निकाह तय होते ही सईदा तैयारियों में जुट गईं

By: Dec 7th, 2019 12:18 am

जीवन एक वसंत/शहनाज हुसैन

किस्त-36

 सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है छत्तीसवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

समय ऐसे ही गुजरता गया और एक दिन वह भी आया, जब वह शहनाज को उनके फाइनल एग्जाम की तैयारी करवा रहे थे। शहनाज सेंट मैरी स्कूल से पढ़ाई पूरी करके निकलीं, उनकी बस एक ही तमन्ना थी- शहनाज हुसैन बनने की। मंगनी के दो सालों में, नासिर हमेशा अपने परिवार पर जल्दी निकाह का दबाव डालते रहे। सईदा बेगम, को लंबे समय तक रुकी मंगनी तनावग्रस्त लगने लगी थी, हालांकि वह मानती थी कि बच्चे परिवार की रस्मों की कद्र रखेंगे, वह भी जल्दी से निकाह करवाने को तैयार थीं। दोनों परिवारों की बातचीत के बाद तय किया गया कि शहनाज और नासिर हुसैन का निकाह 25 दिसंबर को कर दिया जाएगा। शहनाज के निकाह का दिन मुकर्रर होते ही सईदा बेगम निकाह की तैयारियों में मसरूफ हो गईं। निकाह से पहले एक निहायत जरूरी काम था, हैदराबाद जाकर अमीना की दुआएं लेना, और पूरे रस्मों-रिवाजों के साथ दुल्हन का जोड़ा तैयार करवाना। हैदराबाद की फ्लाइट रास्ते में दो स्टॉपों के साथ बेहद लंबी और उबाऊ थी। शहनाज बाहर बादलों में देखते हुए अपनी नानीजान से मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रही थीं। जब राहत मंजिल के भारी-भरकम गेट खुलते ही सईदा बेगम का चेहरा खिल गया। वह संवारे गए लॉन में चारों तरफ देख रही थीं और सोच रही थीं, कि क्या शहनाज कभी कल्पना भी कर पाएंगी कि वह कितने नाजों से पली थीं। अमीना अपनी बेटी और उसकी भी छोटी बेटी को अपने सामने पाकर खुशी से फूली न समा रही थीं, और अगला हफ्ता परिवार के लाड़-प्यार में देखते ही देखते गुजर जाने वाला था। राहत मंजिल में अब अमीना अपने बेटों और उनकी बेगमों के साथ रहती थीं। आंगन में खेलते नाती-पोतों ने घर में कभी एक पल भी खालीपन महसूस नहीं होने दिया था। रमजान का पाक महीना चल रहा था और घर में सभी अलस्सुबह सेहरी के लिए उठ जाया करते थे। पूरा दिन रोजा रखने के बाद शाम को सभी यार, रिश्तेदार वहां इकट्ठे हो जाया करते थे, रमजान के पाक महीने में राहत मंजिल हमेशा जोशो-जश्न से गुलजार रहा करता था। एक सुबह, जब अमीना ने अंधेरे स्टोर रूम का दरवाजा खोला, जहां अनाज-दालें रखी जाती थीं, उन्हें अपने पेर में अचानक कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ। जब उन्होंने पीछे हटते हुए नीचे झांककर देखा, तो उन्हें बड़ा सा बिच्छू नजर आया। सहारा लेते हुए वह अपने कमरे में वापस आईं, और खून बहते पैर के साथ बिस्तर पर पड़ गईं। ऐसी हालत में उन पर सबसे पहली नजर उनके छोटे पोते की पड़ी, और पलभर में ही पूरा परिवार उनके बिस्तर के पास खड़ा था।                                 -क्रमशः

 

 


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