दुर्गा मंदिर काशी

By: Feb 22nd, 2020 12:21 am

धर्म की नगरी काशी को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। यहां पर देवी-देताओं के विभिन्न मंदिर विख्यात हैं। जिनकी भव्यता और शोभा देखने योग्य है। काशी में केवल बाबा भोलेनाथ का ही मंदिर नहीं है, बल्कि यहां मां दुर्गा का दिव्य और पुरातन मंदिर भी है। इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में भी देखने को मिलता है। लाल पत्थरों से बने इस दिव्य मंदिर के एक तरफ दुर्गाकुंड भी है। इस मंदिर में माता के कई स्वरूपों का दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।  इसकी भव्यता ऐसी है कि कहा जाता है कि मंदिर परिसर में जाने वाले भक्त मां की प्रतिमा को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। मंदिर में एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता है। आइए जानते हैं काशी के मां दुर्गा के दिव्य मंदिर के बारे में।

यंत्र के रूप में विराजमान है मां दुर्गा

मां का यह मंदिर काशी के पुरातन मंदिरों में से एक है। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण साल 1760 में बंगाल की रानी भवानी ने कराया था। उस समय मंदिर निर्माण में 50 हजार रुपए की लागत आई थी। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान हैं। साथ ही मंदिर में बाबा भैरोनाथ, देवी सरस्वती, लक्ष्मी और काली की मूर्तियां भी अलग-अलग स्थापित हैं। माता के दर्शन के बाद यहां पुजारी के मंदिर के दर्शन करना अनिवार्य है। तभी मां की पूजा पूरी होती है।

आदिकाल से है यह मंदिर- मान्यता है कि असुर शुंभ और निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने यहां विश्राम किया था। कहा जाता है कि माता यहां पर आदि शक्ति स्वरूप में विराजमान हैं और यह मंदिर आदिकाल से है। आदिकाल में काशी में केवल तीन ही मंदिर थे पहला काशी विश्वनाथ, दूसरा मां अन्नपूर्णा और तीसरा दुर्गा मंदिर। कुछ लोग यहां तंत्र पूजा भी करते हैं। यहां पर स्थित हवन कुंड में हर रोज हवन किया जाता है।

मंदिर से जुड़ी अद्भुत कहानी-इस भव्य मंदिर में एक तरफ दुर्गाकुंड भी है। इस कुंड से जुड़ी एक अद्भुत कहानी बताई जाती है। बताया जाता है कि काशी नरेश राजा सुबाहू ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की घोषणा की थी। स्वयंवर से पहले सुबाहू की पुत्री को सपने में राजकुमार सुदर्शन के संग विवाह होते दिखा। राजकुमारी ने यह बात अपने पिता राजा सुबाहू को बताई। इस तरह हुआ राजकुमार का विवाह-काशी नरेश ने जब यह बात स्वयंवर में आए राजा-महाराजाओं को बताई,तो सभी राजकुमार सुदर्शन के खिलाफ हो गए और युद्ध की चुनौती दी। राजकुमार ने युद्ध से पहले मां भगवती की आराधना की और विजयी होने का आशीर्वाद मांगा। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान मां भगवती ने राजकुमार के सभी विरोधियों का वध कर डाला। युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहां रक्त का कुंड बन गया,जो दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद राजकुमार का विवाह राजकुमारी के साथ हुआ।

बीसा यंत्र पर स्थित है मंदिर- पौराणिक मान्यता है कि जहां मां स्वयं प्रकट होती है,वहां मां मूर्ति स्थापित नहीं की जाती। ऐसे मंदिर में केवल चिन्ह की पूजा की जाती है। दुर्गा मंदिर भी उन्हीं श्रेणियों में आता है। यहां माता के मुखौटे और चरण पादुका की पूजा की जाती है। काशी का दुर्गा मंदिर बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र का मतलब बीस कोण की यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गई है।


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