कर्मचारियों को मिले पुरानी पेंशन

By: Jan 15th, 2020 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

केंद्र सरकार द्वारा एक जनवरी 2004 से और हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 15 मई 2003 से ही लागू न्यू पेंशन स्कीम के दुखदाई परिणाम सामने आने के बाद से इस प्रणाली से जुड़ने वाले नियमित सरकारी कर्मचारियों में रोष है और जिन्हें हजार-दो हजार रुपए की मामूली पेंशन मिल रही है वह सेवानिवृत्त कर्मचारी अपनी किस्मत का रोना रोते हुए अपना माथा पीट रहे हैं। हिमाचली कर्मचारियों के विश्वसनीय समाचार पत्र दैनिक ‘दिव्य हिमाचल’ द्वारा पहले भी पुरानी पेंशन बहाली को लागू किए जाने के समर्थन में लेख प्रकाशित कर सरकार से नई पेंशन प्रणाली की खामियों को उजागर करने की सराहनीय पहल की जाती रही है…

हिमाचल प्रदेश के अग्रणी समाचार पत्र दैनिक ‘दिव्य हिमाचल’ द्वारा विगत दिनों ऑनलाइन करवाए गए सर्वेक्षण में कि क्या हिमाचल प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बहाल होनी चाहिए?  के जवाब में कुल पड़े 11238 वोटों में से 90 फीसदी से ज्यादा लोगों का मानना था कि सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को सम्मानजनक तरीके से अपना वृद्धावस्था जीवन जीने के लिए सरकार द्वारा पुरानी पेंशन प्रणाली को बहाल किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा एक जनवरी 2004 से और हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 15 मई 2003 से ही लागू न्यू पेंशन स्कीम के दुखदाई परिणाम सामने आने के बाद से इस प्रणाली से जुड़ने वाले नियमित सरकारी कर्मचारियों में रोष है और जिन्हें हजार-दो हजार रुपए की मामूली पेंशन मिल रही है वह सेवानिवृत्त कर्मचारी अपनी किस्मत का रोना रोते हुए अपना माथा पीट रहे हैं।

हिमाचली कर्मचारियों के विश्वसनीय समाचार पत्र दैनिक ‘दिव्य हिमाचल’ द्वारा पहले भी पुरानी पेंशन बहाली को लागू किए जाने के समर्थन में लेख प्रकाशित कर सरकार से नई पेंशन प्रणाली की खामियों को उजागर करने की सराहनीय पहल की जाती रही है। वर्तमान समय में कर्मचारी वर्ग राष्ट्रीय स्तर पर ‘नेशनल मूवमेंट फार ओल्ड पेंशन स्कीम‘, ‘अटेवा पेंशन बचाओ मंच’ और हिमाचल प्रदेश में ‘एनपीएसईए’ एचपी संगठन के बैनर तले पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर मुखर और आंदोलनरत हैं। इन संगठनों से जुड़े कर्मचारियों का मानना है कि पुरानी पेंशन सरकारी नौकरियों की आत्मा है और इसकी बहाली कर्मचारियों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है तथा वे इसकी बहाली के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष करते रहेंगे। हिमाचल प्रदेश पुरानी पेंशन योजना बहाली संयुक्त मोर्चा ने भी पेंशन बहाली की मांग को लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को प्रत्येक परिवार से एक-एक पोस्टकार्ड भेजने का फैसला लिया है। प्रदेश में पहले भी पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर संघर्षरत विभिन्न संगठनों के पदाधिकारी कांग्रेस सरकार और वर्तमान भाजपा सरकार के विधायकों और ओहदेदारों के पास न्यू पेंशन स्कीम से उपजी खामियों को लेकर ज्ञापन सौंप चुके हैं, लेकिन न तो केंद्र सरकार अथवा राज्य सरकार ने न्यू पेंशन स्कीम की जगह पुरानी पेंशन बहाली बारे कोई ठोस आश्वासन दिया है अथवा कोई जरूरी कदम उठाया है।

हां चुनाव के मौके पर जरूर कुछ नेता अथवा पार्टियां पुरानी पेंशन बहाली के समर्थन में कर्मचारियों के पक्ष में उतर आती हैं, लेकिन सत्ता हासिल करने के बाद सभी का रवैया टालमटोल वाला ही रहता आया है। हिमाचल प्रदेश में गत मानसून सत्र के दौरान सदन में माकपा विधायक राकेश सिंघा और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर द्वारा प्रदेश पर कर्मचारियों के बढ़ते पेंशन बिल के बोझ का हवाला देते हुए पुरानी पेंशन प्रणाली को बहाल करने से मना किया जा चुका है। लिहाजा कर्मचारियों के बीच में घोर निराशा का आलम है और उनके पास पुरानी पेंशन बहाली के लिए आंदोलन, धरना, प्रदर्शन करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं बचता है। कर्मचारियों में इस बात को लेकर भी रोष है कि न्यायपालिका और विधायिका में अच्छा वेतन ले रहे लोगों के लिए तो पेंशन का प्रावधान है, लेकिन मुट्ठी भर वेतन लेने वाले विशेषकर तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों पर अंशदाई पेंशन योजना को थोपना कोई न्यायसंगत बात नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ग्रेच्युटी और पेंशन के लाभ को कर्मचारी की मेहनत का नतीजा मानते हुए पेंशन को कर्मचारी की संपत्ति करार दिया है, लेकिन आजकल एनपीएस के तहत रिटायर हो रहे अधिकांश सरकारी कर्मचारियों को मिल रही मुट्ठी भर पेंशन से उनका सामाजिक जीवन और प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वे सुखपूर्वक  सम्मानजनक जीवन जीने के बजाय वृद्धावस्था में आजीविका हेतु छोटे-मोटे कार्य कर गुजर-बसर करने के लिए अभिशप्त हैं। पुरानी पेंशन प्रणाली के अंतर्गत सेवानिवृत्त होने वाले प्रत्येक कर्मचारी को उनके अंतिम वेतन के 50 फीसदी राशि को बेसिक पेंशन के तहत दिए जाने का प्रावधान है और उन्हें वेतन आयोग के रिवीजन और डीए बढ़ोतरी का बेनिफिट भी मिलता है, लेकिन एनपीएस में मिनिमम पेंशन की गारंटी नहीं होने की वजह से सेवानिवृत्त हो रहे कर्मचारियों का बुढ़ापा, उनकी सामाजिक सुरक्षा, सम्मान और स्वाभिमान तथा रुतबा खतरे में पड़ चुका है।

कई कर्मचारियों का मानना है कि यदि राज्य सरकार पुरानी पेंशन प्रणाली को बहाल नहीं कर सकती है तो कम से कम नई पेंशन योजना के अंतर्गत न्यूनतम पेंशन की गारंटी ही दे, अपने योगदान को 14 फीसदी से बढ़ाकर कर्मचारियों के अंशदान के मुकाबले दोगुना यानी 20 प्रतिशत करे। इसके अतिरिक्त इन्कम टैक्स की छूट को सेक्शन 80 सीसीडी 1बी के अंतर्गत दोगुना करके एक लाख तक बढ़ाया जाए। ग्रेच्युटी राशि को भी तत्काल 20 लाख रुपए किया जाए। ऐसे समय में जब केंद्र और राज्य सरकारें आम नागरिकों और किसानों तक को पेंशन देने के लिए चिंतित नजर आ रही हों, वहीं सालोंसाल सरकारी नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने वाले सरकारी कर्मचारियों को उनका जायज हक पेंशन न देना उनके साथ अन्याय ही माना जाना चाहिए। उम्मीद ही की जा सकती है कि केंद्र और हिमाचल प्रदेश सरकार अपने सरकारी कर्मचारियों के पेंशन संबंधी मामले में न्याय संगत कदम उठाकर उन्हें राहत प्रदान करेंगी।


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