खश उपजाऊ जमीन के पास बसाते थे अपनी बस्तियां

By: Feb 12th, 2020 12:19 am

हिमाचली संस्कृति भाग-8

खश लोग उपजाऊ जमीन के आसपास अपनी बस्तियां बसाते थे। सामाजिक जीवन वैदिक आर्यों से कुछ भिन्न था। जाति- पाति का भेदभाव उनमें नहीं था। यद्यपि घर का बूढ़ा व्यक्ति ही गृहस्थी का अगुआ होता था, पर अनुशासन की इनमें कमी थी। बहुपति और बहुपत्नी प्रथा प्रचलित थी। विधवा स्त्री दूसरा विवाह कर सकती थी, तलाक का प्रचलन भी था…

गतांक से आगे

इस उत्सव में रस्सा नाग का प्रतिरूप तथा बेड़ा उस जाति का नेतृत्व करता है। अब सरकार ने आदमी डालने की प्रथा को बंद कर दिया है। फिर भी खड़ाव (रामपुर बुशहर) में 43 वर्ष बाद 1986 में आदमी को डाला गया। जिसको सरकार की तरफ से विशेष प्रबंध किए गए थे। रस्से के नीचे पुलिस के जवान जाल पकड़ कर खड़े थे, जो किसी भी घटना का सामना करने को तैनात थे, परंतु प्रथा को निभाने के लिए अब कई जगह आदमी की बजाए बकरे को डाला जाता है। इधर अब यह माना जाने लगा है कि आर्यों की यह खश शाखा वैदिक आर्यों के भारत आगमन से चार पांच शताब्दी पूर्व यहां आ चूकी थी। इनकी भाषा भी आर्य ही थी। खशों का कुछ लंबा शरीर, सुगठित, रंग साफ और नक्ष तराशे हुए थे। उनकी स्त्रियां भी लंबी पतली, सुंदर, आकर्षक और विलासी होती थीं। यह जाति स्वभाव से अक्खड़पन लिए हुए थी। इस जाति के लोग पराक्रमी, वीर और उद्यमी थे। कालांतर में यह जाति राजनीतिक कारणों तथा दूसरी छोटी-मोटी जातियों के घूस जाने के फलस्वरूप छोटे-छोटे भागों में बंट गई। कुनैत और राव इसी जाति से निकले हैं, जो इतिहास प्रसिद्ध हैं। कुनैत (कुलिंद) खशिया नाम से भी प्रसिद्ध हैं। पशुपालन और कृषि उनका व्यवसाय था। गाय , भेड और बकरियां इनके मुख्य पशु थे। खश लोग उपजाऊ जमीन के आसपास अपनी बस्तियां बसाते थे। सामाजिक जीवन में वैदिक आर्यों से कुछ भिन्न था। जाति-पाति का भेदभाव उनमें नहीं था। यद्यपि घर का बूढ़ा व्यक्ति ही गृहस्थी का अगुआ होता था, पर अनुशासन की इनमें कमी थी। बहुपति और बहुपत्नी प्रथा प्रचलित थी।  विधवा स्त्री दूसरा विवाह कर सकती थी, तलाक का प्रचलन भी था। खशों का कोई अपना देवता प्रती नहीं होता ऐसा लगता है कि खशों ने नागों के ही शिव को आराध्य देव मान लिया और बाद में नाग देवता खश देवता बन गया। आर्यों की तरह प्रकृति के उपकरण इनके लिए भी पूजा के पात्र थे। वेद भी आर्यों के परिष्कृत विकसित मस्तिष्क की उपज हैं। खशों का झुकाव पूर्वजों की आत्मा की पूजा की ओर भी रहा। ये कंकर पत्थर की पूजा भी करते थे और काली, लाल, पीली झंडियां फहराते थे। इनका कुल देवता कुल का बंधन माना जाता था। कुल का वयोवृद्ध पुरुष कुल देवता का प्रतिनिधि माना जाता था। शायद यह पंचायत का सरपंच भी होता होगा।                                                                                                              -क्रमशः


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