सुन बे अल्पजीवी प्याज

By: Dec 25th, 2019 12:05 am

अशोक गौतम

ashokgautam001@Ugmail.com

एक हैं लोकतंत्र के नव्वाब/ कल सरकारी गोदाम से/ अंधेरे में कानून की आंख बचा चुराकर लाए दो किलो सड़ा स्वदेशी प्याज! नव्वाब होकर सबको खरीदा बता उसे डाइनिंग टेबल पर सजाए/ गुलाब जामुन, कलाकंद पतीसा, लड्डू, पेड़े डस्टबिन गिराए/ प्याज की रखवाली को जैड सुरक्षा कर्मी मंगवाए/ उस वक्त नव्वाब का डाइनिंग टेबल इंद्र का डाइनिंग टेबल लग रहा था। डाइनिंग टेबल पर प्याज सजते ही/ उनकी मायूस अप्सराएं सुंदर बनीं/ मोहल्ले में फैली चोरे प्याज की बदबू घनी। विदेशी प्याज/ अजीब दुर्गंध में बसी सुगंध/ प्याज की बास प्याज हीन पूरे मोहल्ले में फैली मंद-मंद/ चहकती दाल/ मचलता साग/ सलाद की प्लेट प्याज को देख लगी गाने एक से बढ़कर एक राग। आया पड़ोसी/ देखा नव्वाब साहब के डाइनिंग टेबुल पर वायसराय सा अकड़ा चुराकर लाया प्याज/ तो खिला गुलाब सा सरकारी गोदाम से चुराकर लाया प्याज/ पड़ोसी पर गजब का पड़ा उस वक्त उसका रौब औ दाब/ कि तभी कान की खाज खुरकते सिर झुकाए प्याज के सामने सिर झुका बोला मोती चूर का लड्डू/ अबेए सुन बे अल्पजीवी प्याज! भूल मत जो पाए सरकार की गलती से ये रेट, खुशबू ए रंग ओ ताज! आखिर कब तक डालेगा तू जनता के मुहं में तेजाब/ चूसा किसान का तूने अपशिष्ट/ कल का गंगू तेली आज चिड़ा रहा दिखा अपनी प्राइस लिस्ट! कहां-कहां तू फेंका नहीं गया सरेआम/ आज कर रखी तूने सड़क से लेकर संसद परेशान/ बड़ा चौड़ा होकर तू आज फिर रहा/ कल तक तू सड़ता था/ क्या हुआ जो आज राजा तक तुझे देख सड़ रहा/ मचल मत जो तेरे बिना औरतों ने किचन जाना छोड़ दिया लाला/ गरीबों को छोड़ जो तू आज अमीरों का बन गया साला। ये बाजार है प्याज! यहां देर नहीं लगती उतरते रेट का अफारा। तेरी क्या हस्ती है/ अपने बीते कल को याद कर जरा सोच तू/ कुल मिलाकर दुर्गंध से ही भरा है पोच तू/ तेरे रेट जो गिरे अभी/ मेरा मुंह चिड़ाने लायक न रहेगा फिर कभी। स्टॉकिस्ट करते रहे मजे से तेरी जमाखोरी/ सरकार जिनके आगे सदा खड़ी रहे कर जोड़ी। महंगाई में त्यागा है उन्होंने प्याज लहसुन/ देख उनकी तरह मैं तुझे भी त्याग दूंगा, और फिर बन जाऊंगा कोई मंत्री। जब भी सधा है सुन ध्यान से/ पेट रोटी से सधा है/ ऐसे में जो तेरे नखरे उठाए/ आदमी होकर भी वह निरा गधा है। ले, हो गया मैं और वैष्णव/ अब मन जितना करे उतना इतरा/ मैं दो सौ के पार हो गया! अपने दाम के तू चाहे जितने ढोल बजा। ले, छोड़ दिया तुझको तड़के में पाना/ ले, छोड़ दिया तुझको सलाद में सजाना/ ले, छोड़ दिया गरीब ने तुझे रोटी के साथ खाना/ बोल अब किसको चिड़ाएगा तू लल्ला! जो सिर बैठाते, औंधे गिराते/ हम ही हैं वो मल्लाह! देखना लेना कल तुझे पूछने वाला कोई न होगा/ फिर कैसे सहेगा तू अपने अहंकार का ये बोझा/ घूमता तू आज जो यों गर्दन अकड़ा/ पर मान ले तू नहीं, उपभोक्ता ही है बड़ा। अरे पगले! यो रुलाएगा तू कब तक/ देख तो, मेरी बीवी घूमी प्यार से/ मुस्कुराती बोली बाल से/ देख रे दाल संग भर-भर के छाछ/ हम खांएगे मजे से, पर खाएंगे तो बस न प्याज! ले तेरा सारा रौब औ दाब रफ्फू चक्कर/ अब तू फटे बोरे में सड़ता रह सिमटकर। तेरे बिना भी हम मस्त रहेंगे और आबाद! तू तो है बस जीभ का स्वाद/ तुझे नहीं खाने से क्या मैं मर जाऊंगा/ या कि हो जाऊंगा अमर/ झूठे संतों की तरह/ जा हम नहीं अब तेरे फॉलोवर। मसाले चटखारों के लिए अभी और भी सस्ते हैं! चल बे प्याज! तू क्या रुलाएगा हमें/ हम तो पानी के साथ रोटी खाकर भी हंसते हैं।

 


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