गगल हवाई अड्डा और पुनर्वास

By: Feb 22nd, 2020 12:06 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

भाखड़ा, और पौंग के विस्थापित अभी तक लटके हुए हैं। कुछ लोगों ने अपने लिए जीवन यापन के नए आधार तो खड़े कर लिए हैं किंतु उसमें दो पीढि़यां खप गईं। अपनी जड़ों से उखड़ कर नई जगह पर बसना सदा ही पीड़ादायक होता है किंतु यदि पुनर्वास की व्यवस्थाएं ही लचर या अपर्याप्त हों तो पीड़ा असहनीय और लंबे समय तक कष्टकारी हो जाती है। कई बेगुनाह लोग विकास की सदिच्छा की भेंट चढ़ जाते हैं, खास कर छोटे किसान या भूमिहीन दस्तकार और फुटकर मेहनत मजदूरी करने वालों की स्थिति चिंताजनक हो जाती है…

गगल स्थित कांगड़ा हवाई अड्डा, कांगड़ा का चिरप्रतीक्षित स्वप्न रहा है। निःसंदेह इसके निर्माण से कांगड़ा और हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में बड़ा योगदान मिलेगा। मोटे तौर पर सामान्य लोग इस परियोजना के हक में ही हैं। फिर भी कुछ विरोध के स्वर उठने लग पड़े हैं। कुछ तो राजनीतिक खींचतान का नतीजा होते हैं और कुछ स्वर गंभीर वास्तविकताओं पर आधारित होते हैं। वास्तविक समस्याओं पर आधारित विरोधी स्वरों को सुना जाना चाहिए और उनके समाधान के प्रयास शुरू से ही कर लिए जाने चाहिए। हिमाचल का दुर्भाग्य रहा है कि यहां भाखड़ा, पौंग, चमेरा आदि कुछ सड़क परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और विस्थापन हुआ है। हिमाचल का अनुभव भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास को लेकर बहुत ही खराब रहा है। भाखड़ा, और पौंग के विस्थापित अभी तक लटके हुए हैं। कुछ लोगों ने अपने लिए जीवन यापन के नए आधार तो खड़े कर लिए हैं किंतु उसमें दो पीढि़यां खप गईं। अपनी जड़ों से उखड़ कर नई जगह पर बसना सदा ही पीड़ादायक होता है किंतु यदि पुनर्वास की व्यवस्थाएं ही लचर या अपर्याप्त हों तो पीड़ा असहनीय और लंबे समय तक कष्टकारी हो जाती है। कई बेगुनाह लोग विकास की सदिच्छा की भेंट चढ़ जाते हैं, खास कर छोटे किसान या भूमिहीन दस्तकार और फुटकर मेहनत मजदूरी करने वालों की स्थिति चिंताजनक हो जाती है। पुराने भू-अधिग्रहण के मामलों के समय तो अंग्रेजों के बनाए 1894 के भू-अधिग्रहण कानून से ही काम चलाना पड़ता था जिसमें पुनर्वास की बड़ी सीमित और लचर व्यवस्था थी।

भूमि का मूल्य निर्धारण भी औसत कीमत देकर पल्ला झाड़ लिया जाता था। किंतु अब 2013 के भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास और पुनः स्थापन कानून से कुछ स्थितियां बदली हैं, बशर्ते सरकारें कानून के विस्थापितों को राहत देने वाले प्रावधानों को सहृदयता से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हो। नए कानून में पिछले तीन साल में हुई भूमि बिक्री की औसत कीमत को आधार माना गया है, जिसके आधार पर सर्किल रेट तय होगा, उसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में क्योंकि भूमि की कीमतें कम ही होती हैं, इसलिए भू-अधिग्रहण अधिकारी शहरी क्षेत्र से अधिग्रहित की जा रही भूमि की दूरी को ध्यान में रखते हुए फैक्टर एक या फैक्टर दो का प्रावधान लागू करेगा। औसत कीमत के आधार पर तय कीमत को उस निर्धारित फैक्टर से गुना करके जो कीमत बनेगी वह भूमि की अधिग्रहण कीमत होगी। यदि फैक्टर एक लगाया जाता है तो औसत कीमत को एक से गुना करने पर औसत कीमत ही अधिग्रहण कीमत बनेगी। किंतु यदि फैक्टर दो लगाया जाता है तो औसत कीमत से सीधे दोगुणा अधिग्रहण कीमत निर्धारित होगी। कानून की धारा 27 के अनुसार उस अधिग्रहण की जाने वाली भूमि में विद्यमान अन्य अचल संपत्तियों की कीमत जोड़ी जाएगी। अधिग्रहण कीमत में अचल संपत्ति की कीमत जोड़ने के बाद मुआवजा राशि बनेगी। धारा 30 के अंतर्गत इस मुआवजा राशि में 100 प्रतिशत सोलेशियम जमा होगा। इस तरह यदि फैक्टर एक के तहत अधिग्रहण होगा तो भूमि की औसत कीमत का दोगुणा जमा अचल संपत्ति की निर्धारित कीमत का दोगुणा राशि देय होगी। और यदि फैक्टर 2 के तहत अधिग्रहण हुआ तो भूमि की औसत कीमत का चार गुणा जमा अचल संपत्ति का दोगुणा राशि देय होगी। हालांकि फैक्टर दो के तहत अधिग्रहण केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही हो सकेगा, शहरी में नहीं। गगल हवाई अड्डे के लिए अधिकांश भूमि ग्रामीण ही है, अतः सरकार यदि सचमुच लोगों की विस्थापन की कठिनाइयों को कम करना चाहती है तो ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण फैक्टर दो के ही तहत किया जाए। यह पूरा क्षेत्र कांगड़ा घाटी का दिल है। यहां स्थापित कारोबार और कृषि गतिविधि की भरपाई आसान नहीं है। इसलिए अधिकतम संभव लाभ विस्थापितों को दिए जाने चाहिए। और भूमिहीन अन्य कारोबारियों और कृषि मजदूरों, दस्तकारों  और सरकारी भूमि में बसे भूमिहीनों का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। नए कानून में इसके प्रावधान हैं। डेढ़ लाख गृह निर्माण सहायता, भूमि के बदले भूमि जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। विस्थापितों को अपना सामान और निर्माण सामग्री जो विस्थापन स्थल से नए पुनर्वास स्थल पर ले जानी हो, उसका धुलाई किराया भी दिया जाएगा। यदि राज्य सरकार चाहे तो सुविधाओं को बढ़ा सकती है, किंतु कम नहीं कर सकती। अब देखना है कि विस्थापन के पुराने अनुभवों से सीखते हुए सरकार ऐसा मुआवजा और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन पैकेज देने का निर्णय लेगी जिससे विस्थापित खुशी से विस्थापन की तकलीफ  सहने के लिए तैयार हो जाए। विकास का मानवीय चेहरा या समावेशी विकास का यही तकाजा है।


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