शराबबंदी के बिना अधूरा है नशे पर प्रहार

By: Jan 20th, 2020 12:06 am

राकेश शर्मा

लेखक, कांगड़ा से हैं

मां-बाप हमेशा उम्मीद करते हैं कि एक दिन उनकी संतान, उनका और उनके परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा लेगी और वे एक निश्चिंत जिंदगी जिएंगे, लेकिन संतान के नशे की चपेट में आने से उनकी सारी उम्मीदें तहस-नहस हो रही हैं और नारकीय जीवन जीने के लिए उन्हें मजबूर होना पड़ रहा है। परिवारों पर नशे का ये प्रहार कई प्रकार से होता है। नशा करके गाड़ी चलाते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु या जीवन भर की विकलांगता सबसे ऊपर है…

नशे की दलदल में धंसते युवाओं और उनके उजड़ते  परिवारों के किस्से अब प्रदेश में  आम चर्चा का विषय बन रहे हैं। हिमाचल के हर कोने में नशे के अभिशापों से ग्रसित परिवारों का दर्द महसूस किया जा सकता है। मां-बाप हमेशा उम्मीद करते हैं कि एक दिन उनकी संतान, उनका और उनके परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा लेगी और वे एक निश्चिंत जिंदगी जिएंगे, लेकिन संतान के नशे की चपेट में आने से उनकी सारी उम्मीदें तहस-नहस हो रही हैं और नारकीय जीवन जीने के लिए उन्हें मजबूर होना पड़ रहा है। परिवारों पर नशे का ये प्रहार कई प्रकार से होता है।

नशा करके गाड़ी चलाते हुए सड़क दुर्घटना में मृत्यु या जीवन भर की विकलांगता। नशे की ओवरडोज से मानसिक या शरीरिक विकार या फिर मृत्यु। इसके अलावा नशीले पदार्थों की तस्करी के कारण हुई कानूनी कार्रवाई के कारण होने वाला मानसिक तनाव। इसी कड़ी में आजकल नशे के खिलाफ एक विशेष प्रदेशव्यापी अभियान प्रदेश के विद्यालयों में एक महीने के लिए चलाया जा रहा है जिसकी शुरुआत बीते कुछ दिनों से हो चुकी है। इस अभियान के द्वारा विद्यार्थियों को विद्यालयों में विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से और उनके माता-पिता को इस अभियान में शामिल करके नशे के दुष्परिणामों के बारे में बताकर नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित किया जाना है।

हालांकि, इस तरह के कार्यक्रम विद्यालयों में पिछले कई सालों से होते आ रहे हैं, चाहे उनका स्वरूप इनसे कुछ अलग हो, लेकिन इनके परिणाम नगण्य हैं। हमें व्याख्यानों और भाषणों से आगे बढ़कर मजबूत इच्छा शक्ति के साथ निर्णायक लड़ाई लड़ने की जरूरत है ताकि परिणाम सकारात्मक बदलाव ला सकें। हिमाचल प्रदेश में नशे का ट्रेंड पिछले कुछ समय में बदल जरूर गया है, लेकिन यह बदलाव इतना बड़ा भी नहीं है कि इसने पुराने खतरों को समाप्त कर दिया है। इस बदलाव ने हम सभी को इतना प्रभावित कर दिया है कि हम केवल इस परिवर्तन की चर्चा में ही मशगूल हो गए हैं। आजकल नशे पर होने वाली हर बहस सिंथेटिक ड्रग चिट्टे से शुरू होकर चिट्टे पर ही खत्म हो जाती है।

ये सही है कि चिट्टे जैसे खतरनाक सिंथेटिक ड्रग्स का प्रकोप हमारे प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है जो कि चिंतनीय है, लेकिन जब प्रदेश में चिट्टा सक्रिय नहीं था तब भी नशे के खिलाफ  अभियान चलाए जाते थे। उस समय ये अभियान शराब के कुप्रभावों पर आधारित होते थे।  प्रदेश में पहले भी सबसे खतरनाक नशा शराब का था और आज भी शराब का सेवन करने वालों की संख्या बहुत अधिक है। नशे के खिलाफ  पूर्व में चलाए गए सब अभियानों के बावजूद नशे का कारोबार फलता-फूलता गया और खासकर प्रदेश के सीमावर्ती जिलों में नशे के कारोबारियों ने अपना एक जबरदस्त नेटवर्क स्थापित कर लिया। हर रोज नशे के खिलाफ  पुलिस की कार्रवाई में इन जिलों में नशे के कारोबारियों को पकड़े जाने की खबरें आती रहती हैं।

इन खबरों से यह एहसास होता है कि जिस मात्रा में ये नशा पकड़ा जा रहा है उससे लगता है कि इसकी मांग और खपत प्रदेश में बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। इन नशों का प्रभाव इतना ज्यादा हमारे दिमाग पर पड़ चुका है कि एक आम आदमी भी चिट्टे और भांग या मेडिकल नशे को ही असली नशा मानने लग पड़ा है, जबकि ये सही नहीं है। हिमाचल प्रदेश में अभी भी शराब का सेवन करने वालों की संख्या सबसे अधिक है। शराब के अत्यधिक सेवन से होने वाली बीमारियों और घटिया शराब का सेवन आज भी दूसरे नशों से अधिक घातक है। शराब से घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाएं और झगड़े  सबसे अधिक होते हैं।

किसी भी बड़े से बड़े नशे करने वाले से अगर पूछा जाए कि आपने नशे की शुरुआत किस नशे से की थी तो उसका जवाब शराब होता है। शराब के नशे में ही अकसर युवा बड़े नशों की चपेट में आ जाते हैं। बड़े या सिंथेटिक नशों की चपेट में आने के बाद वो चाहे शराब छोड़ दें, लेकिन तब तक वे एक ऐसे रास्ते पर निकल चुके होते हैं कि जहां से लौटने के रास्ते बंद हो चुके होते हैं। प्रदेश में शराब मफिया भी काफी सक्रिय है। प्रदेश सरकार को शराबबंदी के ऊपर विचार करने की जरूरत है ताकि नशों की इस जननी पर नियंत्रण करके प्रदेश के युवाओं को सही रास्ता दिखाया जा सके। गुजरात एक ऐसा राज्य है जिसमें पिछले लगभग 70 वर्षों से शराबबंदी लागू है और हम देखते हैं कि पूरा देश गुजरात मॉडल से प्रभावित है, लेकिन शराबबंदी जिसका गुजरात मॉडल को विकसित करने में एक अहम योगदान है, उसको लागू करने से हर प्रदेश कतराता है।

वर्ष 2015 में बिहार में भी शराबबंदी कर दी गई जिसके चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। बिहार में हत्या और डकैती के मामलों में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आई है। सामाजिक दंगों में 13 प्रतिशत और सड़क दुर्घटनाओं में 10 प्रतिशत की गिरावट शराबबंदी के बाद दर्ज की गई है। इसके अलावा दूध की बिक्री लगभग 200 प्रतिशत और पनीर की 50 प्रतिशत और दोपहिया वाहनों की बिक्री लगभग 30 प्रतिशत बढ़ने से बिहार की आर्थिकी भी मजबूत हुई है।  हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है और यहां पर यातायात का एकमात्र सड़क है।

दुर्गम क्षेत्र होने के कारण दुर्घटनाओं के आसार बहुत अधिक होते हैं। शराब का सेवन इन दुर्घटनाओं की भयावहता को बहुत अधिक बढ़ा देता है। कुछ मामलों में तो शराब का सेवन करके गाड़ी चला रहे व्यक्ति दूसरों की जान के दुश्मन भी बन जाते हैं। इसलिए सरकार को इस विषय में विचार करने की जरूरत है।


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