हिमाचल प्रदेश अनेक जातियों का मिश्रण है

By: Jan 1st, 2020 12:17 am

हिमाचल प्रदेश अनेक जातियों का मिश्रण है। कोल, किन्नर, किरात, खश, नाग आदि वे जातियां हैं जो हिमाचल में आर्यों से पूर्व निवास करती थीं। आर्यों के बाद यहां पर शक, हूण, गुज्जर, भोट, ब्राह्मण, राजपूत, क्षत्रिय, वैश्य, घिरथ, कोली तथा सूद आदि जातियां अस्तित्व में आईं। आर्यों के बाद की जातियां तो आज हिमाचल का वर्तमान हैं। मगर आर्यों से पूर्व की जातियों के नाम जो प्रायः नष्ट हो चुकी हैं, आज भी वैसे ही प्रचलित हैं…

गतांक से आगे

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इसी तरह ये जातियां हिमाचल प्रदेश में आईं और गईं। हिमाचल प्रदेश अनेक जातियों का मिश्रण है। कौल, किन्नर, किरात, खश, नाग आदि वे जातियां हैं, जो हिमाचल में आर्यों से पूर्व निवास करती थीं। आर्यों के बाद यहां पर शक, हूण, गुज्जर, भोट, ब्राह्मण, राजपूत, क्षत्रिय, वैश्य घिरथ, कोली तथा सूद आदि जातियां अस्तित्व में आईं। आर्यों के बाद की जातियां तो आज हिमाचल का वर्तमान हैं। मगर आर्यों से पूर्व की जातियों के नाम जो प्रायः नष्ट हो चुकी हैं। आज भी वैसे ही प्रचलित हैं। यहां निवास करने वाली प्रमुख जातियां निम्न प्रकार हैं-

कोल :

अधिकतर इतिहासकार इस जाति को निषादों की उपजाति मानते हैं, कोल जाति के लोग उत्तर-पूर्वी घाटियों से भारत में आए थे और पश्चिम हिमालय में फैल गए। कृषि और पशुपालन से ही से लोग अपनी आजीविका कमाते थे। कुछ एक शिल्प में भी रूचि लेते थे। ये लोग झुंड बनाकर रहते थे। जिसके परिणामस्वरूप गांव आबाद होते रहे। कुछ विद्वान ‘शंबर’ को भी कोली जाति से संबंधित बताते हैं।  ऐसा इतिहासकारों का मत हैं, क्योंकि उनका संबंध सीधा आस्ट्रेलायड कोल आबादी से जोड़ा जाता है। संभवतः पश्चिमी हिमाचल के आज के कोली, हाली, डूम, चनाल, रेहड़, बढ़ई (बाढ़ी) लुहार, तुरी आदि इसी जाति से संबंध रखते हैं। अनुमान है कि हिंदू धर्म और संस्कृति में जो बातों न आर्यों की हैं और न द्रविड़ों की,जाति से संबंध रखते हैं। अनुमान है कि हिंदू धर्म और संस्कृति में जो बातें न आर्यों की है और न द्रविड़ों की, वह शायद इस जाति की है। जैसे हिंदू धर्म में नाग, गणेश इत्यादि पशु देवता इसी प्राचीन जाति की देन है।

किन्नर-किरात :

कोल जाति के बाद किन्नर-किरात जाति ने प्रवेश किया। यह लोग मंगोल आकृति की जाति है। इन लोगों ने तिब्बत के मार्ग से भारत में प्रवेश किया। कुछ इतिहासकारों का मत है कि ये लोग पूर्व की ओर से ब्रह्मपूत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे-किनारे यहां आए। भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वान किरातों को तिब्बती-वर्मा शब्द का पर्याय मानते हैं।                 -क्रमशः

 


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