नर्मदा जयंती : पूरे भारत में मनाया जाने वाला उत्सव

By: Feb 1st, 2020 12:35 am

नर्मदा जयंती मां नर्मदा के जन्मदिवस यानी माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाती है। नर्मदा जयंती मध्य प्रदेश राज्य के नर्मदा नदी के तट पर मनाई जाती है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को शास्त्रों में ‘नर्मदा जयंती’ कहा गया है। नर्मदा अमरकंटक से प्रवाहित होकर रत्नासागर में समाहित हुई है और अनेक जीवों का उद्धार भी किया है…

परिचय

नर्मदा जयंती भारत में हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है। यह अमरकंटक में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि यह मां नर्मदा का जन्म स्थान है। इसके अलावा यह पूरे मध्य प्रदेश में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जनवरी माह में मनाए जाने वाले संक्रांति के त्योहार के आसपास यह त्योहार मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के हिसाब से माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मां नर्मदा का जन्म हुआ था, इसलिए नर्मदा जयंती हर साल इस दिन मनाई जाती है। भारत में सात धार्मिक नदियां हैं, उन्हीं में से एक है मां नर्मदा। हिंदू धर्म में इसका बहुत महत्त्व है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने देवताओं को उनके पाप धोने के लिए मां नर्मदा को उत्पन्न किया था और इसलिए इसके पवित्र जल में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं।

नर्मदा जयंती महोत्सव

अलौकिक और पुण्यदायिनी मां नर्मदा के जन्मदिवस यानी माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती महोत्सव प्रति वर्ष मनाया जाता है। वैसे तो संसार में 999 नदियां हैं, पर नर्मदाजी के सिवा किसी भी नदी की प्रदक्षिणा करने का प्रमाण नहीं देखा। युगों से सभी शक्ति की उपासना करते आए हैं। चाहे वह दैविक, दैहिक तथा भौतिक ही क्यों न हो, इसका सम्मान और पूजन करते हैं।

महत्त्व

नर्मदाजी का तट सुर्भीक्ष माना गया है। पूर्व में भी जब सूखा पड़ा था तब अनेक ऋषियों ने आकर प्रार्थनाएं कीं कि भगवन ऐसी अवस्था में हमें क्या करना चाहिए और कहां जाना चाहिए? आप त्रिकालज्ञ हैं तथा दीर्घायु भी हैं। तब मार्कंडेय ऋषि ने कहा कि कुरुक्षेत्र तथा उत्तर प्रदेश को त्याग कर दक्षिण गंगा तट पर निवास करें। नर्मदा किनारे अपनी तथा सभी के प्राणों की रक्षा करें।

कथा

एक समय सभी देवताओं के साथ में ब्रह्मा, विष्णु मिलकर भगवान शिव के पास आए, जो कि (अमरकंटक) मेकल पर्वत पर समाधिस्थ थे। वे अंधकासुर राक्षस का वध कर शांत सहज समाधि में बैठे थे। अनेक प्रकार से स्तुति-प्रार्थना करने पर शिवजी ने आंखें खोलीं और उपस्थित देवताओं का सम्मान किया। देवताओं ने निवेदन किया, ‘हे भगवन! हम देवता भोगों में रत रहने से, बहुत से राक्षसों का वध करने के कारण हमने अनेक पाप किए हैं, उनका निवारण कैसे होगा, आप ही कुछ उपाय बताइए।’ तब शिवजी की भृकुटि से एक तेजोमय बिंदु पृथ्वी पर गिरा और कुछ ही देर बाद एक कन्या के रूप में परिवर्तित हुआ। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेक वरदानों से सज्जित किया गया।

माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।

मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥

माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया। तब नर्मदाजी प्रार्थना करते हुए बोली, भगवन! संसार के पापों को मैं कैसे दूर कर सकूंगी? तब भगवान विष्णु ने आशीर्वाद रूप में वक्तव्य दिया : 

नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव।

त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवंतु ताः।

अर्थात तुम सभी पापों का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव तुल्य पूजे जाएंगे। तब नर्मदा ने शिवजी से वर मांगा। जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है, उसी प्रकार से दक्षिण गंगा के नाम से प्रसिद्ध होऊं। शिवजी ने नर्मदाजी को अजर अमर वरदान और अस्थि पंजर राखिया शिव रूप में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया। इसका प्रमाण मार्कंडेय ऋषि ने दिया, जो कि अजर-अमर हैं। उन्होंने कई कल्प देखे हैं। इसका प्रमाण मार्कंडेय पुराण में है।


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