क्या विरोध की जिद टूटेगी?

By: Feb 13th, 2020 12:05 am

क्या अब शाहीन बाग का धरना-प्रदर्शन समाप्त होगा? क्या एक कानून के खिलाफ  संघर्ष करने का आक्रोश शांत होगा? क्या ‘हल्ला बोल, ‘इंकलाब और ‘आजादी के नारे अप्रासंगिक हो जाएंगे? और सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि धरनास्थल पर मात्र 4 महीने के बच्चे की मौत की जिम्मेदारी तय हो सकेगी? हालांकि इन सवालों का दिल्ली के जनादेश से कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि शाहीन बाग और जामिया के इलाकों वाली ओखला विधानसभा सीट से ‘आप उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान 77,000 से अधिक वोट हासिल कर जीते हैं। मत-प्रतिशत करीब 90 फीसदी है। इस तरह मुस्लिम समुदाय और ‘आप का एक नैतिक और भावनात्मक जुड़ाव सामने आया है। दिल्ली में मुस्लिम आबादी करीब 12 फीसदी है और 10 विधानसभा सीटों पर निर्णायक साबित होती रही है। ऐसी सभी सीटें केजरीवाल की ‘आप के पक्ष में गई हैं। यही नहीं, सभी 12 आरक्षित सीटें भी ‘आप को मिली हैं। झुग्गी बस्तियों से प्रभावित 18 में से 17 सीटें भी ‘आप ने जीती हैं। हम फिर दोहरा रहे हैं कि इस जनादेश का प्रत्यक्ष संबंध शाहीन बाग से नहीं है, लेकिन केजरीवाल को जो प्रचंड और ऐतिहासिक जनमत मिला है, उसका सम्मान करते हुए और सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पीठ की टिप्पणियों के मद्देनजर शाहीन बाग के आंदोलनकारी अपने कदम पीछे हटा सकते हैं और फिर मोदी सरकार पर ‘दृष्टिÓ बनाए रख सकते हैं। हालांकि शाहीन बाग के प्रकरण पर सर्वोच्च अदालत ने कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया है, लेकिन इतना जरूर कहा है कि किसी सार्वजनिक स्थान पर अनंतकाल तक विरोध-प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। धरना-प्रदर्शन किसी निर्धारित और अधिकृत जगह पर ही करें। कोई भी आंदोलन आम आदमी और जनता का रास्ता ब्लॉक नहीं कर सकता। बेशक प्रदर्शन करना आपका अधिकार है। विरोध करें, लेकिन सार्वजनिक जगह का इस्तेमाल न करें। ऐसी टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार तथा दिल्ली पुलिस को नोटिस भेजकर सात दिन का समय दिया है। संभवत: 17 फरवरी को न्यायिक पीठ जानना चाहेगी कि शाहीन बाग से धरना-प्रदर्शन कैसे समाप्त किया जा सकता है? शीर्ष अदालत लोगों को जबरन उठाने के पक्ष में नहीं हो सकती, क्योंकि इंसाफ उन्हें भी चाहिए और अदालत मानवाधिकारों की पहली संरक्षक है। विवादित कानून की समीक्षा सर्वोच्च अदालत अलग से कर रही है, लिहाजा जिज्ञासापूर्ण सवाल है कि क्या मुख्यमंत्री केजरीवाल शाहीन बाग वालों से कोई अपील कर सकते हैं? या नए चुने गए विधायक अमानतुल्लाह खान कोई भूमिका निभा सकते हैं? बुनियादी सवाल तो यह है कि विरोध की जिद और हद को क्या शाहीन बाग वाले समझेंगे और उसकी टूट की पहल करेंगे? इस आंदोलन को अब दो महीने गुजर चुके हैं। चुनाव भी संपन्न हो चुका है। भाजपा ने शाहीन बाग के खिलाफ  लहर बनाने की भरपूर कोशिश की। गृहमंत्री अमित शाह ने खुले मंच से यहां तक आह्वान किया कि वोट का बटन इतनी जोर से दबाना कि करंट शाहीन बाग को लगे। सांसद प्रवेश वर्मा ने भी बयान दिया कि, शाहीन बाग के लोग आपके घरों में घुसकर आपकी बहन-बेटियों को अगवा कर लेंगे, उनके साथ बलात्कार करेंगे, उन्हें मार देंगे।Ó इन बयानों का कोई मतलब था? यह लोकतांत्रिक देश है या कोई जंगलराज…! दिल्ली के वोटर ने ऐसी हिंदू-मुस्लिम सियासत को जीतने नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का सबसे मानवीय सवाल यह था कि क्या 4 महीने का बच्चा भी प्रदर्शन करने गया था? संभव है कि शीर्ष अदालत कोई निर्देश दे कि बच्चों को धरना-प्रदर्शन की जगह पर लेकर नहीं जाया जा सकता! बहरहाल 17 फरवरी की प्रतीक्षा रहेगी, लेकिन जनादेश को परोक्ष समर्थन देते हुए शाहीन बाग की औरतों ने मुंह पर काली पट्टी बांध कर ‘मूक विरोधÓ जताया। मीडिया से संवाद तक नहीं किया। लाउड स्पीकर खामोश रखा गया, लिहाजा कोई भाषण या नारेबाजी भी सुनाई नहीं दी। शाहीन बाग की ऐसी प्रतिक्रिया देखते हुए उन्हें आंदोलन वापस लेने का आग्रह किया जा सकता है।


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