साधना के प्रारंभ में गुरु स्मरण जरूरी

By: Dec 21st, 2019 12:25 am

साधना के प्रारंभ में गुरु स्मरण के बाद गणपति और भैरव स्मरण से सभी प्रकार के विघ्न नष्ट होते हैं, इसलिए इनका स्मरण करना न भूलें। अनेक मंत्रों को पूर्व महर्षियों ने शापित और कीलित कर दिया है। यदि ऐसी स्थिति हो तो उनका शाप-विमोचन और अकीलन करना अत्यंत आवश्यक है। भूशुद्धि और भूतशुद्धि से बाह्या एवं आंतरिक शुद्धि होती है। न्यासों के द्वारा शरीर देवरूप बन जाता है। तभी तो आराध्य देवता साधक के हृदय में विराजमान होते हैं। जहां तंत्र से संबंधित मंत्र के अंग-प्रत्यंग उल्लिखित हों, वहां निर्देशानुसार उनका जप करें तथा विनियोग आदि भी यथावत करें। कभी-कभी पूर्व संस्कारों के कारण अथक प्रयास करने पर भी साधना पूरी नहीं हो पाती अथवा सिद्ध नहीं होती…

-गतांक से आगे…

साधना के प्रारंभ में गुरु स्मरण के बाद गणपति और भैरव स्मरण से सभी प्रकार के विघ्न नष्ट होते हैं, इसलिए इनका स्मरण करना न भूलें। अनेक मंत्रों को पूर्व महर्षियों ने शापित और कीलित कर दिया है। यदि ऐसी स्थिति हो तो उनका शाप-विमोचन और अकीलन करना अत्यंत आवश्यक है। भूशुद्धि और भूतशुद्धि से बाह्या एवं आंतरिक शुद्धि होती है। न्यासों के द्वारा शरीर देवरूप बन जाता है। तभी तो आराध्य देवता साधक के हृदय में विराजमान होते हैं। जहां तंत्र से संबंधित मंत्र के अंग-प्रत्यंग उल्लिखित हों, वहां निर्देशानुसार उनका जप करें तथा विनियोग आदि भी यथावत करें। कभी-कभी पूर्व संस्कारों के कारण अथक प्रयास करने पर भी साधना पूरी नहीं हो पाती अथवा सिद्ध नहीं होती। ऐसी स्थिति में अविश्वास, अश्रद्धा अथवा निंदा से बचना चाहिए तथा पुनः साधना करनी चाहिए। सिद्धि के प्रति आतुरता, विह्वलता और विकलता से मन में चंचलता बढ़ती है, अतः संयम, शांति एवं धैर्य से साधनारत रहना चाहिए। परोपकारिता, उदारता, सदाचार और पवित्रता आदि कुछ ऐसे गुण हैं जो साधना में सहायक होते हैं। शूद्र कार्यों के निमित्त देवी-देवता को कष्ट देना आवश्यक है। हमारी आवश्यकताओं की कोई सीमा नहीं है। अतः इनके पीछे नहीं भागना चाहिए और केवल कृपा की मांग करनी चाहिए, इसी में कल्याण है।

लब्ध्वा मानव-जन्म दुर्लभतंर तत्रापि पुण्यं कुलं,

दैवे विश्वसितिं च सन्मतिमथ श्रद्धां स्वधर्मेअचलाम्।

भक्तिं यः परमात्मनि प्रथयति स्वात्मैकनिष्ठो जन,

स्तस्मै यच्छति रुद्रयामलमिदं सर्व मनोवांछितम्।।

अति दुर्लभ मनुष्य का जन्म और उसमें भी उत्तम कुल, भाग्य पर विश्वास, श्रेष्ठ बुद्धि एवं स्वधर्म में अचल श्रद्धा की प्राप्ति करके जो व्यक्ति स्वयं में निष्ठावादी होकर परमात्मा में भक्ति की वृद्धि करता है, रुद्रयामल उसके सभी मनोरथों को सिद्ध करता है।

साधनोपयोगी तंत्र-अंग

यहां जो भी उपयोगी तथ्य बताए जा रहे हैं, वे सब तंत्र से संबंधित अंग हैं। साधक द्वारा किए जाने वाले नित्यकर्म भी तंत्र के अंग हैं। इसमें पंच महायज्ञ का विशेष महत्त्व है। प्रायः प्रत्येक हिंदू परिवार में स्वयं के लिए संध्या, कुटुंब-कल्याण के निमित्त देव-पूजा एवं ऋण-मुक्त होकर उत्कृष्ट संस्कार प्राप्ति के लिए पंच महायज्ञ की आवश्यकता होती है।     

 


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