गणतंत्र पर उठे सवाल

By: Jan 28th, 2020 12:05 am

देश का 71वां गणतंत्र दिवस गुजर गया। एक संप्रभु, स्वतंत्र और पूरी तरह संवैधानिक देश का गणतंत्र…! राजपथ पर सेना और सुरक्षा बलों के जवानों को परेड करते हुए देखा, तो ‘विविधता में एकता’ और एक संगठित देश का बिंब मानस में साकार हो उठा। आसमान में सुखोई-30, तेजस और जगुआर विमानों को उनकी चीरती हुई गति से उड़ते देखा और अमरीकी हेलीकॉप्टरों-शिनूक और अपाचे-की आक्रामकता के ब्यौरे सुने, तो लगा कि सर्वनाश के साक्षात् प्रतीक हैं। अंतरिक्ष में ही उपग्रह को निशाना बनाकर ध्वस्त करने वाली ए-सैट मिसाइल (मिशन शक्ति), के-9 वज्र तोप और 360 डिग्री पर घूमते हुए दुश्मन पर प्रहार करने वाले टी-90 भीष्म टैंक की झांकियां देखीं, तो समझ आया कि भारत वाकई एक सैन्य शक्ति है और किसी भी दुश्मन के दांत खट्टे करने में सक्षम है। राजपथ पर पहली बार उन योद्धाओं को भी कदमताल करते देखा, जिन्होंने सरहद पार कर पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। आतंकी अड्डे तबाह किए थे और कई आतंकियों को भी ढेर किया था। गणतंत्र दिवस पर देश ऐसी सच्चाइयों का साक्ष्य बना, जो एक विविध और संगठित भारत बुनती हैं। उनमें जाति, रंग, नस्ल, धर्म का कोई विभेद नहीं है। उसके बावजूद देश के पावन और ऐतिहासिक दिन हम कुछ सवालों की बात उठा रहे हैं, तो उन पर विमर्श जरूरी है। विमर्श करके उन सवालों का जोरदार खंडन करना भी अनिवार्य है। विश्व की प्रख्यात पत्रिका ‘टाइम’ की ऐसी आवरण कथा वाला अंक बाजार में है, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ‘बंटवारा प्रमुख’ करार दिया गया है और इसी भाव का रेखाचित्र भी छापा गया है। टाइम के अलावा, न्यूयॉर्कर, वाशिंगटन पोस्ट, इकोनॉमिस्ट, गार्जियन आदि प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं ने भी ऐसे विश्लेषण छापे हैं कि भारत में हिंदू-मुसलमान सियासत के कारण लोकतंत्र पर संकट गहरा रहा है। इनमें से अधिकतर ने 2015 और बाद में प्रधानमंत्री मोदी को भारत के ‘संभावना पुरुष’ के तौर पर चित्रित किया था और विश्व राजनीति का नया नायक करार दिया था। टाइम पत्रिका ने करीब 2 घंटे तक प्रधानमंत्री का इंटरव्यू किया था, जिसे बाद में अनुवाद करा विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला गया था। एकदम मोहभंग के कारण क्या हैं? बेशक हम इन विदेशी प्रकाशनों की चिंता, परवाह न करें, लेकिन उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। शायद उनका ही प्रभाव रहा होगा कि दावोस में विश्व आर्थिक मंच से कई प्रमुख निवेशकों ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और मुसलमानों को देश से बेदखल करने और नतीजतन भारत को ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की राजनीति संबंधी आलोचनाएं कीं और सवाल भी उठाए। ध्यान रहे कि वे निवेशक उस मंच पर मौजूद थे, जिनकी विश्व की अर्थव्यवस्था में बड़ी भूमिका रही है। यदि ऐसे ही दुष्प्रचार जारी रहे तो भारत की छवि बिगड़ेगी, निवेश और अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर होंगे। गणतंत्र दिवस पर ऐसे सवालों का विश्लेषण और सटीक जवाब जरूरी है। यह भारत सरकार का दायित्व है। दरअसल विदेश में ही नहीं, भारत में भी ऐसी आशंकाओं को सार्वजनिक स्वर मिल रहे हैं कि गणतंत्र खतरे में है। संविधान को तोड़ने और बदलने की कोशिशें जारी हैं। प्रधानमंत्री मोदी देश को बांटने में लगे हैं। ऐसी आशंकाएं और सवाल सियासी और पूर्वाग्रही ज्यादा हो सकते हैं, क्योंकि नागरिकता के सवाल पर देश में माहौल वैसा ही बना दिया गया है। गणतंत्र दिवस के मौके पर कमोबेश हम अपने पाठकों को आश्वस्त कर सकते हैं कि देश के संविधान को कोई खतरा नहीं है। संविधान की मूल भावना से कोई छेड़छाड़ या खिलवाड़ नहीं किया गया है और न ही ऐसी कोई गुंजाइश है। संविधान के संरक्षक के तौर पर सशक्त और तटस्थ न्यायपालिका आज भी जिंदा है। गुमराह न हों और अपने संवैधानिक मूल्यों में विश्वास रखें। यह विविधता में एकता का देश है और सभी भारतीयों का है। ऐसे सवालों और दुष्प्रचार के कारण अपने गणतंत्र मनाने के आनंद को कम न करें।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App