तकनीकी विकास की चुनौती

By: Jan 14th, 2020 12:06 am

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

तकनीकी विकास से अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के मौलिक परिवर्तन समय-समय पर होते रहते हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जोसेफ  शुमपेटर ने इसे ‘सृजनात्मक विनाश’ की संज्ञा दी थी। जैसे पूर्व में घोड़ा गाड़ी चलती थी। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की रफ्तार लगभग 10 किलोमीटर प्रति घंटा होती थी। आज घोड़ा गाड़ी समाप्त हो गई है। आज घोड़ा गाड़ी बनाने, घोड़े की देखभाल करने और इन्हें चलाने के रोजगार पूरी तरह समाप्त हो गए हैं…

ऑनलाइन पोर्टल लिंकडिन ने कहा है कि ब्लाक चेन, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, जावा स्क्रिप्ट और रोबोटिक्स क्षेत्रों में तेजी से नए रोजगार बन रहे हैं। पारंपरिक मैन्युफेक्चरिंग से संबंधित इलेक्ट्रिकल अथवा मेकेनिकल इंजीनियरों एवं सिविल इंजीनियरों अथवा कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन बहुत धीरे हो रहा है। यह परिवर्तन विश्व अर्थव्यवस्था के बदलते स्वरूप का संकेत देता है जो मैन्युफेक्चरिंग से हट कर सेवा क्षेत्र की ओर मुड़ रही है। तकनीकी विकास से अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के मौलिक परिवर्तन समय-समय पर होते रहते हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जोसेफ  शुमपेटर ने इसे ‘सृजनात्मक विनाश’ की संज्ञा दी थी। जैसे पूर्व में घोड़ा गाड़ी चलती थी। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की रफ्तार लगभग 10 किलोमीटर प्रति घंटा होती थी। आज घोड़ा गाड़ी समाप्त हो गई है। आज घोड़ा गाड़ी बनाने, घोड़े की देखभाल करने और इन्हें चलाने के रोजगार पूरी तरह समाप्त हो गए हैं, लेकिन साथ-साथ जीप और बस के बनाने, इनकी मरम्मत करने और इन्हें चलाने में उससे अधिक रोजगार उत्पन्न हो गए हैं।

लोगों का आवागमन इतना बढ़ गया है कि बसें भी भरी रहती हैं। दूसरा उदाहरण लें तो पूर्व में बैंक से नकद निकालने के लिए आप बैंक जाते थे। वहां बैंक के क्लर्क से आप अपना चेक पास कराकर कैशियर से नगद लेते थे। बैंक में क्लर्क और कैशियर के रोजगार सृजित हो रहे थे। आज आप एटीएम में जाकर वही रकम स्वयं निकाल लेते हैं। बैंक के क्लर्क और कैशियर का काम समाप्त हो गया है, लेकिन उसी अनुपात में बैंक के खाता धारकों की संख्या में वृद्धि हुई है और बैंकों के कम्प्यूटर कर्मियों की संख्या बढ़ने से कुल कर्मियों की संख्या लगभग उतनी ही रह गई है। तीसरा उदाहरण लें तो आज से बीस वर्ष पूर्व तमाम सब्सक्राइबर टेलीफोन डायलिंग अथवा एसटीडी बूथ हुआ करते थे। इनके माध्यम से आप दूरदराज अपने जानकारों से फोन करते थे।

आज मोबाइल फोन में यह सुविधा उपलब्ध हो जाने से एसटीडी बूथ पूरी तरह ठप हो गए हैं। उनमें काम करने वाले बेरोजगार हो गए हैं, लेकिन उसी अनुपात में मोबाइल फोन को बेचने, मरम्मत करने एवं उसमें प्रोग्राम डालने का धंधा बढ़ गया है। बल्कि मोबाइल फोन से आप ऑनलाइन शॉपिंग, ट्रेन के जानकारी इत्यादि भी हासिल कर रहे हैं जिससे आपका जीवन आसान हो गया है। शुमपेटर का कहना था कि इस प्रकार के सृजनात्मक विनाश से घबराना नहीं चाहिए। हमें नए कार्यों के विस्तार पर ध्यान देना चाहिए। पुराने कार्यों का विनाश और नए कार्यों का सृजन साथ-साथ चलता है। यह एक सतत प्रक्रिया है। अमरीका की बू्रकिंग्स संस्था के मेट्रोपोलिटन पालिसी प्रोग्राम के द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार आने वाले समय में उच्च तकनीकों में रोजगार में वृद्धि होगी और वेतन भी बढ़ेंगे, मध्यम तकनीकों में रोजगार कम होंगे और निम्न तकनीकों में रोजगार की संख्या में वृद्धि होगी, लेकिन वेतन न्यून रहेंगे। वर्तमान में न्यून, मध्यम और उच्च श्रेणी का एक पिरामिड सरीखा रोजगार का वितरण है। न्यून तकनीक के रोजगार जैसे टैक्सी चलाना, मोबाइल फोन को बेचना और मरम्मत करना, कार की मरम्मत करना अथवा ट्यूबवेल की फिटिंग करना इत्यादि के रोजगार की संख्या में वृद्धि होगी, लेकिन इनके वेतन में गिरावट आएगी।

इस प्रकार के कार्य के श्रम बाजार में श्रमिकों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और वेतन में गिरावट आएगी। मध्यम श्रेणी के तकनीक के रोजगार जैसे एक्स-रे को देखना अथवा कम्प्यूटर टाइपिंग करना के कार्य लुप्त प्राय हो जाएंगे। आगामी समय में ऐसी तकनीकें आ जाएंगी जिनसे कम्प्यूटर एक्स-रे को देखेगा और रेडियोलॉजिस्ट का रोजगार समाप्त हो जाएगा। ऐसे कम्प्यूटर प्रोग्राम बन जाएंगे कि आप स्वयं ही अपने कंप्यूटर से बोल कर टाइपिंग करा सकेंगे। जैसे वर्तमान में यदि आपको कोई कागज छपवाना है तो उसकी फोर्माटिंग आप स्वयं कर लेते हैं जो कि पूर्व में किसी मध्यम श्रेणी के कर्मी से करते थे। इसलिए मध्यम श्रेणी के रोजगार लुप्त प्राय हो जाएंगे। तीसरी तरफ  जो उच्च श्रेणी के रोजगार हैं, जैसा कि लिंकडिन ने बताया है, जैसे ब्लाक चैन, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, जावा स्क्रिप्ट और रोबोटिक्स जिनमें भारी वृद्धि होगी। इनमें वेतन भी बढें़गे और संख्या भी बढ़ेगी। यद्यपि कुल संख्या कम रहेगी क्योंकि इसमें कम संख्या में लोग ही अधिक मात्रा में काम कर सकते हैं। किसी एक वैज्ञानिक ने एक नए प्रकार का रोबोट बना दिया तो उस रोबोट का लाखों की संख्या में उत्पादन करना और उससे करोड़ों माल का उत्पादन करना संभव हो जाता है। इसलिए उच्च तकनीक के रोजगार संख्या में कम और वेतनमान अधिक होंगे। इस परिस्थिति में हमको अपने देश की जनता को रोजगार उपलब्ध कराना है और देश के आर्थिक विकास को बढ़ाना है। स्पष्ट होगा कि सर्वप्रथम हम उच्च तकनीकों को सृजित करने में रोजगार बनाने होंगे। इसके लिए हमें केंद्र सरकार की तमाम प्रयोगशालाओं का आमूल चूल परिवर्तन करना होगा। विश्व स्तर पर हमारी प्रयोगशालाएं ठहरती नहीं हैं। अतः हमें तकनीकों के सृजन को आउटसोर्स करने पर विचार करना होगा। सरकार द्वारा ब्लाक चैन और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में नई तकनीकों को सृजित करने के लिए निजी संस्थाओं अथवा सरकारी प्रयोगशालाओं अथवा हमारे सरकारी यूनिवर्सिटियों को ठेके दिए जा सकते हैं। जिससे कि इन ठेकों को हासिल करने के लिए संस्थाओं के बीच स्पर्धा हो और हम इन तकनीकों को तेजी से बना सकें। विशेषकर हमें अपनी यूनिवर्सिटी तंत्र में तेजी से सुधार करना होगा। वर्तमान व्यवस्था में अध्यापकों पर रिसर्च करने का दबाव नहीं होता है और कुछ विद्यालयों को छोड़ दें तो वे कम ही रिसर्च करते हैं। वातावरण भी रिसर्च का नहीं है क्योंकि प्रशासन द्वारा तमाम अवरोध पैदा किए जाते हैं। इसलिए अपनी यूनिवर्सिटियों के द्वारा रिसर्च की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बनानी जानी चाहिए जिससे देश में तकनीकों का सृजन हो। यदि ऐसा होता है तो हम अपने युवाओं को रोजगार ही नहीं बल्कि देश की आर्थिकी को भी सुधार सकेंगे और विश्व में भारत का प्रभुत्व भी स्थापित कर सकेंगे।

ई-मेलः bharatjj@gmail.com

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App