श्री गोरख महापुराण

By: Dec 7th, 2019 12:18 am

गतांक से आगे…

मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूं और पेट भरने को केवल दो रोटी चाहिए। मेरी तो केवल वह राज्य देखने की इच्छा है। गोरख गुरु की बात सुनकर कलिंगा रानी ने सोचा, इतना सच्चा आदमी पृथ्वी पर मिलना दुर्लभ है जिसे पेट भरने के वास्ते दो रोटियां चाहिए। पर समस्या तो यह है कि ये हमारे साथ जाएगा किस प्रकार? फिर बोली, संत जी! हम आपको किसी भी प्रकार अपने साथ नहीं ले जा सकती। उस राज्य में पुरुष वर्जित है। गोरखनाथ ने पूछा पुरुषों की मनाई का क्या कारण है माता जी? कलिंगा सुंदरी बोली, सुना है यहां पवन पुत्र हनुमान आ कर गर्जना करते हैं जिसे सुन एक भी पुरुष जीवित नहीं रहता है और स्त्रियां गर्भवती हो जाती है और  उनके  कन्याएं ही उत्पन्न होती हैं। गोरखनाथ बोले, बड़ी विचित्र बात है। यह सुन कलिंगा रानी बोली, ब्रह्मचारी जी! मुझे तो यहां जलवायु का ही गुण दिखाई देता है, जिसकी वजह से पुरुष मर जाते हैं और स्त्रियां गर्भवती हो जाती हैं। गोरखनाथ बोले, योगी संन्यासियों का पवनपुत्र कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं।

अगर उन्होंने मुझे सताने की कोशिश की, तो मुझे भी उपाय करना पड़ेगा। कलिंगा सुंदरी बोली ऐसा आपके पास क्या उपाय है? गोरखनाथ बोले,मैं अपने तपोबल से स्त्री का बाना बदल सकता हूं। जब मैं स्त्री का भेष बदल लूंगा, तो हुनमान जी भी मुझे पुरुष नहीं कह सकते। कलिंगा सुंदरी को गोरखनाथ की वार्ता में बड़ा आनंद आ रहा था। वह बोली, तब तो तुम्हें भी गर्भवती होना पड़ेगा। गोरखनाथ बोले, योगियों पर हनुमान जी के प्रभाव का कोई असर नहीं पड़ेगा। तब कलिंगा रानी बोली, वहां आपको किस बहाने ले चले।

गोरखनाथ बोले, आप मुझे साजिंदा बना कर ले चलो। कलिंगा रानी ने कहा, साजिंदा उसे कहते हैं, जो साज बजाने में निपुण हो। आप तो कोरे साधु हैं आप का सुर ज्ञान से क्या वास्ता? गोरखनाथ बोले, साज की तो बात क्या है? मैं गान-विद्या में भी निपुण हूं। आप मेरी परीक्षा ले सकती हैं। कलिंगा सुंदरी बोली, तो आप परीक्षा दीजिए। इतना कह कर साज गोरखनाथ के सामने रख दिया। गोरखनाथ ने गंधर्व विद्या की भस्म अभिमंत्रित कर अपने मस्तक पर लगाई जिसके प्रभाव से साजों को भांति-भांति से बजा-बजा कर दिख दिया। फिर साज महिलाओं को पकड़ कर उनके स्वरों के संग गाना आरंभ किया, जिसके प्रभाव से उड़ते पक्षी भी रुक कर गाना सुनने लगे।  कलिंगा सुंदरी गोरखनाथ की लीला देख बड़ी प्रसन्न हुई और बोली, संत जी आपने तो हरफन मौला को भी  मात कर दिया।   त्रिया राज्य की मैनाकिनी रानी आपका संगीत सुनकर बड़ी प्रसन्न होगी और हमें भारी इनाम देगी। परंतु संत जी आप अपना नाम तो बताएं। गोरखनाथ नाम छिपाना चाहते थे इसलिए बोले माता जी आश्रम में तो संत कहने से ही काम चल जाता था परंतु पुराना नाम मेरा पूर्वड्राम है।

कलिंगा सुंदरी ने मन में विचारा बाबा जी को साथ में ले चलने में लाभ अधिक है और हानि रत्ती भर होने की संभावना नहीं है। वह प्रसन्न हो अपनी सहेलियों के साथ जा बैठी और गोरखनाथ सारथी के स्थान पर बैठकर रथ हांकने लगे। रथ त्रिया राज्य के चिन्नापट्टन नगर में जा पहुंचा और कलिंगा के आदेशनुसार रथ रोक दिया गया। सायंकाल का समय था।

सूर्य देवता अस्त हो रहे थे। कलिंगा सुंदरी ने सहेलियों के संग रथ से उतरकर  पहले भोजन किया फिर बिस्तर बिछाकर सोने की तैयारी की और गोरखनाथ को दो रोटी देकर बोली संत जी आप अब सोने की तैयारी करें। गोरखनाथ बोले, माता जी नींद तो अभी आ नहीं रही है। फिर हम संतों का क्या सोना क्या जागना। हम तो बैठे-बैठे ही जागरण भी कर लेते हैं और सो भी लेते हैं।  इतना सुन कलिंगा सुंदरी अपनी सहेलियों के साथ लेटकर  खर्राटे भरने लगी। इधर गोरखनाथ विचारने लगे कि अब अपने गुरु को यहां के जाल से निकालने का क्या प्रयत्न करूं।                                      – क्रमशः

 


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