ऋषि गौतम

By: Jan 4th, 2020 12:20 am

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 21

कई हजार साल बाद गौतम ऋषि विश्व की सुंदरतम नारी अहिल्या को लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे। बोले, आपकी धरोहर आपको लौटा रहा हूं। स्वीकार करें। ब्रह्माजी उनकी ईमानदारी,चरित्र तथा व्यवहार से बेहद प्रसन्न हुए। उनके संयम और पवित्र भाव ने भगवान ब्रह्मा को बहुत हर्षित किया…

महर्षि अंधतमा जन्म से ही दृष्टिहीन थे। उन पर स्वर्ग की कामधेनु दयावान हो गई। इसी गाय ने अंधतमा की आंखों का अंधेरा दूर कर, नई दृष्टि प्रदान की। अब वह देख सकते थे। तभी से अंधतमा का नाम गौतम पड़ गया। वह सप्तर्षियों में से एक हैं। ये ब्रह्माजी की मानसी सृष्टि में से एक हैं।

विश्व की प्रथम अति सुंदर नारी का निर्माण

ब्रह्माजी के मन में अचानक एक विचार उठा। वह विश्व के संपूर्ण सौंदर्य का प्रयोग कर एक अति सुंदर नारी बनाना चाहते थे। उन्होंने ऐसा ही किया। सब प्रकार के सौंदर्य को एकत्रित करके ब्रह्माजी ने ऐसी नारी निर्मित की, जिसके नख से शिख तक, सर्वत्र सौंदर्य ही सौंदर्य था। यह अभूतपूर्व स्त्री का नाम ‘अहिल्या’ रखा। यह निष्पापा नारी सबके आकर्षण का केंद्र थी।

सब पा लेना चाहते थे अहिल्या को

सभी ऋषि, सभी देवता इस अति सुंदर नारी को पाने के लिए आतुर थे। कुछ ने प्रयत्न भी किए। देवराज इंद्र से रहा न गया, ब्रह्माजी से अहिल्या का हाथ मांग लिया, मगर वह नहीं माने। इनकार कर दिया। चारों ओर इस अद्भुत नारी के चर्चे होने लगे। मगर यह नारी किसी को भी नहीं मिली।

गौतम को मिली धरोहर के रूप में अहिल्या

ब्रह्माजी जानते थे कि महर्षि गौतम तपस्या में लीन रहा करते थे। स्वयं ब्रह्मा जी उस त्रलोक्य सुंदरी को लेकर उनके आश्रम में पहुंचे। महर्षि गौतम से कहा कि इस सुंदरी को आपके पास बतौर धरोहर रखने आया हूं। यह यहीं रहेगी। जब हमें आवश्यकता होगी ले जाएंगे। गौतम ने कहा, जैसी आपकी इच्छा। अहिल्या आश्रम में रहकर गौतम ऋषि की खूब सेवा करती थी। उन्होंने इस नारी को धरोहर की तरह रखा।

ब्रह्माजी के पास पहुंचा दी अहिल्या

कई हजार साल बाद गौतम ऋषि विश्व की सुंदरतम नारी अहिल्या को लेकर ब्रह्माजी के पास पहुंचे। बोले, आपकी धरोहर आपको लौटा रहा हूं। स्वीकार करें। ब्रह्माजी उनकी ईमानदारी,चरित्र तथा व्यवहार से बेहद प्रसन्न हुए। उनके संयम और पवित्र भाव ने भगवान ब्रह्मा को बहुत हर्षित किया। उन्होंने अहिल्या का गौतम के साथ विवाह  संपन्न कर सभी देवों को, देवी-देवताओं को चकित कर दिया। इस नए दंपत्ति से एक पुत्र भी हुआ। नाम रखा शतानंद बाद में यही महर्षि शतानंद  महाराज जनक के राजपुरोहित बने।

पाषाण होने का श्राप मिला

एक समय ऐसा भी आया जब इंद्रदेव ने धोखे से अहिल्या के साथ दुष्कर्म कर दिया। अपनी शकल को गौतम की आकृति देकर वह पाप करने में सफल हो गया। गौतम ऋषि ने इस काल में अहिल्या की सहमति मानकर उसे पाषाण बनने का श्राप दे दिया। अहिल्या बन गई पत्थर। गौतम स्वयं हिमवान पर्वत पर तप करने चले गए। भगवान श्री राम जब जनकपुरी में महर्षि विश्वामित्र के संग आए, उन्होंने अपने चरणों से इस पत्थर को छू दिया। अहिल्या पुनः नारी रूप में आ गई। गौतम ने भी उन्हें पुनः स्वीकार कर लिया।       

– सुदर्शन भाटिया 


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