मौत की सजा पाए दोषी जब चाहे, तब नहीं दे सकते चुनौती
नई दिल्ली – कानूनी दांवपेच की वजह से निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी में हो रही देरी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बहुत ही अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि मौत की सजा का अंजाम तक पहुंचना बहुत महत्त्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा संदेश नहीं जाना चाहिए कि मौत की सजा ‘ओपन एंडेड’ है और इसकी सजा पाए कैदी हर समय इसको चुनौती दे सकते हैं। दूसरी तरफ गुरुवार को ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के बाद दोषियों को सात दिन में फांसी के लिए गाइडलाइन तय करने की मांग वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की गुजारिश की। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब निर्भया गैंगरेप और मर्डर केस के चार दोषी एक के बाद एक याचिका दायर कर रहे हैं, जिससे उनकी फांसी में देरी हो रही है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यह कानून के हिसाब से होना चाहिए और जजों का समाज व पीडि़तों के प्रति भी कर्त्तव्य है कि वे न्याय करें। सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बैंच ने ये टिप्पणियां मौत की सजा पाए एक प्रेमी जोड़े की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
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