बौद्धिक स्तर पर ज्ञान

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

योग विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर में कुल मिलाकर 114 चक्र हैं। आइए समझें कि आखिर ये चक्र हैं क्या? वैसे तो शरीर में इससे कहीं ज्यादा चक्र हैं, लेकिन ये 114 चक्र मुख्य हैं। इनमें से 112 शरीर के अंदर हैं और दो शरीर के बाहर। आप इन्हें नाडि़यों के संगम या मिलने के स्थान कह सकते हैं। यह संगम हमेशा त्रिकोण की शक्ल में होते हैं। वैसे तो चक्र का मतलब पहिया या गोलाकार होता है। क्योंकि इसका संबंध शरीर में एक आयाम से दूसरे आयाम की ओर गति से है इसलिए इसे चक्र कहते हैं, पर वास्तव में यह एक त्रिकोण है। अब सवाल यह है कि आखिर ये चक्र शरीर प्रणाली में करते क्या हैं? मूल रूप से चक्र केवल सात हैं, मूलाधार,  स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा और सहस्रार। पहला चक्र है मूलाधार, जो जननेंद्रिय के बीच होता है, स्वाधिष्ठान चक्र जननेंद्रिय के ठीक ऊपर होता है। मणिपूरक चक्र नाभि के नीचे होता है। अनाहत चक्र हृदय के स्थान में पसलियों के मिलने वाली जगह के ठीक नीचे होता है। विशुद्धि चक्र कंठ के गड्ढे में होता है। आज्ञा चक्र  दोनों भवों के बीच होता है, जबकि सहस्रार चक्र, जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहते हैं, सिर के सबसे ऊपरी जगह पर होता है, जहां नवजात बच्चे के सिर में ऊपर सबसे कोमल जगह होती है। दरअसल, किसी भी आध्यात्मिक यात्रा को हम मूलाधार से सहस्रार की यात्रा कह सकते हैं। यह एक आयाम से दूसरे आयाम में विकास की यात्रा है, इसमें तीव्रता के सात अलग-अलग स्तर होते हैं। हम चक्रों को ऊपर वाले और नीचे वाले चक्र कह सकते हैं, लेकिन ऐसी भाषा के प्रयोग से अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है। यह एक इमारत की नींव और छत की तुलना करने जैसा है। छत कभी नींव से ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होती। अगर आप की जीवन ऊर्जा मूलाधार में प्रबल है,  तो आपके जीवन में भोजन और निद्रा का सबसे प्रमुख स्थान होगा। वैसे, चक्रों के एक से ज्यादा आयाम होते है। चक्रों का एक आयाम तो उनका भौतिक अस्तित्व है, लेकिन उनके आध्यात्मिक आयाम भी होते हैं। इसका मतलब है कि उनको पूरी तरह से रूपांतरित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मूलाधार चक्र, जो भोजन और नींद के लिए तरसता है, अगर आपने सही तरीके से जागरूकता पैदा कर ली है, तो वही इन चीजों से आप को पूरी तरह से मुक्त भी कर सकता है। दूसरा चक्र है, स्वाधिष्ठान अगर आपकी ऊर्जा स्वाधिष्ठान में सक्रिय है, तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद की प्रधानता होगी। आप भौतिक सुखों का भरपूर मजा लेने की फिराक में रहेंगे। अगर आपकी ऊर्जा मणिपूरक में सक्रिय है, तो आप कर्मयोगी होंगे। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। इसी तरह से आपकी ऊर्जा अगर विशुद्धि में सक्रिय है, तो आप अति शक्तिशाली होंगे। अगर आपकी ऊर्जा आज्ञा में सक्रिय है या आप आज्ञा तक पहुंच गए हैं, तो इसका मतलब है कि बौद्धिक स्तर पर आपने सिद्धि पा ली है। आपके अनुभव में यह भले ही वास्तविक न हो, लेकिन जो बौद्धिक सिद्धि आपको हासिल हुई है, वह आपमें एक स्थिरता और शांति लाती है। आपके आसपास चाहे कुछ भी हो रहा हो उस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।


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