनमान में जमीन-आसमान का अंतर जिसके चलते अराजकता का माहौल बनता जा रहा है। ऐसे में सवाल यह भी उठता कि आखिर पुरानी पेंशन की जरूरत किन कर्मचारियों को ज्यादा हो सकती है। बढ़ती महंगाई के साथ कुछेक कर्मचारियों के वेतनमान में भी इजाफा हो चुका है। अब ऐसे कर्मचारियों को सेवा समाप्ति पर लाखों रुपए सरकारों की ओर से दिया जा रहा है। क्या फिर सरकारों से उम्मीद की जा सकती है कि अब वे ऐसे कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली भी कर सकती हैं। सरकारों को कर्मचारियों के बेसिक वेतनमान में बढ़ोतरी करके उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए। कर्जे के बोझ तले दबी सरकारें क्या कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली करके अपने खजाने का बोझ और भी बढ़ाना चाहेंगी, अब सोचना होगा।

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनप्रतिनिधियों के हाथों में सभी शक्तियां होती हैं। दुर्भाग्य की बात यह कि जनप्रतिनिधियों के वेतनमान लाखों रुपए एवं अन्य सुविधाएं होने के बावजूद उन्हें बुढ़ापे में हजारों रुपए की पेंशन का लाभ प्राप्त है। कर्मचारियों को न तो सही वेतन, अन्य सुविधाओं समेत पेंशन के सही लाभ मिल पा रहे हैं। एक मात्र यही कारण है कि आज कर्मचारी वर्ग में जन प्रतिनिधियों के प्रति आक्रोश पनप रहा है। सांसदों ने बेशक कैंटीन सबसिडी छोड़कर सरकारों का बजट बचाया है, मगर सरकारी कर्मचारियों की मांग उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाओं को एक समान करने की है।


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