हिमाचली किसान उगाएंगे प्याज की दो फसलें

By: Jan 5th, 2020 12:08 am

खरीफ सीजन में फसल उगाने पर दिया जा रहा जोर

देश भर में प्याज दाम 100 रुपए किलो पार पहुंचने से मचे बवाल का तोड़ हिमाचली किसानों के हाथ है। प्रदेश में इस बार प्याज की पनीरी को बड़े स्तर पर रोपा जा रहा है। इसके अलावा मार्च-अप्रैल माह में भी प्याज की पनीरी रोपने को लेकर किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। ताकि खरीफ मौसम में भी यह फसल पैदा की जा सके। मौजूदा समय में हिमाचल में प्यास की साल में सिर्फ एक फसल वसूली जाती है तथा प्याज की औसतन 50 हजार टन पैदावार है। यह प्रदेश के लिए नाकाफी होने के कारण प्याज दूसरे राज्यों या विदेश से इंपोर्ट करना पड़ता है। महाराष्ट्र में प्याज की तीन फसलें आसानी से उगाई जाती हैं। ऐसे में अगर हिमाचल में सालाना दो फसलें उगाई जाएं , तो सर्दियों में महंगे प्याज की समस्या हल हो जाएगी। क्योंकि खरीफ की फसल अक्तूबर में तैयार होगी। यह वही समय होता है, जब प्याज के दाम आसमां छू रहे हाते हैं। इस समय पूरे प्रदेश में प्याज की पनीरी रोपी जा रही है। किसानों की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा पनीरी रोपी जाए। अपनी माटी टीम ने सिरमौर जिला के पच्छाद क्षेत्र का दौरा किया, तो पता चला कि पनीरी 120 रुपए किलो बिक रही है। पहले यह कीमत 60 रुपए तक होती थी। फिलहाल पूरे प्रदेश में पनीरी की कमी चल रही है। प्याज की दो फसलों को लेकर हमने डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर सिरमौर डा. राजेश कौशिक से बात की। उन्होंने कहा कि साल में प्याज की दो फसलें आसानी से उगाई जा सकती हैं।                   

  रिपोर्ट: संजय राजन,सराहां

स्कैन करते ही निकलेगा किसान का बायोडाटा

कंपनियां खेतों से उठाएंगी अनाज, टैग और कोड लगाने के बाद होगी दूसरे प्रदेशों में सप्लाई…

हिमाचल के अनाज को ब्रांड बनाकर बाहरी राज्यों में बेचने की योजना पर काम शुरू हो गया है। हालांकि कार्य को आमलीजामा पहनाने में कुछ समय का वक्त लग सकता है। इसके लिए एक कंपनी ने कार्य शुरू किया है। कंपनी का टैग लगने के बाद हिमाचली अनाज एक ब्रांड बन जाएगा। हिमाचल के चावल, गेहूं, मक्की सहित अन्य फसल को टैग लगाकर ब्रांड के रूप में बाहरी राज्यों में बेचा जाएगा। यही नहीं, अनाज की पैकिंग पर कोड लगाने का भी प्लान है। स्कैन करते ही किसान का पूरा बायोडाटा निकल जाएगा। पता लग जाएगा कि यह अनाज हिमाचल के किस हिस्से से आया है। फिलहाल प्राथमिक चरण में कंपनी पूरी योजना तैयार कर रही है। योजना तैयार होने के बाद किसानों का अनाज उनके खेतों से ही बेहतर कीमत पर उठा लिया जाएगा। इसके बाद कंपनी इसे अपना टैग लगाकर ब्रांड के रूप में पेश करेगी। सूत्रों की मानें, तो यह कंपनी बाहरी राज्यों की कंपनी से भी टाइअप कर सकती है। बाहरी सामान के आयात के बदले हिमाचल से अनाज बाहर भेजा जा सकता है। जितनी कीमत का सामान बाहरी राज्यों की कंपनियां हिमाचल में भेजेंगी, उतनी ही कीमत का सामान यहां से ले भी जाएंगी। ऐसे में किसानों के अनाज को अच्छी कीमत मिल जाएगी, जिससे खेती के प्रति लोगों का रुझान बढ़ेगा। बता दें कि जायका के तहत किसानों की आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए कार्य किया गया है। हमीरपुर, ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा व मंडी में जायका के तहत किसानों ने फसल विविधिकरण को अपनाया है। अब इस पैदावार को एक ब्रांड के रूप में पेश करने की कवायद शुरू हुई है। एक नाम फर्म ने इस पर कार्य करना शुरू हुआ है। आने वाले समय में किसानों की फसल को उनके खेतों से ही उठा लिया जाएगा।

रिपोर्ट: सुरेंद्र ठाकुर — हमीरपुर

घर पर ही रोज बिकती है 30 किलो गोभी

हिमाचली किसान का कोई मुकाबला नहीं। वह मांगता नहीं, अपने लिए रोजगार खुद पैदा करता है। इसी बात को बखूबी साकार कर रहे हैं कांगड़ा जिला में फतेहपुर ब्लाक के गांव पपलाह( पट्टा जाटियां) के बुद्धि सिंह। बुद्धि सिंह हर साल करीब एक सौ बोरी गेहूं की निकाल रहे हैं। इसके अलावा पांच कनाल भूमि पर फू लगोभी और मूली उगाकर युवाओें के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। वह इन दिनों रोजाना तीस किलो फूलगोभी घर पर ही बेच देते हैं। वह अपने खेतों में किसी तरह का कीटनाशक इस्तेमाल नहीं करते हैं। उनके पास अपना ट्रैक्टर है। बुद्धि सिंह इस बात का अफसोस है कि  जल शक्ति विभाग ने उनके खेतों में नलकूप से आने वाले पानी के लिए हौदियां बेतरतीब ढंग से बनाई हैं, जिससे सिंचाई अधूरी रह जाती है। यही नहीं कृषि विभाग के अधिकारी भी किसानों की मदद नहीं करते । फिर भी उन्हें उम्मीद है कि जयराम सरकार किसानों का दर्द जरूर समझेगी।      

                         रिपोर्ट सुखदेव सिंह, नूरपुर

बर्फ ने किया अपना काम, अब बागीचों में डट जाएं बागबान

प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में दिसंबर के अंत में हुई बर्फबारी ने बागबानों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। शिमला, सोलन, सिरमौर, मंडी-कुल्लू और चंबा की चोटियां सफेद नजर आ रही हैं। बागीचों में गले तक बर्फ नजर आ रही है। नदी-नाले और झीलें जम गई हैं।  बेशक, इस बर्फ से इन इलाकों में रहने वाले लोगों को मुश्किल हो रही है, लेकिन सेब के लिए यह अमृत समान है। बागबानी सेक्टर को इस बार बंपर फसल की उम्मीद है। आखिर सेब के लिए यह हिमपात कितना फायदेमंद है। बागबानों की इन्हीं उलझनों का समाधान करने के लिए अपनी माटी टीम ने उद्यान अधिकारी रिकांगपिओ जगत नेगी से मुलाकात की। इस दौरान नेगी ने कहा कि यह तौलिए का सही वक्त है।

रिपोर्ट मोहिंद्र नेगी,रिकांगपिओ

नौणी में फलदार बूटे लेने पहुंचे प्रदेश के बागबान

डा.वाइएस परमार औद्यानिकी और वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में प्रदेश भर से बागबान हाई क्वालिटी फलदार पौधों की आस में आ रहे हैं। इस बार यूनिवर्सिटी में मौके पर ही रजिस्ट्रेशन हो रही है। विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र कंडाघाट द्वारा यह प्रक्रिया दो चरणों में करवाई गई। विश्वविद्यालय में लगभग 2 हजार व केवीके कंडाघाट में 500 किसानों ने शुरुआती चरण में बुकिंग करवा ली थी। कुलपति डा. परविंदर कौशल ने अपनी माटी टीम को बताया कि प्रत्येक किसान को पौधे प्राप्त करने के लिए पंजीकरण करवाने का निर्णय  किसानों की सुविधा को ध्यान में रखकर लिया गया है । सेब व अन्य गुठलीदार फलों के बूटे किसानों को बांटे गए हैं।

रिपोर्ट: मोहिनी सूद, सोलन

गोभी-टमाटर के बाद अब गेहूं भी साफ किसान खेती छोड़ने पर मजबूर

हिमाचल की 2300 से ज्यादा पंचायतों में लावारिस पशुओं ने आतंक मचा रखा है। कड़ी मेहनत से तैयार फसल को बर्बाद होते देखकर कई किसान खेती को छोड़ चुके हैं। कई ऐसे हैं, जो हिम्मत दिखाकर खेती तो कर रहे हैं, लेकिन वह दिन दूर नहीं,जब वे भी इस व्यवसाय को छोड़ने पर मजबूर हो जाएंगे। समूचे प्रदेश में लावारिस पशुओं ने उत्पात मचा रखा है, लेकिन कांगड़ा,चंबा, ऊना, हमीरपुर, बिलासपुर व मंडी में हालत बेहद खराब हैं। किसानों का कहना है कि पहले आवारा पशु नकदी फसलों गोभी, मटर, टमाटर को चट कर रहे थे। अपनी माटी टीम ने कांगड़ा जिला के देहरा हलके का दौरा किया। यहां ढलियारा पंचायत के किसानों ने बताया कि उनके खेत पूरी तरह उजड़ चुके हैं।  फिलहाल ऐसी कहानी सिर्फ देहरा की ही नहीं है,बल्कि पूरे प्रदेश में किसानों को तंग होना पड़ रहा है।

अश्वगंधा की खेती अपनाएं, घर में खुशहाली लाएं

मात्र 5-6 माह में ही प्रति एकड़ आठ से 12 हजार रुपए की करें कमाई…..

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, बिलासपुर, ऊना, मंडी, कांगड़ा, सोलन, हमीरपुर व कुल्लू जिला के किसान अश्वगंधा की औषधीय खेती से जुड़कर अपनी आर्थिकी को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। जलवायु की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्र अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त है और किसान थोड़ी सी मेहनत कर अश्वगंधा के माध्यम से अपनी आर्थिकी को बल प्रदान कर सकते हैं। अश्वगंधा की खेती समुद्रतल से 14 सौ मीटर से नीचे वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। जड़ के रूप में यह पौधा हिमाचल प्रदेश के आठ जिलों बिलासपुर, ऊना, मंडी, कांगड़ा, सोलन, सिरमौर, हमीरपुर व कुल्लू में आसानी से उगाया जा सकता है। 7-8 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है तथा इसकी रोपाई जून, जुलाई, नर्सरी के दो महीने बाद की जा सकती है तथा पौधों को 4-6 इंच की दूरी पर प्रत्यारोपित किया जाता है। अश्वगंधा की फसल मात्र 5-6 महीने में ही तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ इसकी उपज 250 से 300 किलोग्राम तक रहती है और प्रति एकड़ किसान आठ से 12 हजार रुपए के बीच में शुद्ध आय अर्जित कर सकता है। अश्वगंधा एक झाड़ीदार रोमयुक्त पौधा है, जो एक से चार फुट ऊंचा और बहुशाखीय होता है। इसकी शाखाएं गोलाकार रूप में चारों ओर फैली रहती है। इसका डंठल बहुत ही छोटा जबकि फल शाखाओं के अग्र भाग में खिलते हैं व फल छोटे-छोटे गोल मटर के फल के समान पहले हरे, फिर लाल रंग के हो जाते हैं। यह बहुवर्षीय पौधा पौष्टिक जड़ों से युक्त है। अश्वगंधा के बीज, फल व छाल का विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है तथा सूख जाने पर अश्वगंधा की गंध कम हो जाती है।

बड़ी बलवर्धक है अश्वगंधा

अश्वगंधा कशकाय रोगियों सूखा रोग से ग्रस्त बच्चों व व्याधि उपरांत कमजोरी में, शारीरिक व मानसिक थकान में पुष्टिकारक बलवर्धक के नाते प्रयोग होती है। कुपोषण, बुढ़ापे व मांसपेशियों की कमजोरी और थकान जैसे रोगों में अश्वगंधा का इस्तेमाल किया जाता है। अश्वगंधा को वीर्यवर्धक, शरीर में ओज और कांति लाने वाले, परम पौष्टिक वनौषधि माना है।

क्या कहते हैं अधिकारी

क्षेत्रीय निदेशक, क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र उत्तर भारत, जोगिंद्रनगर डा. अरूण चंदन का कहना है कि सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) के अंतर्गत राज्य औषधीय पादप बोर्ड के माध्यम से अश्वगंधा की खेती को प्रति हैक्टेयर लगभग 11 हजार रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। अधिक जानकारी के लिए अपने जिला के जिला आयुर्वेदिक अधिकारी या राज्य औषधीय पादप बोर्ड शिमला के कार्यालय से संपर्क किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र जोगिंद्रनगर या आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (आईएसएम) जोगिंद्रनगर जिला मंडी के कार्यालयों से भी संपर्क कर सकते हैं।

अपने सुझाव या विशेष कवरेज के लिए संपर्क करें

आपके सुझाव बहुमूल्य हैं। आप अपने सुझाव या विशेष कवरेज के लिए हमसे संपर्क कर सकते हैं। आप हमें व्हाट्सऐप,फोन या ई-मेल कर  सकते हैं। आपके सुझावों से अपनी माटी पूरे प्रदेश के किसान-बागबानों की  हर बात को सरकार तक पहुंचा रहा है।  इससे सरकार को आपकी सफलताओं और समस्याओं को जानने का मौका मिलेगा। आपके पास कोई नई रिसर्च है या फिर कोई समस्या है,तो हमें बताएं। हम आपकी बात स्पेशल कवरेज के जरिए सरकार तक  ले जाएंगे।

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