दया याचिका भावनाओं पर भारी क्यों

By: Jan 18th, 2020 12:05 am

सुखदेव सिंह

लेखक, नूरपुर से हैं

उन्नाव बलात्कार कांड, जम्मू में आसिफा और हिमाचल प्रदेश में गुडि़या बलात्कार हत्याकांड के आरोपियों को सजा न मिलना हमारी न्यायिक व्यवस्था में कमी आना ही कहा जा सकता है। बलात्कार पीडि़ता को सरेआम सड़क पर पेट्रोल छिड़क कर  जलाया जाना हमारे सिस्टम की नाकामी का नतीजा है…

निर्भया हत्याकांड आरोपी की दया याचिका पर सुनवाई न होने की वजह से अब उन्हें 22 जनवरी को फांसी पर लटकाए जाने का मामला एक बार फिर से ठंडे बस्ते में पड़ गया है। हवस के भूखे भेडि़यों को अब कब फंदे पर लटकाना यह अब जेल प्रशासन को तय करना होगा। सात साल गुजर जाने की जद्दोजहद में बड़ी मुश्किल से आरोपियों को फांसी दिए जाने की सजा न्यायालय ने सुनाई थी। निर्भया बलात्कार हत्याकांड के आरोपियों को कड़ी सजा मिल रही है, ऐसा सुनकर जनता में खुशी का माहौल था। बलात्कार के एक आरोपी ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को अर्जी भेजकर दया याचिका की गुहार लगाई थी। दया याचिका पर अभी तक कोई सुनवाई न होने की वजह से पटियाला हाउस कोर्ट ने आरोपियों की फांसी दिए जाने वाली तारीख पर स्टे लेकर अपना दांव खेला है। एक आरोपी की गुहार पटियाला हाउस कोर्ट को नजर आई, मगर करोड़ों लोगों का गुस्सा नजर अंदाज करते हुए उन्हें अब 22 जनवरी को फांसी दिए जाने पर रोक लगाकर जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश की है। क्या यही हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था की सच्चाई है? एक आरोपी संगीन अपराध करने के बावजूद दया याचिका की गुहार लगाने का अधिकार रख सकता है। अमानवीय घटनाओं को अंजाम देने  वाले आरोपियों के साथ मानवीय व्यवहार करना गलत बात है, जब मामला ही जनता की भावनाओं से जुड़ा हुआ हो। आखिर क्यों वर्षों तक जेलों में ऐसे अपराधियों का लालन-पालन जेल प्रशासन करके बजट की बर्बादी करता है। पटियाला हाउस कोर्ट ने आरोपियों को फांसी दिए जाने की तारीख पर रोक लगाकर लोगों का न्यायिक व्यवस्था पर से विश्वास उठाने की कोशिश की है। न्याय वही जो समय पर मिले। सालों बाद भी इस तरह का खेल खेला जाए तो इसे न्यायिक व्यवस्था का मजाक बनाना ही कहा जा सकता है। समाज में दिनोंदिन बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर अंकुश लगाए जाने को लेकर आज जरूरत कडे़ कानून को लागू करने की, अगर इस तरह बलात्कार की घटनाओं को अंजाम देकर किसी की आबरू को लूटने वालों पर दया की जाती रही तो समाज को अपराध मुक्त बनाना नामुमकिन ही होगा। निर्भया हत्याकांड के आरोपियों को कड़ी सजा मिले, आज सबकी निगाहें आरोपियों को फांसी पर लटकाए जाने पर लगी हुई हैं। यही नहीं आरोपियों को फांसी पर लटकाए जाने के समय उनकी वीडियो सोशल मीडिया में वायरल किए जाने की मांग भी पुरजोर से चल रही थी। बुद्धिजीवी वर्ग का ऐसा सुझाव इसलिए दिया गया है क्योंकि देश, विदेश में भी लोग इसका सबक लेकर अपराध करने से तौबा कर सकें। निर्भया हत्याकांड का मामला एक ऐसा है जिसको लेकर लोग सड़कों पर आरोपियों को तत्काल फांसी दिए जाने को लेकर विरोध प्रदर्शन तक कर चुके हैं। निर्भया बलात्कार हत्याकांड तदोपरांत ऐसी घटनाओं में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है जिसका खामियाजा नन्हीं बेटियों तक को भुगतना पड़ रहा है।

उन्नाव बलात्कार कांड, जम्मू में आसिफा और हिमाचल प्रदेश में गुडि़या बलात्कार हत्याकांड के आरोपियों को सजा न मिलना हमारी न्यायिक व्यवस्था में कमी आना ही कहा जा सकता है। बलात्कार पीडि़ता को सरेआम सड़क पर पेट्रोल छिड़क कर  जलाया जाना हमारे सिस्टम की नाकामी का नतीजा है। हिमाचल प्रदेश में छेड़छाड़ और बलात्कार के मामलों में इजाफा हुआ है। सीबीआई पर जनता इसलिए विश्वास रखती है कि वह आपराधिक मामलों को जल्द सुलझाकर अपराधियों को सलाखों के पीछे धकेल देती है। गुडि़या हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में सीबीआई भी नाकाम रहकर कानून का मजाक बना चुकी है तो चिंताजनक बात है। जनता के जान, माल की रक्षा करने वाली पुलिस की देखरेख में गुडि़या हत्याकांड के एक गवाह की जेल में हत्या हो जाती है और पुलिस के आला अधिकारी तक जेल की हवा खाने को मजबूर हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश की पुलिस को बेशक सर्वश्रेष्ठ का अवार्ड मिल चुका है, मगर अभी तक वह भी गुडि़या हत्याकांड की गुत्थी सुलझाकर आरोपियों को सजा दिलाने में नाकाम है। गुडि़या हत्याकांड में पुलिस महानिरीक्षक की कार्यप्रणाली पर भी न्यायालय में एक महिला एसपी आरोप तक लगा चुकी है। अगर पुलिस विभाग के आला अधिकारी ही इस तरह दबाव में आकर काम करते रहेंगे तो पीडि़तों को न्याय मिलने की आस रखनी चाहिए क्या? युवा पीढ़ी आज नशों की गर्त में डूबकर आपराधिक घटनाओं को सरेआम अंजाम देकर कानून की खिल्ली उड़ा रही है। नशों में डूबकर लोग आजकल घर की इज्जत को भी तार-तार करके मानवता को शर्मसार किए जा रहे हैं। ऐसा कोई भी दिन नहीं गुजर रहा कि नशेड़ी अपनी पत्नियों को मौत के घाट उतार रहे और अपनी बेटियों तक को हवस का शिकार बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं। राष्ट्र निर्माता तक ऐसे मामलों में संलिप्त पाकर गुरु-शिष्य की मर्यादाओं को भी पार करते जा रहे हैं। धर्म प्रधान समाज में बलात्कार की पीडि़ता को अपनी इज्जत गंवाकर भी न्याय न मिलना हमारी कानून प्रक्रिया पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। पीडि़त महिलाओं की कई बार पुलिस थानों में समय पर रिपोर्ट दर्ज नहीं हो पाती है, गवाह और सबूतों का अभाव, न्यायालयों में वकीलों का पीडि़ता से उल्टे सीधे सवाल करना, पुलिस का प्रभाव में आकर काम करना और ऐसे मामलों में राजनीतिक हस्तक्षेप ज्यादा बढ़ने की वजह से बलात्कार की पीडि़त महिलाओं को न्याय मंदिरों से न्याय नहीं मिल पा रहा है। पुलिस थानों में बलात्कार की रिपोर्ट तो दर्ज की जाती है, मगर ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वालों पर कठोर कार्रवाई न होना नारी समाज की सुरक्षा खतरे में पड़ने के बराबर है। स्कूल, कालेजों में अब नैतिक और योग शिक्षा शुरू किए जाने पर बल दिए जाने की जरूरत है। छात्रों में नैतिक शिक्षा का अभाव होने की वजह से ही ऐसी अमानवीय घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है।


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