भाषा विभाग का निमंत्रण

By: Dec 9th, 2019 12:03 am

निर्मल असो

स्वतंत्र लेखक

आखिर मुझे पता चल ही गया कि मैं भी लेखक हूं। कितने पापड़ बेल कर मैं भाषा विभाग की डाक तक पहुंचा, यह मेरा दिल जानता है और उस नेक अधिकारी का सीना जानता है, जिसने कई नाम काट कर सूची में मुझे खड़ा किया है। मैं खड़ा हुआ तो  जाहिर है मेरी कविता भी खड़ी होगी। अगर प्रदेश के मंत्री साहित्यकारों के बीच खड़े हो सकते हैं, तो मैं या मेरी कविता अवश्य ही इस घुसपैठ में अव्वल साबित होंगे। यकीन मानें मैं बहुत मेहनत व जुगाड़ से भाषा विभाग को ‘अपना’ बना पाया हूं। कम से कम साहित्यकारों की तीन टोलियां बदलीं, तब कहीं जा कर प्रदेश के प्रभावशाली गुट में जगह मिली। कितनी नसीहतें मुझे बुजुर्ग साहित्यकार देते रहे और फटकारें तो मेरी आंखों में सुरमा बन कर बसी हैं। यकीन मानों मेरे आरोहण का सबसे दुखद वृतांत तो होटल में बरतन साफ करने वाले से भी बुरा है। मुझे अपने साथियों की लय से बाहर रही कविताओं को शबाशी देनी पड़ती है, वरना हुक्का पानी बंद होने का खतरा बरकरार है। पिछले सरकारी समारोह को ही लें, मेरा जुगाड़ चोरी हो गया। मेरे खिलाफ ‘कहानी’ की साजिश में दूसरा गुट भारी पड़ गया। दरअसल समारोह कहानी पर था, फिर भी मैं निमंत्रण पाने की कोशिश में लगा था। आप भी जानते हैं कि मैंने प्रदेश की प्रतिनिधि ग्यारह कहानियों का संग्रह छापा है और अपनी ‘एकमात्र’ कहानी को इसमें अहमियत के साथ संरक्षण दिया है। मेरे कहानीकार दोस्त भी जानते हैं कि भाषा विभाग का जयंती समारोह कितनी ‘कहानियां’ पेश करेगा, इसलिए सोशल मीडिया की सक्रियता काम आई, बल्कि हमारा गुट भी मानता है कि मेरी भाषा दरअसल फेसबुकिया अंदाज में काफी शक्तिशाली है। एक साथ चार फर्जी अकाउंट खोलकर सोशल मीडिया पर हाथ आजमाना इतना भी आसान नहीं,जितना किसी कविता को ‘रचना’ बनाना है। लिहाजा साहित्यकारों के हर गली कूचे की खबर पर निगाह रखता हूं। खैर इसी रुतबे से विभाग के आला अधिकारी डरने और हर समारोह का निमंत्रण भेज कर मेरे लेखन की उम्र बढ़ाने लगे हैं। इस बार का निमंत्रण पत्र नो पॉल्यूशन सर्टिफिकेट की तरह मेरे पास आ पहुंचा है,बिना जांचे परखे कि मेरी रचनाओं का प्रदूषण लेबल क्या है। मैं फिर कविता सुनाऊंगा,लेकिन आयोजकों की शर्त यथावत है कि तभी मंच पर आऊंगा,जब बाकी कवि मेहनताना लेकर जा चुके होंगे। हर बार मेरी संगोष्ठी में खाली कुर्सियां ही गवाह बनती हैं,फिर भी मेरी कविता में ‘अर्ज किया है’ जिंदा है। भाषा विभाग के निमंत्रण पत्र में छपा मेरा नाम पुनः सोशल मीडिया की सुर्खियां बटोर रहा है। सैकड़ों लाइक्स के बीच मैं श्रेष्ठ साहित्यकार बन रहा हूं। टिप्पणियों का सारांश भी कितना उत्साह वर्द्धक कि हर कोई कह रहा है कि मैं गजब का लिखता हूं। हकीकत में मैंने वही लिखा जो मुझे एक गुमनाम पत्रिका में लिखा मिल गया या मैंने कई कवियों के लिखे को नई लिखावट में लिख दिया। धन्य है भाषा विभाग जो हमारे जैसे लेखकों को मंच पर बने रहने का अवसर  देता है, वरना अब कविता खुद को सुनाने की चेष्टा भर ही तो है। प्रदेश के कहानीकार,व्यंगयकार व निबंध लेखक चाहे मुझे कवि मानें या न मानें, आखिर अखबारों के संपादकों तक कोई पहुंच कर तो बताए। मैं छप रहा हूं,सृजन के ‘कसूर’ को ढांप रहा हूं, तो यह मेरी शक्ति है कि पुनः भाषा विभाग के मंच पर सज रहा हूं।


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