रंगड़ बने शिकारी और किसान शिकार

By: Dec 1st, 2019 12:10 am

हिमाचल में रंगड़ किसानों के सबसे बड़े दुश्मन बन गए हैं। इस साल रंगड़ों के विषैले डंक से अब तक 11 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। प्रदेश में सालाना 25 लोग रंगड़ों का शिकार बनते हैं, जबकि सैकड़ों जीवन भर के लिए असहाय हो जाते हैं। खास बात यह कि इसमें जंगली मधुमक्खियां अलग से होती हैं। खैर, बात रंगड़ों की हो रही है, तो प्रदेश में दिसंबर और जनवरी को छोड़ दें, तो अमूमन सारा साल रंगड़ों का प्रकोप रहता है, लेकिन मार्च से लेकर अक्तूबर तक ये बेलगाम हो जाते हैं।  कारण, उस दौरान गर्मी और बरसात के दौरान घास होती है। ऐसे में जंगलों से निकलकर रंगड़ खेतों की मेढ़ों और झाडि़यों में अपने छत्ते बना लेते हैं। जिसका शिकार बनते हैं भोले भाले किसान। यह हम नहीं बल्कि आंकड़े बता रहे हैं। रंगड़ों का शिकर बनने वाले 90 फीसदी से ज्यादा किसान होते हैं। कोई घास काटते, तो कोई मक्की के खेत में डंक खा बैठता है। किसी को घर में, तो किसी पर दरिया में कहर बरपता है। इस बार अपनी माटी टीम ने लोगों खासकर किसान भाइयों की खातिर इस मसले की पड़ताल की है। इसमें हम आपको बताएंगे कि रंगड़ों के काटने के क्या नुकसान हैं और इससे बचाव कैसे होता है।         

 रिपोर्ट  – जीवन ऋषि

रंगड़ के काटने पर करें बचाव

तीन से ज्यादा रंगड़ के काट लें, तो जीवन रक्षक अंग फेल हो सकते हैं। इससे जान भी जा सकती है। रंगड़ का डंक इतना घातक होता है कि पीडि़त शॉक में चला जाता है। दम घुटना शुरू हो जाता है। त्वचा लाल हो जाती है। धीमे जहर से सीधा किडनी और लीवर पर असर होता है, जिससे मल्टी आर्गन फेलियर का डर रहता है। काटने पर रंगड़ा डंक तुरंत निकाल दें। डंक वाली जगह ऐंटी सेप्टिक साबुन से साफ कर दें। बर्फ भी लगा सकते हैं। घरेलू नुस्खे न अपनाएं। मरीज को हर हाल में अस्पताल पहुंचाएं। मक्की या झाडि़यों में काम करते समय सिर पर कपड़ा पहनें रखें। रंगड़ की हांडी न तोड़ें। उपचार के दो व चार सप्ताह बाद भी डाक्टर से चैकअप करवाना चाहिए।

मुआवजे का प्रावधान नहीं कर पाई सरकार

रंगड़ के काटने से मौत पर सरकार किसी तरह का मुआवजा नहीं देती है। यह अब तक की सरकारों पर बड़ा सवाल है। हालांकि उपायुक्त अपने स्तर पर पीडि़त परिवार को मदद दे सकते हैं। प्रदेश में मुख्यतः मंडी, ऊना, कांगड़ा व हमीरपुर में रंगड़ों का प्रकोप रहता है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में भी किसानों पर खूब कहर बरपता है।

किसान बोले, हवाई अड्डे के लिए मिनी पंजाब को न करें बर्बाद

बल्ह बचाओ किसान संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल एडीएम से मिला और मुख्यमंत्री  को बल्ह में प्रस्तावित हवाई अड्डे के निर्माण के विरोध में ज्ञापन भेजा। बल्ह बचाओ किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष जोगिंदर वालिया ने कहा कि बल्ह में हवाई अड्डा बनाया जा रहा है। इससे वहां की 3500 बीघा जमीन से जो आबादी उजाड़ी जाएगी उसे कहां बसाया जाएगा। जहां पर हवाई अड्डा बनाया जा रहा है, वहां बल्ह यानी मिनी पंजाब की अधिकतर भूमि उपजाऊ है और जो लोग नकदी फसलों, पशु पालन, उद्योगों और मशीनरी से जुड़कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं वे लोग कहां जाएंगे क्या उन्हें भूमि के बदले भूमि दी जाएगी। उन्होंने कहा कि वर्तमान में फोर लाइन में भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लागू नहीं किया गया है और किसानों को चार गुना मुआवजा देने से मना कर दिया गया है जिससे किसानों में पहले ही भारी रोष है। उन्होंने कहा कि हवाई अड्डे के निर्माण से पेयजल सिंचाई योजनाएं ठप हो जाएंगी। उन्होंने कहा कि सरकार उनकी मांगों को नहीं मानती है तो मजबूरन संघर्ष का रास्ता अपनाना पड़ेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी।

 रिपोर्ट : विप्लव सकलानी, मंडी

देशी खाद से जादुई गोभी उगाई दिल के रोग को भी दी मात

70 साल के सोहन मंडी जिला की चौरी पंचायत के गंधौल गांव के रहने वाले हैं। पीडब्ल्यूडी से रिटायर सोहन को देशी खाद से सब्जियां उगाने का शौक है। वह दिल के मरीज हैं, लेकिन अपने हौसले से उन्होंने कभी बीमारी को खुद पर हावी नहीं होने दिया। अभी इन्होंने अपने खेत में ऐसी गोभी तैयार की है, जिसपर तीन-तीन फूल लगे रहे हैं और वजन है पौने तीन किलो।  सोहन कहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पहले कृषि विश्विद्यालय से टिप्स लिए। उसके बाद से ही वह अपने तीन बीघा में दोगुने जोश से खेती कर रहे हैं। इसमें जैविक खेती भी उन्हें खूब रास आती है। अभी उनके खेत में गोभी के अलावा खीरा ,प्याज ,लहसुन भी तैयार है। वहीं वह अपने इलाके  में घीया और बैंगन के भी एक्सपर्ट माने जाते हैं। दो सीजन में वह कुल 50 हजार रुपए की बचत कर लेते हैं। सोहन आज उन हजारों युवाओं के लिए रोल मॉडल हैं, जिन्हें खेती पसंद नहीं है।

-रिपोर्ट पवन प्रेमी , सरकाघाट

सेना से रिटायर फौजी सरूप राणा ने खेती में कमाया नाम

भारतीय सेना के सिपाही सेवानिवृत्ति के बाद भी खेतीबाड़ी करके अपनी जमीनों से सोना निकालने का हौसला रखते इसमें कोई शक नहीं है। अकसर आस पड़ोस में ऐसे भूतपूर्व सैनिकों को खेतीबाड़ी में जुटे हुए देखा जा सकता है। यहां लोगों को पानी पीने के लिए भी बड़ी मुश्किल से मिलता हो वहां सब्जियां उगाने बाला किसान सच में बहुत मेहनती होगा। ठीक ऐसा ही किसान फतेहपुर ब्लाक के गांव हटली का सेवा निवृत्त सरूप सिंह राणा है। सेना से बतौर हबलदार रिटायर्ड हुए सरूप सिंह राणा पिछले एक साल से सब्जियां उगाकर गांव के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा बना हुआ है। राणा का अनुसरण करते हुए गांव के कई किसान भी अब सब्जी उत्पादन की और आकर्षित हो रहे, मगर गांव में पानी की समस्या उनके मंसूबों को पूरा करने में आड़े आ रही है। कृषि उत्पादन की इस सराहनीय मुहिम में उसके दो बेटे भी उसका कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहे हैं। बेटे राकेश कुमार राणा अनुसार बरसात में 60 क्विंटल खीरा, दो करेले और पांच कबंटल घीया और लौकी निकालकर सब्जी मंडी में बेच चुके हैं। अभी तक पांच क्विंटल मूली सब्जी मंडी जसुर में बेची, ठीक इतनी ही मात्रा में और उपज निकलने बाली है। राकेश कुमार का कहना कि गांव में फसल और कृषि उत्पादन के लिए सिंचाई का कोई साधन नहीं है। हम खड्डों, नालों और कुओं के पानी से सब्जियां उगाने की कोशिश करते हैं। उसने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि कृषि विभाग, पंचायत और सीएम हेल्पलाइन में गांव में सिंचाई हेतु नलकूप लगाए जाने की गुहार कर चुके, मगर अभी तक उनकी समस्या बारे गौर करना किसी ने गवारा नहीं समझा है। फतेहपुर हल्के में दर्जनों नलकूप बजट अभाव में शोपीस बनकर रह, मगर हटली जैसे पहाड़ी गांवों में भी नलकूप लगाया जाना किसी ने मुनासिब नहीं समझा है। मुख्यमंत्री राम ठाकुर की सरकार को हटली गांव में नलकूप लगाकर गांव के किसानों की समस्या का समाधान अतिशीघ्र करना चाहिए।                                 – रिपोर्ट सुखदेव सिंह,नूरपुर

होनहार किसान बलवीर सैणी फिर किया कमाल

 कांगड़ा जिला के होनहार किसान बलवीर सैणी ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। पालमपुर में बीते मार्च माह में हुए राज्य स्तरीय मेले की कृषि प्रदर्शनियों के परिणाम नौ माह बाद घोषित हुए हैं। इनमें होनहार किसान बलवीर सैणी ने कुल 11 प्राइज अपने नाम कर लिए हैं। खास बात यह कि सैणी को छह फर्स्ट प्राइज मिले हैं। इनमें सणी द्वारा तैयारी विदेशी सब्जी आटिचोक के आगे कोई भी किसान नहीं टिक पाया है। इसके अलावा सैणी के क्यूं,प्याज, टमाटर, स्लाद व पालक को भी पहला स्थान मिला है। वहीं सैणी की फूलगोभी और चुकंदर इस प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर रही है, जबकि बंदगोभी और लहसुन ने तीसरा स्थान पाया है। सैणी की शिमला मिर्च को कोंसोलेशन प्राइज मिला है।           रिपोर्ट : पूजा चोपड़ा

गुजरात में देशी गाय महंगी, हिमाचल को झटका

राजस्थान और गुजरात में देशी नस्ल की गाय महंगी हो गई है। हिमाचल के किसान इन राज्यों में गाय लेने के लिए जा रहे हैं, जिन्हें पहले से महंगी दरों पर गाय दी जा रही है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि हिमाचल में सरकार किसानों को इस नस्ल की गाय खरीदने के लिए विशेष सबसिडी दे रही है और इसका पता वहां पर भी चल गया है। ऐसे में इस गाय की नस्ल के महंगे दाम लिए जा रहे हैं, जिससे किसान परेशान हो गए हैं। क्योंकि इन्हीं राज्यों में इस नस्ल की गाय ज्यादा मिल रही है, जिसमें साहीवाल, रेडसिंधी, गीर, थारपारकर नस्लें शामिल हैं। इस नस्ल की गाय यहां पर प्राकृतिक खेती के काम आ रही हैं और सरकार भी केवल इसी पर सबसिडी भी दे रही है। हिमाचल सरकार ने किसानों को यह गाय खरीदने पर 25 हजार रुपए की सबसिडी रखी है। इसके अलावा उन्हें बाहर से गाय लाने के लिए पांच हजार रुपए भाड़ा भी दिया जा रहा है। काफी संख्या में किसान अब इस गाय को पालने लगे हैं और इसे लेने के लिए उन्हें राजस्थान, गुजरात व हरियाणा राज्यों की ओर जाना पड़ रहा है।

-रिपोर्ट : शिमला

किसान और उद्योगपति आपस में कर पाएंगे बात

इन्वेस्टर मीट से किसानों को राहत देने का प्रयास किया गया है। हिमाचल में उद्योग स्थापित करने के लिए सरकार किसानों और उद्योगपतियों के बीच मध्यस्थता नहीं करेगी। कृषक खुद उद्योगपतियों से जमीन खरीद मामले में बात कर सकेंगे। डील फाइनल होने के बाद प्रदेश सरकार नियमों के तहत उद्योग लगाने को मंजूरी देगी। सरकार ने राइजिंग हिमाचल साइट पर कृषकों के संपर्क नंबर और जमीन का ब्योरा दिया है। साइट पर अब जमीन के फोटो भी अपलोड किए जाएंगे। यह इसलिए कि निवेशक उद्योग लगाने के लिए पसंद की जमीन फाइनल कर सकें। इस साइट में 384 कृषकों ने जमीन बेचने की हामी भरी है। सबसे ज्यादा आवेदन जिला कांगड़ा, हमीरपुर और ऊना से आए हैं। जिला शिमला के लोगों ने भी उद्योगों के लिए जमीन देने की हामी भरी है। उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह ठाकुर ने बताया कि सरकार हिमाचल में ज्यादा से ज्यादा उद्योग स्थापित किए जाने पर जोर दे रही है। कई निवेशकों ने प्लांट लगाने की बात कही है। इस साइट में 384 कृषकों ने जमीन बेचने की हामी भरी है। सबसे ज्यादा आवेदन जिला कांगड़ा, हमीरपुर और ऊना से आए हैं। जिला शिमला के लोगों ने भी उद्योगों के लिए जमीन देने की हामी भरी है।

नवंबर में बर्फबारी से आस

हिमाचल के ऊंचाई वाले इलाकों में हुई बर्फबारी ने इस बार फुल चिलिंग आवर्ज की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। शिमला के नारकंडा, ठियोग, कुफरी जैसे इलाकों में यह हिमपात बागीचों के लिए संजीवनी बन गया है। इसी तरत मंडी के शिकारी देवी, कमरूनाग आदि इलाकों में भी खूब बर्फ गिरी है। इसी तरह सिरमौर के चूड़धार और चंबा के भरमौर से भी बागबानों को खुश करने वाले समाचार है। वहीं किन्नौर जिला में बर्फबारी के बाद ठंड खूब है। यहां दिन में ही पारा माइनस पांच डिग्री तक दर्ज हुआ है। सेब के लिए यह बड़ी राहत है। कुल्लू और लाहुल में भी हिमपात हुआ है। दूसरी ओर  बागबानी विशेषज्ञों की माने तो बर्फवारी सेब के पौधों के लिए लाभदायक साबित होती है। तापमान माइनस डिग्री से कम होने के कारण बागीचों में पनप रहे जीवाणु व कीटाणु स्वत ही नष्ट हो जाते हैं। इस विटर सीजन के दौरान निर्धारित अवधि से पहले ही बर्फबारी होने से इस वर्ष बेहतर चिलिंग आवर पूरे होने की उम्मीद है।

 रिपोर्ट : शकील करैशी, शिमला

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