सतलुज घाटी में कई तरह के वन्यजीव पाए जाते हैं

By: Jan 1st, 2020 12:18 am

सतलुज घाटी में कई प्रकार की वनस्पति व वन्य जीव पाए जाते हैं। सतलुज नदी के किनारे अवस्थित गांव खेती व उद्यानों की सिंचाई के लिए व्यापक स्तर पर सतलुज नदी के पानी का प्रयोग करते हैं। इस घाटी में और कई छोटी-बड़ी खड्डे हैं, जो संपूर्ण सतलुज घाटी के लिए जीवन दायिनी है। सतलुज घाटी की मुख्य फसलें गेहूं, मक्की व धान है…

गतांक से आगे

रत्नपुर धार : इसकी कुल लंबाई 11 किलोमीटर है, इसी श्रृंखला में समुद्रतल से 1230 मीटर की ऊंचाई पर रत्नपुर किला स्थित है। इसी किला में अपना आधार बनाकर अंग्रेज जनरल आक्टरलोनी ने गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा को हराया था।

बिलासपुर में है तीन मुख्य घाटियां

सतलुज घाटी :  सतलुज नदी जिला बिलासपुर में लगभग 90 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। जहां यह कसोल कस्बे में जिला में प्रवेश कर तथा ‘नैला’ गांव को छोड़कर पंजाब राज्य में प्रवेश करती है। सतलुज घाटी में कई प्रकार की वनस्पति व वन्य जीव पाए जाते हैं। सतलुज नदी के किनारे अवस्थित गांव खेती व उद्यानों की सिंचाई के लिए व्यापक स्तर पर सतलुज नदी के पानी का प्रयोग करते हैं। इस घाटी में और कई छोटी बड़ी खड्डे हें, जो संपूर्ण सतलुज घाटी के लिए जीवन दायिनी है। सतलुज घाटी की मुख्य फसलें गेहूं, मक्की व धान है।

चैंतो घाटी : भाखड़ा बांध के साथ लगती 13 किलोमीटर लंबी यह घाटी अपनी उवैरा मिट्टी के लिए प्रसिद्ध है। चैंतो घाटी पंजाब राज्य के साथ लगती शिवालिक क्षेत्र में एक उपजाऊ तथा आर्थिक रूप से समृद्ध घाटी है, जहां कृषि व अन्य सहायक गतिविधियों को प्रधानता प्राप्त है। भाखड़ा बांध के निर्माण से बनी गोविंद ने सैकड़ों परिवारों की आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया है।

दानवीं घाटी : यह घाटी बहादुरपुर व बांदला घाटी के मध्य स्थित 10 किलोमीटर लंबी व पांच किलोमीटर चौड़ी है। यह घाटी, मक्की, धान, गन्न, अदरक तथा गेहूं फसलों के लिए प्रसिद्ध है।

नदियां व खड्डें

बिलासपुर जिला की मुख्य नदी सतलुज है, जो किन्नौर, शिमला तथा मंडी जिला में बहने के उपरांत कसोल गांव के समीप बिलासपुर जिला में प्रवेश कर तथा कोट कहलूर परगना में गांव नैला के समीप जिला को छोड़ पंजाब राज्य का अंग बनती है। इसी नदी को आधार मानकर सन् 1809 में अंग्रेजों  व महाराजा रणजीत सिंह के बीच संधि हुई थी। कई विदेशों इतिहासकारों व पर्यटक विलियम मूस्क्राफट (1820 ईस्वीं) वैरने चार्ल्स हयूग्ल (सन् 1825, जर्मन) तथा जीटी विग्ने (1838-39) ने सतलुज नदी के बारे में रोचक विवरण लिखे हैं।

अलीखड्ड :  यह खड्ड जिला सोलन की अर्की तहसील के गांव मंगू गियाना से निकलकर बिलासपुर जिला के कोठी हरार व मनोठी गांव में आकर मिलती है। अलीखड्ड ‘वेरी घाट’ नामक स्थान पर सतलुज नदी में समा जाती है।

गंबर खड्ड : यह सतलुज नदी की सहायक खड्ड है। यह जिला शिमला की तारा देवी श्रृंखला से उद्गमित होकर जिला बिलासपुर के रत्नपुर परगना के गांव नेरी में आकर जिले में प्रवेश करती है। गंबर खड्ड ‘दरगन’ गांव के पास सतलुज नदी में मिलती है।

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