गांधी विरोध का शगल

By: Feb 17th, 2020 12:08 am

कुलभूषण उपमन्यु

अध्यक्ष, हिमालय नीति अभियान

अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे अनेक आंदोलनकारी गांधी से प्रेरित होते रहते हैं। असल में समस्या की जड़ में गांधी का नैतिक- आध्यात्मिक मूल्यों को व्यक्तिगत जीवन से उठा कर सामाजिक और राजनीतिक धरातल पर स्थापित करने का आग्रह और प्रयास है…

भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों में से आए दिन कोई न कोई निकलता रहता है जो गांधी जी पर अपनी अभद्र टिप्पणियों से हमला करने के प्रयास करता रहता है। यानी गांधी को छोटा करने के प्रयास होते रहते हैं। गांधी को न समझ पाने वालों या न समझने की इच्छा रखने वालों के लिए यह दिल बहलाने का अच्छा ख्याल बन गया है। ताजा टिप्पणी पूर्व मंत्री और वर्तमान संसद सदस्य अनंत कुमार हेगड़े की तरफ  से आई। उन्हें गांधी जी द्वारा चलाया गया स्वतंत्रता आंदोलन अंग्रेजों के साथ मिलीभगत दिखाई दिया। वैसे गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन को और भी कई लोग छोटा करके दिखाने में लगे रहते हैं।

कुछ उनके आंदोलन को सुधारवादी कह कर पूंजीपतियों के हित में किया गया प्रयास मानते हैं तो कुछ मुस्लिम तुष्टिकरण का उपयोग करके मुस्लिम मानसिकता को जरूरत से ज्यादा अधिमान दे कर जिन्ना जैसे पृथकतावादियों के सामने कमजोर पड़ने और हिंदू हित से खिलवाड़ करने का आरोप लगाते रहते हैं, लेकिन गांधी, इन सब हमलों से निरपेक्ष भाव से ही बिना लड़े जीतता रहता है। अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे अनेक आंदोलनकारी गांधी से प्रेरित होते रहते हैं।  असल में समस्या की जड़ में गांधी का नैतिक- आध्यात्मिक मूल्यों को व्यक्तिगत जीवन से उठा कर सामाजिक और राजनीतिक धरातल पर स्थापित करने का आग्रह और प्रयास है।

गांधी के लिए व्यक्तिगत आध्यात्मिक उत्थान की प्रक्रिया राजनीतिक और सामाजिक जीवन के लिए भी प्रासंगिक और वांछनीय है। जबकि अन्य सभी जो गांधी से असहमत हैं या सहमत हो कर भी गांधी मार्ग को व्यावहारिक नहीं मानते हैं वे किसी न किसी बहाने गांधी को गलत साबित करने का प्रयास करते ही रहते हैं। जो गांधी को हिंदू हितों की अनदेखी करने का दोषी साबित करने के हामी हैं वे भूल जाते हैं कि गांधी उस कठिन दौर में ठोक बजा कर अपने को सनातनी हिंदू कहने का साहस करता है। गांधी का मानना है कि हिंसक साधनों से प्राप्त लक्ष्य समाज में हिंसा को ही बढ़ावा देगा इसलिए साधन शुद्धि पर गांधी समझौता करने को तैयार नहीं।

 इसे बहुत से लोग आदर्शवाद कह कर खारिज कर देते हैं। गांधी का सनातन हिंदू धर्म किसी राजनीतिक दर्शन की खिचड़ी से नहीं निकला है बल्कि व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास की सनातन दार्शनिक पद्धतियों से निकला है। गांधी ने अपनी दैनिक प्रार्थना में अष्टांग योग के प्रथम सोपान पञ्च यम ‘अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह’ से लिए शरीर श्रम, अस्वाद, सर्वत्र भय वर्जन, सर्वधर्म समानत्व, स्वदेशी, स्पर्श भावना और उनके पालन के लिए विनम्र व्रत निष्ठा का मार्ग सुझाया, इसमें कुछ भी शुद्ध सनातन और संतों के वचनों के विमुख नहीं है। इसके बाद सब धर्मों के आदर का जो आग्रह रहा वह भारत की शाश्वत परंपरा के ‘द्घोष’ एकं सद्विप्रा, बहुधा वदन्ति की एक ही ईश्वर को ज्ञाता लोग भिन्न भिन्न तरह से व्याख्यायित करते हैं, इसी भाव से लिया गया है। स्वदेशी का व्रत आर्थिक स्वावलंबन के लिए रखा गया जो उस समय की रणनीतिक जरूरत के अतिरिक्त स्थायी स्वावलंबी अर्थव्यवस्था का आधार बनने की क्षमता रखता है और आज भी प्रासंगिक है।

स्पर्श भावना को अस्पृश्यता के निर्मूलन के लिए सकारात्मक कार्यक्रम के रूप में स्थान दे कर  सदियों से चली आ रही गलती का स्वीकार करके उसके निराकरण का प्रयास आरंभ किया। जहां तक स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी को बौना दिखाने के प्रयासों का सवाल है तो यह वैचारिक घृणा और नासमझी से उपजा कथानक  है जिसका लक्ष्य केवल हिंसक प्रयासों को ही अधिमान देना है। आजादी की लड़ाई का इतिहास बड़ा विविधता पूर्ण है, जिसमें 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर क्रांतिकारियों, सुभाष बाबू के आजाद हिंद सेना के प्रयास और अनेक प्रकार के देशी और विदेशी धरती से किए गए प्रयासों को भारतीय जनमानस याद रखता है। आदर देता है उन सभी प्रयासों को वर्तमान इतिहास में उचित स्थान दिया जाना चाहिए। महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, औरोबिंदो घोष जैसे अनेक विध वीरों को भुलाया नहीं जा सकता। किंतु आधुनिक संघर्ष में जो 1857 के आजादी के संग्राम के बाद शुरू हुआ उसमें गांधी एक नई हवा का झोका लेकर आया। कांग्रेस भले ही स्वतंत्रता संघर्ष की आवाज बनने लग पड़ी थी किंतु वह मध्यवर्गीय शहरी लोगों तक ही सीमित थी।

सर्वप्रथम मान्य बालगंगाधर तिलक ने उसे सामान्य जन के संघर्ष की दिशा में मोड़ा और उनके बाद गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन को आम आदमी की लड़ाई बना डाला। गांधी ने एक ऐसी रणनीति अपनाई जो शस्त्र हीन आम आदमी में अपने लक्ष्य के लिए लड़ने के साहस का संचार कर दे। गांधी के पूर्ण आग्रह के बावजूद देश का विभाजन हुआ जो दुखद सपना था। किंतु गांधी को उसके लिए जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं। अंग्रेज कोई छोटी ताकत नहीं थे। उनकी चालबाजी की वजह से और देश के अंदर के जिन्ना जैसे सांप्रदायिक विचारकों के कारण विभाजन हुआ। जिन्ना के सीधी कार्रवाई के चलते जनधन की हानि के बाद गांधी की आवाज कांग्रेस में भी कमजोर हुई।

इन अनेक जानी-अनजानी परिस्थितियों में हुई ऐतिहासिक घटनाओं को ठीक से समझे बिना दलगत रोटियां सेंकने के लिए गांधी को कोसते रहना लाभदायक सिद्ध होने वाला नहीं। जो गांधी को बिना समझे कोसते हैं वे अपना और अपने संगठन और देश का नुकसान ही करते हैं। यह बात जितनी जल्दी हम समझ लें, उतना अच्छा है। देश के महापुरुष किसी एक के या एक संस्था के नहीं होते, कांग्रेस में तो उस समय सब विचारधाराओं के स्वतंत्रता सेनानी जुड़े हुए थे। वह कोई राजनीतिक दल नहीं था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का एक मंच था। बहु धार्मिक देश में जरूरी है कि सब धर्म प्यार से रहें। इसके लिए एक-दूसरे का सम्मान करना जरूरी है। दोष-दर्शन से दोष बढ़ते हैं और गुण-दर्शन और उनकी चर्चा से गुण बढ़ते हैं। स्वामी विवेकानंद की इस उक्ति को याद रखने की जरूरत है ताकि सभी धर्म अपनी गुणवत्ता पर ध्यान दें, फैलाव पर नहीं।

कुछ लोगों को गांधी को महात्मा कहे जाने पर भी दुख होता है। गांधी ने कभी अपने को महात्मा कहे जाने के लिए नहीं कहा। हमीं ने प्यार से उन्हें महात्मा कहा। बहुत से टीवी चैनल भी सामाजिक सद्भाव को बिगड़ने वाली अनावश्यक बहसों का प्रसारण करते रहते हैं। उससे टीआरपी तो बढ़ सकती है किंतु कट्टरपंथी विचारकों को बिना वजह ही प्रचार मिलता रहता है। जिनमें से बहुत से तो ऐसे हैं जिनको गुमनामी में ले जाना चाहिए। चैनल भी अपनी जिम्मेदारी समझें। पक्ष और विपक्ष जैसा व्यवहार छोड़ें। सद्भाव बढ़ाने में अपनी भूमिका तलाशें।


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