कल्पेश्वर मंदिर

By: Feb 29th, 2020 12:21 am

कल्पेश्वर मंदिर गढ़वाल के चमोली जिला, उर्गम घाटी, उत्तराखंड में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। कल्पेश्वर मंदिर पंच केदारों में से एक है तथा पंच केदारों में इसका पांचवां नंबर है। यह समुद्र तल से 2134 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। यह एक छोटा सा मंदिर है, जो पत्थर की गुफा में बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव की जटा प्रकट हुई थी। इस मंदिर में भगवान शिव की जटा की पूजा की जाती है। इसलिए भगवान शिव को जतधर या जतेश्वर भी कहा जाता है। जटा शब्द का अर्थ होता है ‘बाल’। कल्पेश्वर मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया था। कल्पेश्वर मंदिर की वास्तुकला उत्तर भारतीय शैली में है। कल्पेश्वर में भगवान शंकर का भव्य मंदिर बना है। कल्पेश्वर के बारे में पौराणिक ग्रंथों में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है। इस पावन भूमि के संदर्भ में कुछ रोचक कथाएं भी प्रचलित हैं, जो इसके महत्त्व को विस्तार पूर्वक दर्शाती हैं। माना जाता है कि यह वह स्थान है, जहां महाभारत के युद्ध के पश्चात विजयी पांडवों ने युद्ध में मारे गए अपने संबंधियों की हत्या करने की आत्मग्लानि से पीडि़त होकर इस क्षोभ एवं पाप से मुक्ति पाने हेतु वेदव्यास से प्रायश्चित करने के विधान को जानना चाहा। व्यास जी ने कहा की कुलघाती का कभी कल्याण नहीं होता है, परंतु इस पाप से मुक्ति चाहते हो, तो केदार जाकर भगवान शिव की पूजा एवं दर्शन करो। व्यास जी से निर्देश और उपदेश ग्रहण कर पांडव भगवान शिव के दर्शन हेतु यात्रा पर निकल पड़े। पांडव सर्वप्रथम काशी पहुंचे। शिव के आशीर्वाद की कामना की, परंतु भगवान शिव इस कार्य हेतु इच्छुक न थे। पांडवों को गोत्र हत्या का दोषी मानकर शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडव निराश होकर व्यास द्वारा निर्देशित केदार की ओर मुड़ गए। पांडवों को आते देख भगवान शंकर गुप्तकाशी में अंतर्ध्यान हो गए। उसके बाद कुछ दूर जाकर महादेव ने दर्शन न देने की इच्छा से ‘महिष’ यानी भैसें का रूप धारण किया व अन्य पशुओं के साथ विचरण करने लगे। पांडवों को इसका ज्ञान आकाशवाणी के द्वारा प्राप्त हुआ। अतः भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए, जिसके नीचे से अन्य पशु तो निकल गए, पर शिव रूपी महिष पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक भैंसे पर झपट पड़े, लेकिन बैल दलदली भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की पीठ को पकड़ लिया। भगवान शंकर की भैंसे की पीठ की आकृति पिंड रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव भैंसे के रूप में पृथ्वी के गर्भ में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ का ऊपरी भाग काठमांडू में प्रकट हुआ, जहां पर पशुपतिनाथ का मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मध्यमेश्वर में, मुख रुद्रनाथ में तथा जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई। यह चार स्थल पंचकेदार के नाम से विख्यात हैं। इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार भी कहा जाता है। भगवान शिव के इन मंदिरों में दूर-दूर से श्रद्धालु आकर नतमस्तक होते हैं।


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